ग्लोबल साउथ के शहरों में मात्र दो-तिहाई तक ठंडा करने की क्षमता: शोध

शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दुनिया के 500 सबसे बड़े शहरों के उपग्रह के आंकड़ों का विश्लेषण करके उनकी 'ठंडा करने की क्षमता' का आकलन किया है।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा विश्लेषण से पता चलता है कि पेड़-पौधों वाले इलाके गर्म मौसम के दौरान शहर में औसतन सतही तापमान को लगभग तीन डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर सकते हैं।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा विश्लेषण से पता चलता है कि पेड़-पौधों वाले इलाके गर्म मौसम के दौरान शहर में औसतन सतही तापमान को लगभग तीन डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर सकते हैं।फोटो साभार:विकिमीडिया कॉमन्स, विनयराज
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एक नए शोध में पाया गया है कि ग्लोबल साउथ के शहरों में ग्लोबल नॉर्थ के शहरों की अपेक्षा हरियाली कम है। जिसके कारण ग्लोबल साउथ के शहरों में ठंडा करने की क्षमता केवल 70 फीसदी है, इसलिए यहां के शहर अत्यधिक गर्म हो रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि बढ़ते तापमान के साथ-साथ जैसे-जैसे धरती गर्म होती है, 'अर्बन हीट आइलैंड' का प्रभाव, शहरों को ग्रामीण इलाकों की तुलना में अधिक गर्म कर देते हैं। जिसके कारण इन इलाकों में गर्मी के कारण होने वाली बीमारी और मौतें अधिक आम होती जा रही हैं।

ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं समेत एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दुनिया के 500 सबसे बड़े शहरों के उपग्रह के आंकड़ों का विश्लेषण करके उनकी 'ठंडा करने की क्षमता' का आकलन किया है शहरों में पेड़-पौधों वाले इलाके जिन्हें ग्रीन एरिया भी कहा जाता है, ये किसी शहर के सतही तापमान को कितना ठंडा कर सकते हैं?

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, विश्लेषण से पता चलता है कि पेड़-पौधों वाले इलाके गर्म मौसम के दौरान शहर में औसतन सतही तापमान को लगभग तीन डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर सकते हैं, भीषण गर्मी के दौरान यह एक बड़ा अंतर होता है।

नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि औसतन ग्लोबल साउथ के शहरों में ग्लोबल नॉर्थ के शहरों की तुलना में केवल दो-तिहाई ठंडा करने की क्षमता है। यह असमानता शहरों के बीच बुनियादी ढांचे और पेड़-पौधों की मात्रा और गुणवत्ता दोनों की वजह से ये अंतर पैदा होता है।

शोधकर्ताओं ने शोध में कहा कि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय शहर, जो भूमध्य रेखा के करीब स्थित हैं, में अपेक्षाकृत कम ठंडा करने की क्षमता होती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, क्योंकि ग्लोबल साउथ के देश मुख्य रूप से निम्न अक्षांशों पर स्थित हैं, इसलिए यह पैटर्न ऐसी स्थिति उत्पन्न करता है जिसमें ग्लोबल साउथ के शहर, जो अधिक गर्म और अपेक्षाकृत कम आय वाले होते हैं, उनकी ठंडा करने की क्षमता औसतन ग्लोबल नॉर्थ के शहरों की तुलना में लगभग दो-तिहाई होती है।

शोधकर्ताओं ने शोध में कहा, जिन शहरों को ग्रीन बुनियादी ढांचे पर निर्भर रहने की सबसे अधिक आवश्यकता है, वे वर्तमान में वे हैं जो ऐसा करने में सबसे कम सक्षम हैं। शहरी ग्रीन एरिया या पेड़-पौधों वाले इलाके छाया प्रदान करके और पानी के वाष्पीकरण में अहम भूमिका निभाकर ठंडा करने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि ग्लोबल साउथ में शहरों में ठंडा बढ़ाने और असमानता को कम करने की बहुत अधिक संभावना है। सोमालिया के एक शहर मोगादिशु में सबसे कम ठंडा करने की क्षमता पाई गई, उसके बाद यमन के सना और अर्जेंटीना के रोसारियो का स्थान है।

शोध में दिल्ली, पुणे और चेन्नई समेत 50 से अधिक भारतीय शहरों का भी विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने कहा कि पिछले अध्ययनों में अनुमान लगाया गया है कि मौजूदा जलवायु नीतियों के कारण 2100 तक आबादी का पांचवां हिस्सा भीषण गर्मी के संपर्क में आएगा, जिसमें सबसे अधिक आबादी भारत और नाइजीरिया की होगी। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण मरने वाले लोग अक्सर ग्लोबल साउथ के शहरों की झुग्गियों में रहते हैं, जिसमें भारत के सबसे गर्म हिस्से भी शामिल हैं।

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