जलवायु परिवर्तन के कारण जानवरों की एक-चौथाई प्रजातियां खतरे में हैं: शोध

शोध में कहा गया है कि सभी प्रजातियों के जलवायु के कारण होने वाले खतरों का आकलन और अनुकूलन क्षमता पर बेहतर तरीके से विचार करने की भी जरूरत है।
जानवरों पर अचानक पड़ने वाले प्रभाव लू या हीटवेव, जंगल की आग, सूखे और बाढ़ जैसी चरम घटनाओं से सामूहिक मृत्यु का रूप ले सकती हैं।
जानवरों पर अचानक पड़ने वाले प्रभाव लू या हीटवेव, जंगल की आग, सूखे और बाढ़ जैसी चरम घटनाओं से सामूहिक मृत्यु का रूप ले सकती हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन के मुताबिक, अब तक जैव विविधता के नुकसान का पहला कारण अत्यधिक दोहन और आवास का नुकसान माना जाता रहा है, लेकिन जैसे-जैसे जलवायु में तेजी से बदलाव होता जाएगा, यह धरती के जानवरों के लिए तीसरा बड़ा खतरा बन जाएगा।

शोध में कहा गया है कि ओएसयू कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री और मैक्सिको के शोधकर्ताओं ने 35 मौजूदा वर्गों से 70,814 प्रजातियों के जानवरों के आंकड़ों की जांच-पड़ताल करने के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जैव विविधता डेटासेट का उपयोग किया। शोधकर्ताओं ने प्रजातियों को वर्ग और जलवायु परिवर्तन के खतरों के आधार पर बांटा, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के द्वारा मूल्यांकन किया गया था।

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जानवरों पर अचानक पड़ने वाले प्रभाव लू या हीटवेव, जंगल की आग, सूखे और बाढ़ जैसी चरम घटनाओं से सामूहिक मृत्यु का रूप ले सकती हैं।

शोध में पाया गया कि छह अलग-अलग वर्गों की कम से कम एक-चौथाई प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के खतरे की जद में हैं। इन वर्गों में एराक्निड्स और चिलोपोडांस (सेंटीपीड्स) के साथ-साथ एंथोजोअन्स और हाइड्रोजोअन्स (जेलीफिश और कोरल से संबंधित समुद्री अकशेरुकी) शामिल हैं। अन्य वर्गों की प्रजातियों का बहुत छोटा हिस्सा भी गर्म जलवायु से सीधे खतरे में है।

बायोसाइंस में प्रकाशित शोध पत्र में शोकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि वे विशेष रूप से समुद्र में अकशेरुकी जानवरों के बारे में चिंतित हैं, जो जलवायु परिवर्तन से अधिकांश गर्मी को अवशोषित करते हैं। वे जानवर तेजी से कमजोर पड़ते जा रहे हैं क्योंकि उनकी चलने-फिरने की क्षमता सीमित है और वे प्रतिकूल परिस्थितियों से तुरंत बच निकलते हैं।

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जानवरों पर अचानक पड़ने वाले प्रभाव लू या हीटवेव, जंगल की आग, सूखे और बाढ़ जैसी चरम घटनाओं से सामूहिक मृत्यु का रूप ले सकती हैं।

ज्यादा से ज्यादा सामूहिक मृत्यु की घटनाओं के व्यापक प्रभाव कार्बन चक्र प्रतिक्रिया और पोषक चक्रण को प्रभावित करेंगे। उन प्रभावों का शिकार, प्रतिस्पर्धा, परागण और परजीवीवाद जैसी प्रजातियों की आंतरिक क्रियाओं पर भी प्रभाव पड़ने के आसार हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य के लिए जरूरी हैं।

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शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि पानी के बढ़ते तापमान के कारण इजरायल के तट पर मोलस्क की आबादी में 90 फीसदी की कमी से पता चलता है कि अकशेरुकी कितने संवेदनशील हैं। अन्य उदाहरणों में 2021 के प्रशांत नॉर्थवेस्ट हीट डोम के दौरान अरबों इंटरटाइडल अकशेरुकी जीवों की मृत्यु और 2016 की भीषण समुद्री लू के बाद ग्रेट बैरियर रीफ के 29 फीसदी हिस्से में कोरल का विनाशकारी रूप से मरना शामिल है।

सामूहिक मृत्यु दर केवल अकशेरुकी जीवों तक ही सीमित नहीं है। 2015 और 2016 में, उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर लगभग 40 लाख आम म्यूरेस अत्यधिक समुद्री लू के कारण बदलते खाद्य जाल के कारण भूख से मर गए।

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इसी लू की वजह से पैसिफिक कॉड में 71 फीसदी की गिरावट आई, क्योंकि चयापचय की मांग में वृद्धि हुई और शिकार का आधार कम हो गया और समुद्री हीटवेव ने हो सकता है उत्तरी प्रशांत में लगभग 7,000 हंपबैक व्हेल की मृत्यु में भूमिका निभाई हो।

शोध में कहा गया है कि चिंता का एक और कारण, वन्यजीवों के लिए जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में एकत्रित की गई जानकारी की तुलनात्मक रूप से कम मात्रा होना है। अधिकांश वन्यजीव वर्गों (101 में से 66) में अभी तक आईयूसीएन द्वारा किसी भी प्रजाति का मूल्यांकन नहीं किया गया है और जिन 70,814 प्रजातियों का मूल्यांकन किया गया है, वे आज जीवित सभी वर्णित वन्यजीव प्रजातियों का 5.5 फीसदी हैं।

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शोध में किए गया विश्लेषण वन्यजीव प्रजातियों के लिए जलवायु के खतरों का आकलन करने की दिशा में एक शुरुआती प्रयास है। जानकारीपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने के लिए खतरों को समझना अहम है। सभी पारिस्थितिकी प्रणालियों में पशु प्रजातियों के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली सामूहिक मृत्यु की घटनाओं पर एक वैश्विक डेटाबेस की जरूरत है और वर्तमान में अनदेखा की गई प्रजातियों का आकलन करने में तेजी लानी चाहिए।

संकटग्रस्त प्रजातियों की आईयूसीएन की लाल सूची में कशेरुकियों के प्रति पूर्वाग्रह है, जो पृथ्वी की नामित पशु प्रजातियों का छह फीसदी से भी कम हिस्सा हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि सभी प्रजातियों के जलवायु के कारण होने वाले खतरों का आकलन और अनुकूलन क्षमता पर बेहतर विचार करने की भी जरूरत है। दुनिया भर में जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन नीति नियोजन को एक साथ लाने की आवश्यकता है।

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