बदलता मानचित्र: समुद्र से दूर जा रहे दुनिया के 56 फीसदी तटीय क्षेत्र, जलवायु संकट की आहट

स्टडी से पता चला है कि अफ्रीका और एशिया के आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्रों में लोग मजबूरी में समुद्र के और करीब जा रहे हैं। हालांकि वहां कमजोर बुनियादी ढांचा और अनुकूलन क्षमता की कमी जलवायु जोखिम को और बढ़ा रही है
लागोस शहर; फोटो: आईस्टॉक
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सदियों से तटवर्ती शहर व्यापार, रोजगार और आर्थिक गतिविधियों के बड़े केंद्र रहे हैं। यही वजह है कि आज भी दुनिया की करीब 40 फीसदी आबादी समुद्र के 100 किलोमीटर के दायरे में रहती है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है, कटाव, बाढ़ और चक्रवातों जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ गया है।

इन बढ़ते खतरों ने तटवर्ती शहरों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। इस बारे में किए एक नए वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि पिछले तीन दशकों में धरती के आधे से अधिक तटीय बस्तियों ने समुद्र से दूरी बढ़ाई है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे मानो इंसान दबे पांव बढ़ते जलवायु खतरों से बचने की राह खोज रहा हो। इसमें कोई शक नहीं कि पिछले दशकों में जलवायु संकट बढ़ा है और उसका असर अब तटीय इलाकों में साफ तौर पर दिखने लगा है।

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यह अध्ययन सिचुआन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय दल द्वारा किया गया है। इसमें यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के विशेषज्ञ भी शामिल थे। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 155 देशों के 1,071 तटीय इलाकों में बस्ती के फैलाव और बदलाव का नक्शा तैयार किया है।

व्यापक है बदलाव की तस्वीर

यह बदलाव सैटलाइट की मदद से रात की रोशनी (नाइटलाइट) के एकत्र किए गए डेटा के आधार पर दर्ज किया गया है। इस डेटा को वैश्विक स्तर पर सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों के साथ जोड़कर शोधकर्ताओं ने पाया है कि 1992 से 2019 के बीच दुनिया के 56 फीसदी तटीय इलाके समुद्र से दूर खिसक गए हैं।

दिलचस्प बात यह है कि जहां दुनिया का बड़ा हिस्सा समुद्र से दूर जा रहा है, वहीं कुछ इलाके जैसे डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन समुद्र के और भी करीब आ गए हैं। आंकड़ों से पता चला है कि करीब 16 फीसदी तटीय क्षेत्र समुद्र के और करीब आए हैं। दूसरी तरफ 28 फीसदी इलाकों में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है।

क्यों बदल रहा तटों का नक्शा

शोधकर्ताओं के मुताबिक तटीय इलाकों के समुद्र से दूर हटने को अनुकूलन की एक रणनीति माना जाता है। लेकिन इतना बड़ा बदलाव क्यों और कहां हो रहा है, इसके पीछे का असली कारण स्पष्ट नहीं था।

जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित इस अध्ययन में पहली बार वैश्विक स्तर पर यह साबित हुआ है कि तटीय इलाकों के पीछे हटने का बड़ा कारण प्राकृतिक आपदाएं नहीं, बल्कि सामाजिक कमजोरियां और कमजोर बुनियादी ढांचे हैं।

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स्टडी में सामने आया है कि यह बदलाव अफ्रीका और ओशिनिया में कहीं ज्यादा स्पष्ट है। अफ्रीका में जहां 67 फीसदी तटीय इलाके समुद्रों से दूर जा रहे हैं। वहीं ओशिनिया के 59 फीसदी तटीय क्षेत्रों में पीछे हटने की प्रवृत्ति देखी गई है।

हालांकि दूसरी ओर एशिया और दक्षिण अमेरिका के कई इलाकों में तटीय विस्तार जारी है, यानी लोग जोखिम के बावजूद समुद्र की ओर बढ़ रहे हैं।

अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि दुनिया के कई कमजोर तटीय इलाकों, खासकर अफ्रीका और एशिया में, अब भी लोग समुद्र से दूर नहीं जा पा रहे। गरीबी, संसाधनों की कमी, आजीविका के सीमित विकल्प, तटीय जमीन पर निर्भरता इसकी बड़ी वजहें हैं। इनकी वजह से कई कमजोर समुदाय जोखिम के बावजूद तटों पर ही रहते हैं।

नतीजन वे तटीय बाढ़ और कटाव जैसी जलवायु आपदाओं के प्रति और अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

अमीर देशों में समुद्र के करीब बसने की प्रवृत्ति

दिलचस्प बात यह है कि समुद्र से दूर जाने की प्रवृत्ति सबसे ज्यादा मझोले आय वाले देशों में दिखती है। शोधकर्ताओं के अनुसार ये देश एक अहम मोड़ पर खड़े हैं। यह देश न तो इतने गरीब हैं कि कुछ न कर सकें, और न इतने अमीर कि पूरी तरह सुरक्षित बुनियादी ढांचा विकसित कर सकें।

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हालांकि इनके पास सुरक्षित जगहों पर बसाने के लिए क्षमता और धन तो है। इसलिए इन देशों में योजनाबद्ध तरीके से तटों से दूर जाना अधिक दिखता है।

देखा जाए तो कमजोर और बहुत अधिक आय वाले दोनों तरह के क्षेत्र समुद्र के पास ही बने रहते हैं या और भी करीब जाते हैं, लेकिन उनकी वजहें बिल्कुल अलग-अलग हैं। कमजोर इलाकों में लोग रोजगार, बुनियादी सुविधाओं और आर्थिक अवसरों की तलाश में तट के पास ही बसे रहते हैं।

इसके विपरीत, अमीर देश अपनी मजबूत संरचनाओं, शुरुआती चेतावनी प्रणालियों और तटीय सुरक्षा उपायों पर भरोसा करते हुए समुद्र के करीब रहना सुरक्षित समझते हैं।

लेकिन केवल भरोसे के दम पर काम नहीं चलता। उदाहरण के लिए डेनमार्क के कई हिस्सों में हो रहा तटीय कटाव दिखाता है कि अब अंदरूनी इलाकों में पहले से योजना बनाना और इन आपदाओं से निपटने की क्षमता को बढ़ाने के उपाय बेहद जरूरी होते जा रहे हैं।

स्टडी ने पुष्टि की है कि बीते वर्षों में तटवर्ती इलाकों के पीछे हटने की मुख्य वजह आपदाएं नहीं हैं, बल्कि मौजूदा समय में जोखिम का सामना करने के लिए कितने तैयार हैं इस बात पर निर्भर करता है कि लोग रहेंगें या हटेंगें।

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अध्ययन में “मिक्स्ड-इफेक्ट्स मॉडलिंग” नाम की सांख्यिकीय तकनीक का इस्तेमाल किया है, जो जटिल आंकड़ों का विश्लेषण करने में मदद करती है। इस पद्धति से पता चला कि अगर किसी क्षेत्र की अनुकूलन क्षमता में एक फीसदी का सुधार होता है, तो तटीय क्षेत्रों के पीछे हटने की रफ्तार 4.2 फीसदी तक कम हो जाती है। इसी तरह, बुनियादी ढांचे की सुरक्षा में एक फीसदी की बढ़ोतरी से यह रफ्तार 6.4 फीसदी तक घट जाती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह अध्ययन दुनिया के सभी तटीय देशों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। असली सवाल यह नहीं कि खतरा कितना बड़ा है, बल्कि यह है कि समाज उसे झेलने और उसका मुकाबला करने के लिए कितना तैयार है। जिन देशों में तटीय विकास तेजी से बढ़ रहा है, उन्हें भविष्य की महंगी गलतियों से बचने के लिए अभी से सोची-समझी और योजनाबद्ध कार्रवाई करने की जरूरत है।

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