वैज्ञानिकों की चेतावनी: ग्लोबल वार्मिंग के बाद आ सकता है हिमयुग!

नया वैज्ञानिक शोध बताता है कि पृथ्वी की प्राकृतिक प्रणाली कभी-कभी ज्यादा ठंडक लाकर हिमयुग जैसी स्थिति बना सकती है।
वैज्ञानिकों ने खोजा कार्बन चक्र का नया पहलू, जो पृथ्वी को अत्यधिक ठंडक की ओर धकेल सकता है।
वैज्ञानिकों ने खोजा कार्बन चक्र का नया पहलू, जो पृथ्वी को अत्यधिक ठंडक की ओर धकेल सकता है।प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • वैज्ञानिकों ने खोजा पृथ्वी के जलवायु संतुलन में एक नया तत्व, जो दिखाता है कि ज्यादा गर्मी के बाद पृथ्वी खुद को जरूरत से ज्यादा ठंडा कर सकती है।

  • पारंपरिक मॉडल में केवल चट्टानों के क्षरण से कार्बन डाइऑक्साइड हटाने की बात थी, लेकिन नई रिसर्च में समुद्री जैविक गतिविधियों को भी महत्वपूर्ण बताया गया है।

  • गर्म जलवायु में समुद्र में पोषक तत्वों की अधिकता प्लवक को बढ़ाती है, जो सीओ2 को सोखते हैं और मरने के बाद उसे समुद्र में जमा कर देते हैं।

  • यह जैविक प्रतिक्रिया कभी-कभी इतनी तेज होती है कि पृथ्वी का तापमान सामान्य से नीचे गिर सकता है, जिससे हिमयुग जैसी स्थिति बन सकती है।

  • हालांकि भविष्य में ऐसा संभव है, लेकिन यह प्रक्रिया बेहद धीमी है, इसलिए आज के ग्लोबल वार्मिंग संकट से निपटने के लिए यह भरोसेमंद उपाय नहीं हो सकता।

हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड (यूसीआर) के शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के प्राकृतिक कार्बन चक्र में एक बड़ी खामी का पता लगाया है। उनका कहना है कि यह खामी इस बात को समझाने में मदद करती है कि कैसे पृथ्वी के तापमान में असामान्य बदलाव आ सकते हैं और लंबे समय में दुनिया के तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) के बाद अत्यधिक ठंडक, यानी हिमयुग (आइस ऐज) आ सकता है।

पारंपरिक सोच क्या कहती है?

पारंपरिक दृष्टिकोण यह मानता है कि पृथ्वी का तापमान मुख्यतः रॉक वेदरिंग या चट्टानों के प्राकृतिक क्षरण प्रक्रिया से नियंत्रित होता है। इस प्रक्रिया में बारिश वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) को अवशोषित करती है और उसे भूमि पर मौजूद चट्टानों, विशेषकर ग्रेनाइट जैसी सिलिकेट चट्टानों, तक ले जाती है।

धीरे-धीरे चट्टानें घुलती हैं और यह कार्बन और कैल्शियम समुद्र तक पहुंचते हैं। समुद्र में ये मिलकर शंख, कोरल और लाइमस्टोन रीफ का निर्माण करते हैं, जिससे कार्बन लंबे समय तक समुद्र तल में स्थिर हो जाता है।

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जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म होती है, चट्टानों का क्षरण तेज होता है और अधिक सीओ2 अवशोषित होकर वायुमंडल से निकल जाता है। इससे ग्रह ठंडा होने लगता है। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि जैसे ही ग्रह गर्म होता है, चट्टानें तेजी से कार्बन को अवशोषित करती हैं और फिर से ठंडा कर देती हैं।

लेकिन यह संतुलन क्यों बिगड़ा?

लेकिन पुरानी भूवैज्ञानिक प्रमाणों से पता चलता है कि पृथ्वी के शुरुआती हिमयुग इतने गंभीर थे कि पूरा ग्रह बर्फ और हिम की चादर से ढक गया था। इसका मतलब यह हुआ कि केवल चट्टानों के माध्यम से धीरे-धीरे तापमान संतुलित करना पूरी कहानी नहीं हो सकती।

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क्या कहता है नया शोध?

शोधकर्ताओं ने पाया कि समुद्र में कार्बन जमा होना भी इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाता है। जब वायुमंडल में सीओ2 बढ़ता है और ग्रह गर्म होता है, तो अधिक पोषक तत्व जैसे फास्फोरस समुद्र में बहकर पहुंचते हैं। ये पोषक तत्व प्लैंकटन की वृद्धि को प्रोत्साहित करते हैं। प्लैंकटन सूर्य की रोशनी की मदद से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। जब प्लैंकटन मरते हैं, तो उनका शरीर कार्बन के साथ समुद्र तल में गिरता है, जिससे कार्बन स्थायी रूप से जमा हो जाता है।

लेकिन गर्म और पोषक तत्वों से भरे समुद्रों में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण फास्फोरस समुद्र तल में जमा होने के बजाय फिर से समुद्र में रिसाइकिल हो जाता है।

इससे एक प्रतिक्रिया चक्र (फीडबैक लूप) बनता है: अधिक पोषक तत्व -अधिक प्लैंकटन -अधिक कार्बन जमा होना अधिक ठंडक होना है। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे संतुलन बनाने की बजाय पृथ्वी को अत्यधिक ठंडक की ओर ले जा सकती है।

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थर्मोस्टेट की गड़बड़ी?

साइंस में प्रकाशित शोध पत्र में इस प्रक्रिया को समझाते हुए शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि मान लें कि आप घर में एयर कंडीशनर (एसी) चालू करके तापमान 25 डिग्री सेल्सियस रखना चाहते हैं। अगर बाहर गर्मी बढ़ती है, तो एसी ज्यादा ठंडक पैदा करता है। कुछ मामलों में, यह ठंडक जरूरत से ज्यादा हो सकती है। इसी तरह पृथ्वी का 'थर्मोस्टेट' कभी-कभी अत्यधिक ठंडा कर देता है।

शोध में यह भी पाया गया कि प्राचीन समय में वायुमंडलीय ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम था, जिससे यह 'थर्मोस्टेट' और भी अनियमित और अस्थिर था। यही वजह थी कि पुराने हिमयुग इतने गंभीर थे। आज ऑक्सीजन का स्तर अधिक होने के कारण प्रतिक्रिया चक्र कमजोर होगा, लेकिन फिर भी यह अगली हिमयुग की शुरुआत को कुछ हद तक आगे ला सकता है।

तो क्या इसका मतलब यह है कि मानवजनित ग्लोबल वार्मिंग के बाद पृथ्वी अगले हिमयुग में जा सकती है? शोधकर्ताओं का कहना है, हां, लेकिन यह जल्दी नहीं होगा। उनका मॉडल बताता है कि ठंडक का यह अधिकतम असर निश्चित रूप से होगा, लेकिन इतनी तेजी से नहीं कि वर्तमान जलवायु संकट को कम कर सके।

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क्या फिर से आ सकता है हिमयुग?

शोध पत्र में कहा गया है कि चाहे अगला हिमयुग 50,000 साल में शुरू हो या 2,00,000 साल में, असली सवाल यह है कि हमें अभी तापमान बढ़ने को रोकने पर ध्यान देना चाहिए। पृथ्वी का प्राकृतिक थर्मोस्टेट हमारी मदद इस जीवनकाल में नहीं कर सकता।

इस शोध से यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाएं जटिल हैं। ग्लोबल वार्मिंग के वर्तमान दौर में हमें अपनी गतिविधियों और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करना अनिवार्य है। जबकि प्राकृतिक प्रणाली अंततः ग्रह को ठंडा कर देगी, यह प्रक्रिया बहुत धीमी है और हमारे जीवनकाल में इसके प्रभाव का अनुभव नहीं होगा। इसलिए सतत प्रयास और जागरूकता आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

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आज के लिए क्या मतलब है?

वैज्ञानिकों का मानना है कि हमें अभी भी अपने उत्सर्जन को नियंत्रित करने की जरूरत है। यह सच है कि पृथ्वी कभी न कभी फिर से ठंडी होगी, लेकिन इतनी देर में कि यह इस पीढ़ी के किसी काम नहीं आएगी।

इसलिए हमें आज ही कदम उठाने होंगे, कार्बन उत्सर्जन को कम करने, हरियाली बढ़ाने और सतत ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की जरूरत है। प्राकृतिक प्रक्रियाएं हैं, लेकिन वे धीमी हैं और उन पर निर्भर रहना खतरनाक हो सकता है।

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