संकटग्रस्त चित्तीदार उल्लू और लुप्तप्राय लाल-मुर्गा नुमा कठफोड़वा जैसी विशेष प्रजातियों के लिए अधिक विशिष्ट आवास और आहार की आवश्यकता होती है, जिससे उन्हें बदलते पर्यावरण से अधिक खतरा होता है।
संकटग्रस्त चित्तीदार उल्लू और लुप्तप्राय लाल-मुर्गा नुमा कठफोड़वा जैसी विशेष प्रजातियों के लिए अधिक विशिष्ट आवास और आहार की आवश्यकता होती है, जिससे उन्हें बदलते पर्यावरण से अधिक खतरा होता है। फोटो साभार: आईस्टॉक

जलवायु परिवर्तन के कारण लुप्तप्राय और प्रवासी पक्षी अधिक खतरे की कगार पर

1980 से 2015 के बीच पक्षियों की गिरावट के लिए जलवायु लगभग पांच फीसदी जिम्मेदार थी और 2099 तक 16 फीसदी तक की गिरावट आने के आसार हैं।
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इलिनोइस यूनिवर्सिटी अर्बाना-शैंपेन के वैज्ञानिकों के एक नए विश्लेषण के अनुसार, दशकों की गिरावट के बाद, सदी के अंत तक दुनिया भर में खासकर उत्तरी अमेरिकी आसमान में और भी कम पक्षी दिखाई देंगे। उनका अध्ययन पूरे महाद्वीप में पक्षी समूहों की अधिकता और विविधता पर जलवायु परिवर्तन के लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभावों की जांच-पड़ताल करने वाला पहला अध्ययन है।

जबकि कीटनाशकों, प्रदूषण, भूमि उपयोग में बदलाव और आवास की कमी जैसे अतिरिक्त कारणों को भी ध्यान में रखा गया है जो पक्षियों को खतरे में डालते हैं।

शोधकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा, अभी तक किए गए कई अध्ययनों में क्षेत्र-स्तरीय अवलोकन के आधार पर पक्षियों की आबादी में गिरावट के लिए जलवायु या भूमि उपयोग में बदलाव जैसे कारणों को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई है। हालांकि इसका कोई बड़े पैमाने पर सांख्यिकीय विश्लेषण नहीं हुआ है । 

यह अध्ययन 1980 से 2015 के बीच पक्षी आबादी के रुझानों का विश्लेषण उसी समयावधि के जलवायु के आंकड़ों के साथ करते हुए, शोधकर्ताओं ने पक्षियों की संख्या और विविधता में मामूली लेकिन भारी गिरावट और विशेष और प्रवासी समूहों के लिए बड़ी गिरावट दिखाई है। विश्लेषण में 2095 से 2099 का भी पूर्वानुमान लगाया गया है, जिसमें और भी अधिक गिरावट आने की आशंका जताई गई है।

शोधकर्ता ने अध्ययन में कहा, बहुत सी अन्य चीजों को नियंत्रित करने के बाद भी, हम देखते हैं कि जलवायु परिवर्तन का पक्षियों पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है। यह सिर्फ एक और कारण है कि हमें जितनी जल्दी हो सके जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए गहन प्रयास करने चाहिए।

ग्लोबल एनवायर्नमेंटल चेंज एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, उत्तरी अमेरिका में विभिन्न प्रकार के आवासों में रहने वाले गौरैया जैसे सामान्य पक्षी जलवायु परिवर्तन से कम प्रभावित होते हैं। विश्लेषण के अनुसार, 1980 से 2015 की अवधि के दौरान इन सामान्य प्रजातियों में लगभग 2.5 फीसदी की गिरावट आई और सदी के अंत तक एक से तीन फीसदी के बीच गिरावट आने का अनुमान है।

संकटग्रस्त चित्तीदार उल्लू और लुप्तप्राय लाल-मुर्गा नुमा कठफोड़वा जैसी विशेष प्रजातियों के लिए अधिक विशिष्ट आवास और आहार की आवश्यकता होती है, जिससे उन्हें बदलते पर्यावरण से अधिक खतरा होता है। 1980 से  2015 के बीच उनकी गिरावट के लिए जलवायु लगभग पांच फीसदी जिम्मेदार थी और 2099 तक 16 फीसदी तक की गिरावट आने के आसार हैं।

विशेष प्रजातियों का उपसमूह जो प्रवासी भी हैं, जैसे कि हूपिंग क्रेन, विशेषज्ञों के लिए समग्र रूप से रुझानों को दर्शाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि हालांकि प्रवासी पक्षियों में अधिक अनुकूल स्थानों पर जाने की क्षमता हो सकती है, लेकिन पक्षियों के पास उड़ान भरने से पहले अपने गंतव्य की स्थितियों की जांच करने के लिए मौसम संबंधी लाभ नहीं है।

इन पक्षियों के पास पीढ़ियों से चले आ रहे प्रवास के पैटर्न हैं। वे किसी भी हालत में प्रवास करने जा रहे हैं और उन्हें नहीं पता कि दूसरे छोर पर उनका क्या इंतजार कर रहा है। यह उनके लिए बहुत गर्म या सूखा हो सकता है। लेकिन जलवायु केवल तापमान के मामले में पक्षियों के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित नहीं करती है। यह उनके प्रवास मार्ग के साथ उनके भोजन की आपूर्ति में बदलाव ला सकती है।

शोधकर्ताओं ने इस बात का भी परीक्षण किया कि पक्षी गर्म होते जलवायु के अनुकूल हो सकते हैं, इसके लिए उन्होंने समय के छोटे-छोटे हिस्सों का अलग-अलग विश्लेषण किया। यदि पक्षियों की संख्या में गर्म होने की अवधि की शुरुआत में अधिक गिरावट आई और बाद में धीमी हो गई, तो यह समय के साथ भारी तापमान के अनुकूल होने का इशारा है।

शोधकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा, पिछले छोटे क्षेत्रीय अध्ययनों ने जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया करने वाले पक्षियों में संभावित अनुकूली व्यवहार दिखाया था। दुर्भाग्य से, हमें समय के साथ अनुकूलन का समर्थन करने वाले सबूत नहीं मिले। लंबी अवधि में, हमने अभी भी भारी कमी पाई है।

हालांकि दो से 16 फीसदी की सीमा में नुकसान कुछ पूर्वानुमानों की तरह खतरनाक नहीं लग सकते हैं, लेकिन शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि उनका विश्लेषण पूरे महाद्वीप में औसत नुकसान को दर्शाता है। कुछ पक्षी प्रजातियां और समूह बहुत अधिक प्रभावित हो सकते हैं, खासकर विशिष्ट इलाकों में। साथ ही, पक्षियों की बहुतायत या विविधता में कोई और कमी बहुत ज्यादा हो सकती है, क्योंकि वे परागण से लेकर कीट नियंत्रण और उससे भी आगे पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

शोधकर्ता ने अध्ययन में कहा, विशेषज्ञ पक्षियों में से कई वास्तव में बहुत खास हैं। कुछ लुप्तप्राय प्रजातियां हैं और अन्य बहुत छोटे क्षेत्रों में से आते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, हम उनमें से किसी को भी खोने का खतरा नहीं उठा सकते हैं।

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