
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश की पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय स्थिति पर सरकार से जवाब मांगा है।
यह कदम मानसून के दौरान हुई भारी बारिश और भूस्खलन के कारण उठाया गया है, जिससे राज्य के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान हुआ है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मानवीय गतिविधियां और विकास कार्य पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ा रहे हैं, जिससे समय के साथ गंभीर प्राकृतिक आपदाओं का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है।
अदालत ने पूछा है कि हिमाचल प्रदेश में जोनिंग (यदि की जाती है) किन मानकों पर आधारित है। क्या यह भूकंपीय गतिविधि, भूस्खलन, हरित आवरण या पारिस्थितिक संवेदनशीलता के आधार पर होती है?
प्रश्नावली में यह भी जानने की कोशिश की गई है कि क्या हिमाचल प्रदेश ने यह अध्ययन किया है कि जलवायु परिवर्तन का वहां के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर क्या असर पड़ेगा?
सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितम्बर 2025 को हिमाचल सरकार से राज्य की पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय हालात से जुड़े सवालों पर जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि यह जवाब राज्य वन विभाग के प्रधान सचिव के शपथपत्र के साथ अगली सुनवाई से पहले अदालत में दाखिल करना होगा।
इस मामले में अगली सुनवाई 28 अक्टूबर 2025 को होनी है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि प्रश्नावली के जवाब मामले को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं। इन जवाबों से सुप्रीम कोर्ट को हिमाचल प्रदेश के नागरिकों और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश और उपाय तय करने में मदद मिलेगी।
क्यों उठा मामला?
गौरतलब है कि इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए अदालत ने रिट याचिका दायर की है। दरअसल, इस साल मानसून के दौरान भारी बारिश और भूस्खलन ने हिमाचल में तबाही मचाई। इसकी वजह से राज्य के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को भी भारी नुकसान पहुंचा है।
इस दौरान कई क्षेत्रों में भारी तबाही देखी गई, जिसमें जीवन और संपत्ति दोनों को बड़ा नुकसान हुआ। इस दौरान कई घर, स्थाई भवन और अस्थाई संरचनाएं या तो पानी के साथ बह गईं या भूस्खलनों की वजह से मलबे में बदल गईं।
अदालत का कहना है कि हिमाचल और पूरे हिमालयी क्षेत्र के राज्य गंभीर अस्तित्व संकट का सामना कर रहे हैं। इसी कारण 28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ, जिसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन थे, ने सार्वजनिक हित में एक रिट याचिका दर्ज करने का आदेश दिया।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मानवीय गतिविधियां और विकास कार्य पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ा रहे हैं, जिससे समय के साथ गंभीर प्राकृतिक आपदाओं का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है।
इसके जवाब में हिमाचल सरकार की ओर से एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। व्यापक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त 2025 को वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर को अमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त किया, ताकि वह कोर्ट की सहायता कर सकें। अमिकस क्यूरी ने हिमाचल प्रदेश की रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन और विश्लेषण कर ऐसे कई अहम सवाल उठाए हैं, जिन पर स्पष्टीकरण जरूरी है। यही वजह है कि अदालत ने सरकार से जवाब मांगा है।
किन मुद्दों पर मांगा गया है जवाब?
एक प्रमुख मुद्दा जो सामने आया, वह था जोनिंग, यानी हिमाचल प्रदेश में जोनिंग (यदि की जाती है) किन मानकों पर आधारित है। क्या यह भूकंपीय गतिविधि, भूस्खलन, हरित आवरण या पारिस्थितिक संवेदनशीलता के आधार पर होती है?
एक और महत्वपूर्ण सवाल यह उठाया गया कि क्या राज्य में ऐसे पारिस्थितिक क्षेत्र हैं जहाँ औद्योगिकीकरण या बड़ी परियोजनाओं (मेगा प्रोजेक्ट्स) पर रोक है। इसके साथ ही अमिकस क्यूरी ने प्रश्नावली में यह भी पूछा कि कुल वन क्षेत्र कितना है और पिछले बीस वर्षों में कितने वन क्षेत्र को गैर-वन उपयोग के लिए बदला गया है?
प्रश्नावली में यह भी जानने की कोशिश की गई है कि क्या हिमाचल प्रदेश ने यह अध्ययन किया है कि जलवायु परिवर्तन का वहां के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर क्या असर पड़ेगा?