
एक नए अध्ययन से पता चला है कि छोटे समुद्री जीवों द्वारा उत्पादित एक प्राकृतिक गैस दुनिया भर में तापमान में वृद्धि के चलते ग्रह को ठंडा करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है। यह अध्ययन पुणे के भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है।
महासागरों से निकलने वाली सल्फर युक्त गैस डाइमिथाइल सल्फाइड (डीएमएस) वायुमंडल में सल्फर का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत है। यह गैस एरोसोल बनाने में मदद करती है जो सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करती है, जिससे दुनिया भर में तापमान में कमी आती है।
डीएमएस को कभी-कभी कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का "कूल ट्विन" कहा जाता है क्योंकि इसका ग्रह पर ठंडा प्रभाव पड़ता है, जबकि सीओ2 एक ग्रीनहाउस गैस है जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेवार है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि डीएमएस फाइटोप्लांकटन नामक सूक्ष्म समुद्री जीवों द्वारा बनाई जाती है। जब हवा में छोड़ी जाती है, तो यह कणों (एरोसोल) में बदल जाती है जो बादलों को बनाने में मदद करते हैं। ये बादल सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर सकते हैं, जो अवशोषित गर्मी की मात्रा को कम करके पृथ्वी को ठंडा करता है।
वैज्ञानिकों ने लंबे समय से डीएमएस का अध्ययन किया है क्योंकि यह ग्लोबल वार्मिंग पर एक प्राकृतिक तरीके से रोक लगाने वाले के रूप में कार्य कर सकता है।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध में समुद्र के पानी में डीएमएस के स्तर और वायुमंडल में इसके निकलने के तरीके का अनुमान लगाने के लिए उन्नत मशीन-लर्निंग मॉडल का उपयोग किया गया है जो 1850 से 2100 तक बदल सकता है।
शोध में कहा गया है कि पहले के जलवायु मॉडल के विपरीत, जो परस्पर विरोधी परिणाम देते थे, इस शोध ने एक स्पष्ट तस्वीर पेश की है। इसने दिखाया कि आने वाले दशकों में समुद्री जल में डीएमएस की मात्रा कम होने का पूर्वानुमान है, लेकिन वातावरण में छोड़े जाने वाले डीएमएस की मात्रा बढ़ जाएगी।
यह तेज हवाओं और समुद्र की सतह के गर्म तापमान के कारण होता है, जो समुद्र से अधिक डीएमएस को वायुमंडल में धकेलने में मदद करते हैं। डीएमएस उत्सर्जन में वृद्धि से ग्रह पर शीतलन प्रभाव पड़ सकता है।
क्योंकि कोयला और तेल जलाने जैसी मानवजनित गतिविधियां, सख्त वायु गुणवत्ता नियमों के कारण कम सल्फर डाइऑक्साइड उत्पन्न करती हैं, इसलिए प्राकृतिक डीएमएस इन शीतलन कणों का एक अधिक अहम स्रोत बन जाएगा।
शोध में अनुमान लगाया गया है कि 2100 तक डीएमएस उत्सर्जन 1.6 से 3.7 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि ग्लोबल वार्मिंग कितनी बढ़ती है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि डीएमएस ग्लोबल वार्मिंग को पूरी तरह से संतुलित कर देगा। कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों के कारण होने वाली गर्मी की तुलना में डीएमएस उत्सर्जन में वृद्धि से होने वाला शीतलन प्रभाव मामूली रहने का अनुमान है।
डीएमएस उत्सर्जन में वृद्धि प्रकृति से एक सकारात्मक प्रतिक्रिया है, लेकिन यह कोई रामबाण उपाय नहीं है। जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए हमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने के लिए अभी भी सख्त कार्रवाई की जरूरत है।
शोध में पाया गया कि आर्कटिक और दक्षिणी मध्य अक्षांश जैसे क्षेत्रों में डीएमएस उत्सर्जन में सबसे अधिक वृद्धि होने की संभावना है, जहां मानव निर्मित एरोसोल कम हैं। इन क्षेत्रों में डीएमएस का शीतलन प्रभाव अधिक मजबूत हो सकता है।
हालांकि दक्षिणी महासागर और प्रशांत और हिंद महासागर के कुछ हिस्सों जैसे प्रमुख महासागर के क्षेत्रों में, समुद्र के पानी में डीएमएस के स्तर में गिरावट आ सकती है, जो कुल शीतलन क्षमता को सीमित कर सकता है।