भविष्य में और अधिक चरम होगा मौसम का पैटर्न, वैज्ञानिकों ने हिमयुग के इशारों से लगाया पता

अध्ययन में समुद्री जीवों के प्राचीन कवचों से हासिल किए गए आंकड़ों को नए जलवायु मॉडलिंग के साथ जोड़ा गया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि गर्म होती दुनिया में अल नीनो पैटर्न किस प्रकार बदल सकता है।
अल नीनो की घटनाएं लगभग हर दो से सात साल में होती हैं और यह अनुमान लगाना कि भविष्य में ये घटनाएं बदल सकती हैं, जलवायु वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
अल नीनो की घटनाएं लगभग हर दो से सात साल में होती हैं और यह अनुमान लगाना कि भविष्य में ये घटनाएं बदल सकती हैं, जलवायु वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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आखिरी हिमयुग करीब 20 हजार साल पहले चरम पर था, भारी मात्रा में ग्लेशियरों के पिघलने व जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों और पारिस्थितिकी तंत्रों का स्वरूप बदल गया था।

एरिजोना विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी का आखिरी हिमयुग भविष्य में होने वाली अल नीनो संबंधी मौसम की घटनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। एल नीनो दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करने वाले सबसे प्रभावशाली जलवायु पैटर्न में से एक है।

इस अध्ययन में समुद्री जीवों के प्राचीन कवचों से हासिल किए गए आंकड़ों को नए जलवायु मॉडलिंग के साथ जोड़ा गया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि गर्म होती दुनिया में अल नीनो पैटर्न किस प्रकार बदल सकता है।

एल नीनो एक जलवायु घटना है जिसकी विशेषता मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्री सतह के तापमान में अनियमित लेकिन सामयिक वृद्धि है। इससे दुनिया भर के मौसम पैटर्न में गड़बड़ी पैदा होती है और सूखा, बाढ़ और लू जैसी चरम घटनाएं होती हैं

अध्ययनकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा कि एल नीनो प्रकृति की एक भयंकर शक्ति है, यह सूखा, बाढ़ और जंगल की आग को भड़काने का काम करती है। जिसके कारण पूरे ग्रह में समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी पैदा होती है, जिसका कृषि से लेकर विमानन उद्योग तक कई क्षेत्रों में व्यापक सामाजिक प्रभाव पड़ता है।

अल नीनो की घटनाएं लगभग हर दो से सात साल में होती हैं और यह अनुमान लगाना कि भविष्य में ये घटनाएं बदल सकती हैं, जलवायु वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

शोध के मुताबिक, कई अत्याधुनिक जलवायु मॉडल मौजूद हैं और वे काम कर रहे हैं और भविष्य में मानवजनित कारणों से तापमान में वृद्धि के लिए अलग-अलग अल नीनो संबंधी प्रतिक्रियाएं होंगी। कुछ शोधकर्ता कहते हैं कि अल नीनो में बदलाव बढ़ेंगे, जबकि अन्य कहते हैं कि इसमें कमी आएगी, यह एक जटिल, बहुआयामी घटना है। इसलिए, अल नीनो के साथ क्या हो सकता है, इसका पता लगाना जलवायु विज्ञान के लिए जरूरी है।

इस गफलत को दूर करने के लिए, शोध टीम ने अतीत की ओर रुख किया। उन्होंने अंतिम हिमनदी पर गौर किया जो लगभग 20,000 साल पहले की अवधि जब उत्तरी अमेरिका और यूरोप के अधिकांश हिस्सों में बर्फ की चादरें थीं।

शोधकर्ताओं ने सामुदायिक पृथ्वी प्रणाली मॉडल का उपयोग किया, जिसे पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का अनुकरण करने और भविष्य के जलवायु परिदृश्यों का पूर्वानुमान लगाने के लिए विकसित किया गया था।

शोध में कहा गया है कि लास्ट ग्लैसिअल मैक्सिमम या अंतिम हिमनद अधिकतम से लेकर आज तक की जलवायु स्थितियों का अनुकरण करने के लिए। यह मॉडल मुख्य रूप से नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के नेतृत्व में एक सहयोगी परियोजना है, जिसमें कई जगहों में योगदान है।

इस मॉडल को प्रमाणित करने के लिए, अध्ययनकर्ताओं और उनकी टीम ने मॉडल के परिणामों की तुलना फोरामिनिफेरा नामक छोटे समुद्री जीवों के अवशेषों से हासिल किए गए आंकड़ों से की। वे समुद्र तल से निकाले गए समुद्री नमूनों में पाए जाते हैं जिनमें हजारों से लेकर लाखों सालों में जमा तलछट की परतें होती हैं।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, ये सुंदर, सूक्ष्म जीव, जो ऊपरी महासागर में तैरते हैं, अपने जीवित रहने के दौरान समुद्र के तापमान को बनाए रखने के लिए खोल बनाते हैं। जैसे-जैसे फोरामिनिफेरा बढ़ते हैं, वे आस-पास के समुद्री पानी से सामग्री का उपयोग करके खोल बनाते हैं।

इन खोलों की रासायनिक संरचना पानी के तापमान के आधार पर बदलती है। यह खोल के निर्माण के समय समुद्र की स्थितियों की एक झलक को संरक्षित करने में सक्षम बनाता है।

जब फोरामिनिफेरा जीवन के कुछ सप्ताह बाद मर जाते हैं, तो उनके खोल समुद्र तल में डूब जाते हैं और तलछट का हिस्सा बन जाते हैं। तलछट की विभिन्न परतों से गोले का विश्लेषण करके, वैज्ञानिक हजारों साल पहले के समुद्र के तापमान का अंदाजा लगा सकते हैं और उनकी तुलना पिछली जलवायु के मॉडल सिमुलेशन से कर सकते हैं।

टीम ने अलग-अलग फोरामिनिफेरा के खोल का विश्लेषण किया, जिससे उन्हें मौसमी तापमान के अंतरों का पता लगाने में मदद मिली, जिन्हें अन्यथा पता लगाना असंभव होता है।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, हम तलछट कोर के एक छोटे से हिस्से पर गौर करते हैं और एक ही परत से कई अलग-अलग गोले का विश्लेषण करते हैं। यह हमें थोड़े समय के भीतर प्रशांत महासागर के तापमान की एक सीमा देता है, जिसकी तुलना हम हिमयुग की आज से तुलना कर सकते हैं।

नेचर पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि वर्तमान समय की तुलना में अंतिम हिमनद अधिकतम के दौरान एल नीनो में बदलाव काफी कम था और ग्रह के गर्म होने के साथ भविष्य में चरम एल नीनो घटनाएं अधिक प्रचलित हो सकती हैं। इससे दुनिया भर में अधिक तीव्र और लगातार मौसम में गड़बड़ी पैदा हो सकती है।

ये निष्कर्ष हिमयुग और भविष्य की स्थितियों दोनों के तहत चरम एल नीनो की विविधताओं के एक सामान्य तंत्र का सुझाव देते हैं, जिससे शोधकर्ताओं को जलवायु मॉडल की भविष्यवाणी को मान्य करने में मदद मिलती है।

शोधकर्ता ने शोध में कहा इससे हमें भविष्य के लिए मॉडल के अनुमानों में अधिक विश्वास हासिल होता है। यदि यह पिछले जलवायु परिवर्तन का सटीक रूप से अनुकरण कर सकता है, तो यह हमें एल नीनो प्रणाली में भविष्य के बदलावों के बारे में सटीक पूर्वानुमान मिलने की अधिक संभावना है।

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