
बात चाहे प्रशांत महासागर की हो या हिन्द महासागर की, ये सभी अब तक के सबसे तेजी से गर्म होने के दौर से गुजर रहे हैं। हालांकि वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि यह गर्मी दो खास पट्टियों में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। इनमें से एक बैंड दक्षिणी गोलार्ध में है, जबकि दूसरी उत्तरी गोलार्ध में। जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर केविन ट्रेनबर्थ के नेतृत्व में किए नए अध्ययन से पता चला है कि यह दोनों क्षेत्र भूमध्य रेखा से करीब 40 डिग्री अक्षांश के आसपास मौजूद हैं।
जर्नल ऑफ क्लाइमेट में प्रकाशित इस अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि 40 से 45 डिग्री दक्षिण के बीच का क्षेत्र सबसे तेजी से गर्म हो रहा है। खासतौर से न्यूजीलैंड, तस्मानिया और अर्जेंटीना के पूर्व में अटलांटिक महासागर के पानी में यह असर कहीं अधिक देखा गया है।
वहीं दूसरा बैंड, 40 डिग्री उत्तर में है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव उत्तरी अटलांटिक में अमेरिका के पूर्वी तटों और जापान के पूर्व में उत्तर प्रशांत महासागर पर पड़ रहा है।
इस बारे में डॉक्टर ट्रेनबर्थ, जोकि ऑकलैंड विश्वविद्यालय और अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च से जुड़े हैं, कहते हैं, “जलवायु आंकड़ों से ऐसा साफ पैटर्न निकलकर आना बेहद असामान्य है।“
इस अध्ययन में डॉक्टर ट्रेनबर्थ का साथ चीनी विज्ञान अकादमी के लिजिंग चेंग और युयिंग पैन, एनसीएआर के जॉन फासुलो, तथा वियना विश्वविद्यालय और यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फॉरकास्ट से जुड़े वैज्ञानिक माइकल मेयर ने भी दिया है।
देखा जाए तो महासागरों के गर्म होने से ने केवल समुद्री जीवन प्रभावित होता है। इससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। साथ ही इसकी वजह से वातावरण में जलवाष्प की मात्रा भी बढ़ जाती है, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। नतीजन यह बदलाव भारी बारिश, तूफान और चरम मौसमी घटनाओं को भी बढ़ावा देता है।
शोध के मुताबिक समुद्रों में गर्मी बढ़ने के ये खास क्षेत्र 2005 से बनने लगे हैं। यह जेट स्ट्रीम के ध्रुवों की ओर खिसकने और समुद्री धाराओं में आए बदलावों के साथ विकसित हुए हैं। गौरतलब है कि धरती की ऊपरी सतह पर पश्चिम से पूर्व की ओर बहने वाली तेज हवाओं को जेट स्ट्रीम के नाम में जाना जाता है।
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 2000 से 2023 के बीच समुद्री और वायुमंडलीय आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उन्होंने 2000 से 2004 के समय को आधार मानते हुए सतह से 2000 मीटर की गहराई तक हर 1 डिग्री अक्षांश पर समुद्री तापमान में आए बदलावों की जांच की है। यह बदलाव जेटाजूल्स में मापे गए हैं।
अध्ययन में यह भी पता चला है कि इन दो प्रमुख क्षेत्रों के अलावा, 10 डिग्री उत्तर से 20 डिग्री दक्षिण अक्षांश तक के क्षेत्र यानी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी गर्मी बढ़ी है। हालांकि, यहां असर थोड़ा कम स्पष्ट था क्योंकि इस क्षेत्र में 'अल नीनो' और 'ला नीना' जैसे जलवायु पैटर्न का प्रभाव भी रहता है।
ट्रेनबर्थ ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "यह भी असामान्य है कि उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों यानी 20 डिग्री अक्षांश के आस-पास गर्मी में कोई खास बढ़ोतरी नहीं देखी गई है।“
उनके मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ने से जलवायु में बदलाव हो रहा है, और इस अतिरिक्त गर्मी का अधिकांश हिस्सा समुद्रों में जमा हो रहा है। हालांकि, यह बदलाव हर जगह एक समान नहीं है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इसमें प्राकृतिक बदलावों की भी अहम भूमिका है।