
हाल के वर्षों में पक्षियों के रहने वाले इलाकों के संरक्षण ने क्षेत्र के महत्व को और भी बढ़ा दिया है। यह माना जाता है कि इन इलाकों में रह रहे कुछ पक्षी प्रजातियां जलवायु में हो रहे बदलाव के प्रति अपने आपको ढाल रहे हैं।
हालांकि कुछ पौधे और जानवर अलग-अलग जलवायु के साथ तालमेल बिठा सकते हैं, जबकि कुछ के लिए ऐसा करना कठिन होता है। इसके पीछे के कारणों को समझने से संरक्षणवादियों और शोधकर्ताओं को जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिल सकती है। नए शोध से पता चलता है कि भौगोलिक क्षेत्र का आकार और जलवायु के अनुकूल होना एक साथ संभव नहीं है।
शोध में 1,500 पक्षी प्रजातियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया और पाया गया कि ऐसे क्षेत्रों में मौजूद कुछ प्रजातियां जलवायु की एक संकीर्ण सीमा के साथ अच्छी तरह से तालमेल बिठा सकती हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के प्रति कमजोर हो जाती हैं।
आर्कटिक के इलाकों में पृथ्वी के भूभाग का एक बड़ा हिस्सों है, लेकिन हर जगह समान जलवायु पैटर्न देखे जा सकता हैं। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि क्योंकि यह क्षेत्र बहुत बड़ा है, इसलिए इसमें रहने वाली प्रजातियों की आबादी बड़ी होती है और भौगोलिक सीमा का आकार भी बड़ा होता है। ये दो विशेषताएं हैं जो अक्सर विलुप्त होने के जोखिम को कम करने से जुड़ी हुई हैं।
यहां समस्या यह है कि उनमें से कई प्रजातियां जलवायु की एक बहुत ही संकीर्ण सीमा के अनुकूल हैं, इसलिए जब जलवायु पैटर्न बदलना शुरू होता है, तो ये बड़ी आबादी विलुप्ति के लिए काफी संवेदनशील हो सकती है।
अध्ययन में दो पक्षियों पर प्रकाश डाला गया है और बताया गया है कि कैसे उनका व्यवहार उन्हें जलवायु परिवर्तन से अधिक खतरे में डाल सकता है।
बोहेमियन वैक्सविंग का निवास स्थान आर्कटिक के एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है और चेस्टनट-क्राउन्ड लाफिंगथ्रश एशिया में बहुत छोटे क्षेत्र में निवास करता है, जो नेपाल और भूटान तक केंद्रित है।
लेकिन वैक्सविंग पक्षी लाफिंगथ्रश की तुलना में खतरे में हैं, क्योंकि लाफिंगथ्रश बहुत छोटे और अधिक चरम जलवायु परिस्थितियों में रहते हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि बड़े मस्तिष्क आकार वाली प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं क्योंकि वे संकीर्ण स्थानों में अच्छी तरह से अनुकूलन कर सकती हैं, जो अलग-अलग जलवायु परिस्थितियां हैं जिनमें एक प्रजाति पनप सकती है।
नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि बड़े मस्तिष्क के आकार अधिक लचीले व्यवहार से संबंधित हैं, इसलिए बड़े दिमाग वाले पक्षियों से आमतौर पर अधिक अनुकूल होने की उम्मीद की जाती है।
शोध में कहा गया है कि यह पता चला है कि कई बड़े दिमाग वाले पक्षी जलवायु विशेषज्ञ हैं, जिसका अर्थ है कि वे बहुत ही खास जलवायु प्रकारों में पनपने के लिए विकसित हुए हैं और इसलिए जलवायु परिवर्तन के प्रति अपेक्षा से अधिक संवेदनशील भी हो सकते हैं। यह शोध विभिन्न क्षेत्रों के जलवायु पैटर्न जसे - तापमान और बारिश का विश्लेषण करके किया गया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि तापमान और बारिश में कम कठोर स्थान केंद्र के पास हैं, जबकि एक या दोनों कारणों में कठोर स्थान दूर हैं। शोध में यह भी पाया कि छोटे और अधिक चरम जलवायु वाले पक्षियों को जलवायु परिवर्तन से अधिक खतरा होता है।
यह शोध अहम है क्योंकि यह विभिन्न कारणों और विभिन्न पक्षी प्रजातियों पर उनके प्रभाव को देखता है, जो जलवायु परिवर्तन के खतरों वाले पक्षियों की पहचान करने में महत्वपूर्ण हैं।