भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते हिन्द महासागर में ऊंची लहरे उठ सकती हैं। जो तटों के आसपास भीषण तबाही की वजह बन सकती है। अध्ययन से संकेत मिले हैं कि बंगाल की खाड़ी, दक्षिण चीन सागर और दक्षिण हिंद महासागर के कई क्षेत्र भविष्य में इन ऊंची लहरों के चपेट में आ सकते हैं।
देखा जाए तो तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदाय जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय बदलावों के प्रति सबसे ज्यादा सवेंदनशील होते हैं। बाढ़ और जल स्तर के बार-बार बढ़ने से तटों पर रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। तटों पर आने वाली बाढ़ जहां तटरेखा की आकारिकी में बदलाव कर सकती है वहीं यह बुनियादी ढांचे को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
भूजल में खारे पानी के मिलने से साफ पानी का संकट पैदा हो सकता है। इतना ही नहीं यह तटीय बाढ़ फसलों के विनाश के साथ-साथ अनेक तरह से इंसानों पर सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी डालती है। यही वजह है कि दुनिया भर में वैज्ञानिक इस बात को जानने का प्रयास कर रहे हैं कि इसके असर कितने व्यापक और भयावह हो सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने अपने इस नए शोध में आईपीसीसी द्वारा अनुमानित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के दो अलग-अलग परिदृश्यों में लहरों और हवा पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने का प्रयास किया है, जिसमें आरसीपी 4.5 एवं आरसीपी 8.5 को शामिल किया गया है। इसके लिए उन्होंने हवा की गति, दबाव, समुद्र के स्तर और सदी के मध्य और अंत में समुद्र की सतह के तापमान और उनके संबंधों की विस्तृत जांच की है।
शोध के मुताबिक जून से अगस्त और सितंबर से नवंबर के बीच दक्षिणी हिन्द महासागर में हवा और लहरें अपने चरम पर जा सकती हैं। यह भी पता चला है कि बंगाल की खाड़ी के मध्यवर्ती क्षेत्रों में भी सदी के अंत तक हवा की गतिविधियां चरम पर जा सकती हैं। जो चरम घटनाओं की सम्भावना में वृद्धि को भी दर्शाता है।
इसी तरह जून से अगस्त के बीच दक्षिण हिंद महासागर के ऊपर चरम लहरों की ऊंचाई में भी लगभग एक मीटर की वृद्धि देखी गई है। इतना ही नहीं उत्तरी हिंद महासागर, उत्तर पश्चिम अरब सागर, बंगाल की खाड़ी के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों और दक्षिण चीन सागर के कई क्षेत्रों में लहर की ऊंचाई में 0.4 मीटर की अधिकतम वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
समुद्र के तापमान में हो सकती है 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि
निष्कर्ष से पता चला है कि आरसीपी 4.5 परिदृश्य में लहरों की ऊंचाई में होने वाला अनुमानित परिवर्तन दक्षिण चीन सागर के लिए सबसे ज्यादा है। वहीं अनुमान है कि आरसीपी 8.5 परिदृश्य के तहत सदी के अंत तक लहरों की ऊंचाई में 23 फीसदी वृद्धि होने की सम्भावना है। इसके अलावा पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में हवाओं और लहरों में होने वाला अनुमानित परिवर्तन, समुद्र के स्तर के दबाव में आते बदलाव और वहां के तापमान में होते बदलावों के अनुरूप ही है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि दिसंबर से फरवरी और जून से अगस्त के बीच अरब सागर में समुद्र की सतह के तापमान में डेढ़ से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इसी तरह ओमान और फारस की खाड़ी के क्षेत्रों में आरसीपी 8.5 के तहत सदी के अंत तक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हो सकती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि मौसमी तौर पर हिन्द महासागर के ऊपर चरम लहरों और हवा का यह पैटर्न, सीधे तौर पर चरम पवनों की गतिविधियों के स्थान से सम्बंधित है। वैज्ञानिकों ने बंगाल की खाड़ी के मध्यवर्ती हिस्सों में उन क्षेत्रों की पहचान की है, जहां सदी के अंत तक हवा की गति अपने चरम पर 13 से 15 मीटर प्रति सेकंड तक जा सकती है।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि आरसीपी 8.5 के अंतर्गत सदी के अंत तक बंगाल की खाड़ी के उत्तरी, मध्य और पूर्वी क्षेत्रों, दक्षिण चीन सागर के दक्षिणी हिस्सों, अरब सागर के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों के साथ हिंद महासागर के पूर्वी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लहरों में 1से 1.25 मीटर का बदलाव देखा जा सकता है।
यह अध्ययन महासागर इंजीनियरिंग और नौसेना वास्तुकला विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के वैज्ञानिकों द्वारा मिल कर किया गया है। जिसमें भारत साकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने सहायता की है। यह अध्ययन जर्नल क्लाइमेट डायनेमिक्स में प्रकाशित हुआ है।