
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने चेताया है कि 2050 तक समुद्रों पर इंसानी दबाव दोगुना हो जाएगा, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा असर पड़ेगा।
बढ़ते तापमान, मछलियों की कमी और प्रदूषण के कारण समुद्र का संतुलन बिगड़ रहा है। यह अध्ययन बताता है कि समुद्र पर मानवीय गतिविधियों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि आने वाले वर्षों में उष्णकटिबंधीय और ध्रुवीय क्षेत्र सबसे तेज बदलाव झेलेंगे।
भविष्य में समुद्र के तापमान में वृद्धि और मछली भंडार में गिरावट को समुद्र पर मानवीय प्रभाव का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह असर बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जबकि पहले से ही प्रभावित ध्रुवीय क्षेत्रों में इसके और बढ़ने की आशंका है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सांता बारबरा के शोधकर्ताओं ने चेताया है कि मौजूदा समय की तुलना में 2050 तक समुद्रों पर इंसानी गतिविधियों का प्रभाव दोगुणा हो जाएगा। यह बढ़ोतरी महज 25 वर्षों में होगी, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा असर पड़ेगा।
समुद्र सदियों से मानव जीवन का आधार रहे हैं। हजारों वर्षों से इंसान ने भोजन, व्यापार, पर्यटन और जीवनयापन के लिए इन्हीं समुद्रों पर भरोसा किया है। लेकिन बढ़ता जलवायु संकट और इंसानी गतिविधियां समुद्र को एक ऐसे खतरनाक मोड़ की ओर धकेल रही हैं, जहां से वापसी नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर होगी।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और समुद्री पारिस्थितिकी विज्ञानी बेन हैल्पर्न का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “समुद्र पर हमारा सामूहिक असर पहले ही बहुत बड़ा है, लेकिन अगले 25 सालों में यानी 2050 तक यह दोगुना हो जाएगा।“
समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा गहरा असर
उनके मुताबिक, समुद्र पर बढ़ते इंसानी दबाव जैसे तापमान में वृद्धि, मछलियों की संख्या में आ रही कमी, समुद्र स्तर का बढ़ना, अम्लीकरण और पोषक तत्वों से हो रहा प्रदूषण, यह सभी मिलकर समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर असर डाल रहे हैं जो बेहद डरावना है। उनका आगे कहना है कि हैरानी की बात यह नहीं कि असर बढ़ेगा, बल्कि यह है कि आने वाले दशकों में यह इतना ज्यादा और इतनी तेजी से बढ़ेगा।“
हैल्पर्न का कहना है, “पहले लोग हर समस्या को अलग-अलग देखते थे, इसके पूरे चित्र को नहीं। सबसे बड़ी गलती यह थी कि हम यह मान बैठे थे कि समुद्र इतना विशाल है कि इंसानों का उस पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।“
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के नेशनल सेंटर फॉर इकोलॉजिकल एनालिसिस एंड सिंथेसिस से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए हैं।
दक्षिण अफ्रीका की नेल्सन मंडेला यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के साथ किए गए इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि आने वाले वर्षों में उष्णकटिबंधीय और ध्रुवीय क्षेत्र सबसे तेज बदलाव झेलेंगे। अध्ययन में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि सबसे अधिक प्रभाव समुद्री तापमान में हो रही वृद्धि और मछलियों की संख्या में आ रही गिरावट से होगा।
अध्ययन के मुताबिक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सहनशक्ति सीमित है। यदि यह ऐसे ही दबाव बढ़ता रहा तो समुद्री जीवन और उससे जुड़ी मानव आजीविका पर गंभीर खतरा आएगा। इससे मछली पकड़ने वाले समुदाय, तटीय पर्यटन और जल स्रोत सभी प्रभावित होंगे।
इससे पहले 2008 में किए अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह दिखाया है कि समुद्रों पर मानव गतिविधियों का कितना और कहां तक असर पड़ा है।
इस अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले थे, जिसके मुताबिक धरती पर समुद्रों का कोई भी इलाका अछूता नहीं है, और करीब 41 फीसदी क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित पाए गए। हैल्पर्न का कहना है, “पहला अध्ययन हमें यह दर्शाता है कि हम अभी कहां हैं, और यह नया अध्ययन बताता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं।“
भविष्य में समुद्र के तापमान में वृद्धि और मछली भंडार में गिरावट को समुद्र पर मानवीय प्रभाव का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। इसके अलावा, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह असर बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जबकि पहले से ही प्रभावित ध्रुवीय क्षेत्रों में इसके और बढ़ने की आशंका है।
प्रभावों से परे नहीं इंसान
अध्ययन के मुताबिक, इन बढ़ते मानवीय प्रभावों का सबसे बड़ा असर दुनिया के तटीय क्षेत्रों पर पड़ेगा। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि समुद्र का अधिकांश उपयोग तटों के पास होता हैं। लेकिन साथ ही यह एक 'चिंताजनक परिणाम' भी है, क्योंकि तटीय इलाके ही वे स्थान हैं जहां लोग समुद्र से सबसे अधिक लाभ लेते हैं।
इसके अलावा, कई देश भोजन, आजीविका और अन्य जरूरी संसाधनों के लिए समुद्र पर निर्भर हैं। इन देशों में इस दबाव में भारी वृद्धि देखने को मिलेगी।
अन्य रिसर्च में सामने आया है कि 1960 से 2018 के बीच पिछले करीब छह दशकों वैश्विक मत्स्य उद्योग ने समुद्र से करीब 400 करोड़ टन समुद्री जीवों को पकड़ा है। इससे समुद्र से करीब 56 करोड़ टन पोषक तत्व खत्म हो गए हैं। यह पोषक तत्व समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी थे।
गौरतलब है कि यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग द्वारा किए एक अन्य शोध में सामने आया है कि हिन्द महासागर सहित दुनिया के 50 फीसद से ज्यादा महासागर पहले ही जलवायु परिवर्तन का दंश झेल रहे हैं, जबकि अनुमान है कि आने वाले कुछ दशकों में यह आंकड़ा बढ़कर 80 फीसदी तक जा सकता है।
आशंका है कि अब तक इसका असर अटलांटिक, प्रशांत और हिन्द महासागर के 20 से 55 फीसदी हिस्से पर पड़ चुका है, जहां जलवायु में आ रहे बदलावों के कारण तापमान और खारेपन में भी बदलाव आ चुका है। जबकि अनुमान है कि सदी के मध्य तक यह आंकड़ा 40 से 60 फीसदी तक बढ़ जाएगा। वहीं 2080 तक 55 से 80 फीसदी हिस्से जलवायु परिवर्तन की चपेट में होंगे।
बता दें कि हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि समुद्र हमारे द्वारा उत्सर्जित गर्मी का करीब 90 फीसदी हिस्सा सोख लेते हैं। जबकि जर्नल नेचर में छपी एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार यह आईपीसीसी अनुमान से करीब 60 फीसदी ज्यादा तेजी से गर्म हो रहे हैं।
ऐसे में इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को कम करने और बेहतर मछली प्रबंधन से जुड़ी नीतियां लागू करने से इस बढ़ते खतरे को रोका जा सकता है। साथ ही, विशेष रूप से खारे दलदल और मैंग्रोव जैसे संवेदनशील समुद्री आवासों की सुरक्षा करना भी बेहद आवश्यक है।