दुनिया में जिस तरह उत्सर्जन बढ़ रहा है, उसके साथ-साथ जलवायु का कहर भी बढ़ता जा रहा है। आज प्रकृति का यह कोप अलग-अलग रूपों में इंसानों पर गाज बनकर गिर रहा है। समुद्रों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, जो इस समय बड़े बदलावों का सामना कर रहे हैं। देखा जाए तो समुद्र में आते इन बदलावों का सबसे ज्यादा खामियाजा तटीय समुदायों को भुगतना पड़ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि समय के साथ महासागरों में बदलाव की यह रफ्तार तेज हो रही है। बढ़ते तापमान से समुद्र भी सुरक्षित नहीं हैं। महीने दर महीने समुद्र का तापमान नए रिकॉर्ड बना रहा है। नतीजन विनाशकारी परिणाम सामने आ रहे हैं।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) द्वारा जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण-पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में समुद्र का जलस्तर दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में कहीं तेजी से बढ़ रहा है। इतना ही नहीं यदि 1980 के बाद से देखें तो वैश्विक औसत की तुलना में महासागर तीन गुणा तेजी से गर्म हो रहे हैं। नतीजन समुद्र में लू का प्रकोप करीब दोगुना हो गया है। इतना ही नहीं यह घटनांए पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी हो गई और और इनका प्रकोप लम्बे समय तक रह रहा है।
इसके साथ ही बढ़ते तापमान और समुद्र के जलस्तर की वजह से तूफान पहले से कहीं ज्यादा प्रचंड रूप ले चुके हैं और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की घटनाएं कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। रिपोर्ट से पता चला है 2023 में प्रशांत क्षेत्र में बाढ़ तूफान जैसी 34 आपदाओं का सामना किया है, जिसमें 200 से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं। इतना ही नहीं इन आपदाओं की वजह से ढाई करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं।
मार्च में, दो शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात, केविन और जूडी ने 48 घंटों के भीतर वानुअतु में दस्तक दी थी। बाद में, अक्टूबर में चक्रवात लोला ने वानुअतु को प्रभावित किया, जिसके कारण सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों में छह महीने की आपात स्थिति की घोषणा करनी पड़ी।
फरवरी 2023 में, उष्णकटिबंधीय चक्रवात गैब्रिएल के चलते पूर्वी न्यूजीलैंड को भारी बारिश का सामना करना पड़ा। जुलाई 2023 में तूफान डोक्सुरी की वजह से फिलीपींस में भारी बारिश और बाढ़ की घटना सामने आई थी। इसकी वजह से 45 लोगों की जान चली गई, जबकि 313,000 लोगों को अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
रिपोर्ट के मुताबिक प्रशांत द्वीपसमूह समुद्र के जल स्तर में होती वृद्धि, बढ़ते तापमान और अम्लीकरण की तिहरी मार झेल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण उपजी यह समस्याएं इन द्वीप समूहों को सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर बना रही हैं। यहां तक कि इन द्वीपों के अस्तित्व को भी खतरे में डाल रही हैं।
गौरतलब है कि यह रिपोर्ट टोंगा में प्रशांत द्वीप समूह की हो रही बैठक के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और विश्व मौसम विज्ञान संगठन की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने जारी की है।
इस रिपोर्ट के साथ उन्होंने गर्म होती दुनिया में समुद्र के बढ़ते जलस्तर पर एक विशेष ब्रीफिंग भी जारी की है, जो गुटेरेस के मुताबिक समुद्र के बढ़ते जलस्तर के लिए एक एसओएस की तरह है। उनके अनुसार समुद्र का जलस्तर खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है, जिससे प्रशांत क्षेत्र के यह खूबसूरत द्वीप खतरे में पड़ गए हैं। जलस्तर के बढ़ने की ऐसी अभूतपूर्व वृद्धि पिछले 3,000 वर्षों में भी नहीं देखी गई है।
उनका आगे कहना है कि यह बेहद चुनौतीपूर्ण स्थिति है, इस बढ़ते स्तर के लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। उन्होंने खतरे पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संकट जल्द ही ऐसे स्तर पर पहुंच जाएगा, जहां सुरक्षा के लिए किए किए कोई भी उपाय कारगर नहीं होंगे।
दोस्त से दुश्मन बनते समुद्र
इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए गुटेरेस ने कहा है कि इसके लिए मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन जिम्मेवार है, जो जीवाश्म ईंधन की वजह से पैदा हो रही हैं। इन गैसों की वजह से बढ़ता तापमान हमारे ग्रह को झुलसा रहा है। वहीं इसका ज्यादातर हिस्सा समुद्र सोख रहे हैं।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि प्रशांत क्षेत्र के यह द्वीप वैश्विक उत्सर्जन के केवल 0.02 फीसदी हिस्से के लिए ही जिम्मेवार हैं। लेकिन वे इसकी वजह से पैदा होने वाले खतरों से विशेष रूप से जोखिम में हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यहां के ज्यादातर द्वीप समुद्र तल से महज एक से दो मीटर ऊपर हैं। इतना ही नहीं यहां की 90 फीसदी आबादी तटों के पांच किलोमीटर के दायरे में रहती है, वहीं आधी इमारतें और बुनियादी ढांचा समुद्र के 500 मीटर के दायरे में मौजूद है। ऐसे में जलस्तर या तापमान में होती वृद्धि इनके लिए विशेष रूप से खतरा बन सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार यदि उत्सर्जन में भारी कटौती नहीं की जाती तो प्रशान्त क्षेत्र के द्वीप सदी के मध्य तक समुद्र के जलस्तर में हुई कम से कम 15 सेंटीमीटर की अतिरिक्त वृद्धि का सामना करने को मजबूर होंगें। ऐसे में कुछ स्थानों पर सालाना 30 दिन तक तटीय बाढ़ आ सकती है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेश ने वैज्ञानिक तथ्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिक क्षेत्र में जमा बर्फ की चादरें तेजी से पिघल सकती हैं। नतीजन अलगे हजार वर्षों में समुद्र के जलस्तर में 20 मीटर तक की वृद्धि हो सकती है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "समुद्र ने ग्रीनहाउस गैसों की वजह से होने वाली अतिरिक्त गर्मी के 90 फीसदी से अधिक हिस्से को सोख लिया है। इसकी वजह से ऐसे बदलाव हो रहे हैं जो सदियों तक बने रहेंगे। इंसानी गतिविधियों ने समुद्रों की क्षमता पर गहरा असर डाला है, जिसकी वजह से उनकी इंसानों का समर्थन करने और उनकी सुरक्षा करने की क्षमता कमजोर हो गई है।"
खतरे की जद से बाहर नहीं भारत
समुद्र में जमा होती यह गर्मी बढ़ते जलस्तर की वजह बन रही है, क्योंकि बढ़ते तापमान के साथ जल के क्षेत्र में इजाफा होता है। वहीं दूसरी तरफ पिघलते ग्लेशियर और वर्षों से जमा बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्री का जलस्तर बढ़ रहा है।
कहीं न कहीं हम इंसानों ने लम्बे समय से दोस्त रहे समुद्र को अपना दुश्मन बना लिया है। ऐसे में हम पहले से कहीं ज्यादा बाढ़ और गायब होती तटरेखा जैसे खतरों से जूझ रहे हैं। इसके साथ ही समुद्र का बढ़ता स्तर हमारे पेयजल को खारा बना रहे हैं। ऊपर से बाढ़ के बढ़ते खतरे के साथ तटीय समुदायों को अपने घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
देखा जाए तो यह समस्या प्रशांत क्षेत्र में द्वीपों के लिए कहीं ज्यादा विकट है, लेकिन दुनिया के अन्य देश भी इस समस्या से सुरक्षित नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख का कहना है कि दुनिया औद्योगिक काल से पहले की तुलना में तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की ओर बढ़ रही है। यदि ऐसा होता है तो इससे समुद्र के जलस्तर में तेजी से वृद्धि होगी और इसकी वजह से न केवल प्रशांत क्षेत्र बल्कि दुनिया के अन्य देशों पर भी विनाशकारी असर पड़ेंगें। अनुमान है कि दुनिया में 90 करोड़ लोग, यानी हर दसवां इंसान समुद्र के नजदीक रहता है। ऐसे में इस वृद्धि से उनके लिए खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा।
इसकी वजह से भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मालद्वीप, सहित अन्य देशों में तटों के आसपास रहने वाले समुदायों के लिए खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा और उन्हें विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि समुद्र का बढ़ता जल स्तर 2040 तक मुंबई में 13 फीसदी से अधिक जमीन को निगल लेगा। इसी तरह अगले 16 वर्षों में चेन्नई का 7.3 फीसदी (86.8 वर्ग किलोमीटर) हिस्सा पानी में डूबा होगा। जो सदी के अंत तक बढ़कर 18 फीसदी (215.77 वर्ग किलोमीटर) पर पहुंच जाएगा।
जलवायु परिवर्तन पर बनाए अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने भी अंदेशा जताया है कि सदी के अंत तक उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में वैश्विक स्तर पर समुद्र का जलस्तर 1.6 मीटर तक बढ़ सकता है। कहीं न कहीं समुद्र का बढ़ता जलस्तर एक ऐसी सच्चाई है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसे में यह तटीय शहरों को किस हद तक प्रभावित कर सकता है उसपर विचार करना जरूरी है।
ऐसे में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने टोंगा में हुई एक प्रैस वार्ता के दौरान, दुनिया के नेताओं से बढ़ते उत्सर्जन में भारी कटौती करने का आग्रह किया है। साथ ही उन्होंने जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बंद करने और जलवायु अनुकूलन के लिए कहीं ज्यादा निवेश करने पर जोर दिया है। उन्होंने सरकारों से समुद्रों की बचाने और जलवायु कार्रवाई में तेजी लाने की भी बात कही है।
उनके अनुसार यदि हम प्रशान्त क्षेत्र को बचाते हैं, तो हम अपने आप की भी भी रक्षा करेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि दुनिया को हरकत में आना होगा और इससे पहले बहुत देर हो जाए लोगों के जीवन की रक्षा करनी होगी।