विकास के नाम पर पर्यावरण और पारिथितिकी के साथ किए जा रहे खिलवाड़ का नतीजा पिछले तीन दिनों में हिमाचल में देखने को मिला है। पिछले तीन दिनों में हिमाचल में 4 हजार करोड़ रुपए से अधिक की संपति को नुकसान पहुंचा है। यदि मॉनसून सीजन की बात करें तो 16 दिनों में हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं में 72 से अधिक जानें चली गई हैं।
लेकिन खास बात यह है कि प्राकृतिक आपदाओं की वजह से विनाश का सबसे भयावह मंजर विकास परियोजनाओं वाले क्षेत्रों में सबसे अधिक देखने को मिला है। यही वजह है कि एक बार फिर से विशेषज्ञ राज्य के विकास मॉडल पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जहां-जहां विकास के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, वहां सबसे अधिक नुकसान देखने को मिला है।
सबसे अधिक नुकसान शिमला और कुल्लू-मनाली घाटी में हुआ है। पर्यटन की दृष्टि से प्रसिद्ध इन दोनों जिलों में पिछले कुछ समय में बेतहाशा निर्माण कार्य चला हुआ है। पिछले पांच साल से सड़कों की फोर लेनिंग को काम जोरों पर चल रहा है। इस काम के लिए भारी मशीनरी और ब्लॉस्टिंग तकनीक का सहारा लिया गया और पहाड़ियों को काटकर सड़कों को चौडा किया जा रहा है। नदी की तरफ बड़ी- बड़ी दीवारें लगाई गई, जिससे नदी संकरी होती गई।
पर्यावरण संबंधी मामलों के जानकार व वरिष्ठ पत्रकार अश्वनी शर्मा ने बताया कि अतिक्रमण करके अवैज्ञानिक तरीके से नदियों के किनारे होटल और अन्य सड़क निर्माण किए गए। इस कारण नुकसान ज्यादा हो रहा है। यह प्राकृतिक नहीं मानव द्वारा रचित आपदाएं हैं।
वह बताते हैं कि विकास और आपदाओं में गहरा संबंध है। बाढ़ तो पहले भी आती थी, लेकिन अब इसमें पानी के साथ बोल्डर, लकड़ी और अन्य निर्माण सामग्री बह कर आ रही है। उस वजह से ज्यादा नुकसान हो रहा है।
शर्मा बताते हैं, चंबा जैसे कुछ पुराने शहर हैं, जहां नए निर्माण नहीं हुए और ना ही कोई बड़ी परियोजना शुरू हुई। इस वजह से वहां नुकसान नहीं हुआ।
इंपैक्ट एडं पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के रिसर्च फैलो टिकेंद्र पंवर ने बताया कि हिमालय के नाश में बेतहाशा सड़कों का निर्माण और उनका चौड़ीकरण का अहम योगदान है। देखिए, शिमला-कालका रोड पहले कभी बंद नहीं होती थी, लेकिन जबसे इसको चौड़ा करने का काम शुरू, तब से यह अकसर बंद हो जाती है।
हिमधारा पर्यावरण समूह की संस्थापक मानसी अशर कहती हैं कि शहरीकरण, रेपिड कंस्टक्शन और सड़क निर्माण व इनके चौडीकरण की वजह से भू कटाव और पेड़ों का कटान भारी मात्रा में हुआ है। जिसकी वजह से छोटी सी आपदा भी बड़ी त्रासदी में परिवर्तित हो जा रही है।
राज्य में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के खिलाफ नो मीन्स नो कैंपेन चलाने वाले युवा पर्यावरणविद महेश नेगी कहते हैं कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि हाइड्रो प्रोजेक्ट्स जैसी परियोजनाओं की वजह से प्राकृतिक आपदाएं बढ़ी हैं, लेकिन सरकार उनकी अनदेखी कर देती है।