तीन महीनों में सक्रिय हो सकता है ला नीना, लेकिन बढ़ते तापमान से राहत की उम्मीदें कम: डब्ल्यूएमओ

यदि ला नीना बनता भी है तो उसका असर इतना प्रबल नहीं होगा कि वो ग्रीन हाउस गैसों की वजह से बढ़ते तापमान को पलट सकें
दिल्ली की बढ़ती सर्दी में आग की मदद से अपने आप को गर्म रखने का प्रयास करते लोग; फोटो: आईस्टॉक
दिल्ली की बढ़ती सर्दी में आग की मदद से अपने आप को गर्म रखने का प्रयास करते लोग; फोटो: आईस्टॉक
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विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने 11 दिसंबर, 2024 को जारी अपने नवीनतम अपडेट में जानकारी दी है तापमान में गिरावट से जुड़ी ला नीना की घटना अगले तीन महीनों में बन सकती है। हालांकि इसके इसके कमजोर के साथ-साथ थोड़े समय तक रहने की उम्मीद है।

देखा जाए तो अभी मौसम तटस्थ बना हुआ है, मतलब की न तो अल-नीनो की स्थिति है और न ही ला-नीना की, लेकिन जल्द ही भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ला नीना के बनने की उम्मीद है।

बता दें कि अल नीनो और ला नीना दोनों ही भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में घटित होने वाली मौसमी हलचलें हैं। यह दोनों ही घटनाएं अल नीनो दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) नामक घटना के दो विपरीत चरण हैं। जहां अल नीनो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पूर्वी और मध्य भागों के तापमान में वृद्धि से जुड़ा है, वहीं दूसरी तरफ ला नीना तापमान में आने वाली गिरावट की वजह बनता है।

कमजोर और थोड़े समय के लिए बनने वाले ला नीना का मतलब है कि 2023 और 2024 की तरह वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि 2025 में भी जारी रह सकती है। ऐसे में 2025 को बढ़ते तापमान से राहत मिलने की उम्मीदें बेहद धुंधली हैं।

गौरतलब है कि वैश्विक तापमान में इस साल जिस तरह वृद्धि हुई है, उसको देखते हुए कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 जलवायु इतिहास का अब तक तक का सबसे गर्म साल हो सकता है। इसके साथ ही यह पहला मौका होगा जब बढ़ता तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा।

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक दिसंबर से फरवरी के बीच ला नीना के विकसित होने की करीब 55 फीसदी संभावना है। इसके बाद 55 फीसदी इस बात की संभावना है कि प्रशांत महासागर अपनी तटस्थ स्थिति में लौट आएगा। इस समय न तो एल नीनो होगा और न ही ला नीना।

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डब्ल्यूएमओ का कहना है कि ला नीना और एल नीनो प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली घटनाएं हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के साथ स्थिति बदतर हो रही है। इससे तापमान के साथ चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि हो रही है। साथ ही इनका असर मौसमी बारिश और तापमान के पैटर्न को भी प्रभावित कर रहा है।

भारत में भी सामान्य से अधिक गर्म रह सकती हैं सर्दियां

डब्ल्यूएमओ प्रमुख सेलेस्टे साउलो का कहना है, "2024 की शुरूआत अल नीनो के साथ हुई और यह अब तक का सबसे गर्म वर्ष होने की ओर अग्रसर है। ऐसे में अगर ला नीना की स्थिति बनती भी है तो उसकी छोटी अवधि ग्रीनहाउस गैसों के रिकॉर्ड स्तर के कारण होने वाली गर्मी को संतुलित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।"

उनका आगे कहना है, "मई से अल नीनो या ला नीना के बिना भी, हमने रिकॉर्ड बारिश और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं की एक असाधारण श्रृंखला देखी है, जो दुर्भाग्य से हमारी बदलती जलवायु में सामान्य होती जा रही हैं।"

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उदाहरण के लिए उत्तरी अटलांटिक में तूफान और उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में टाइफून तेजी से शक्तिशाली होते जा रहे हैं, साथ ही रिकॉर्ड तोड़ बारिश और हवा की गति भी बढ़ रही है। जलवायु वैज्ञानिक इसे वातावरण और महासागरों के अत्यधिक गर्म होने से जोड़ते हैं।

दुनिया के कई हिस्सों में नवंबर में सर्दियों का तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा रहा। यह रुझान दिसंबर में भी जारी रहा। दक्षिण-पूर्व एशिया, कैरिबियन और दक्षिण और पश्चिम एशिया जैसी जगहों पर अधिकतम और न्यूनतम तापमान के रिकॉर्ड टूट गए हैं।

इंडोनेशिया में रात के समय न्यूनतम तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा रहा। 11 दिसंबर को बेलितुंग द्वीप पर इतिहास की सबसे गर्म रात रही, जब न्यूनतम तापमान 26.8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया।

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जलवायु विज्ञानी और मौसम इतिहासकार एम हेरेरा ने लिखा, "इस क्षेत्र में न्यूनतम तापमान इतिहास में पहली बार 26 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंचा है।“

दक्षिण एशिया में, भारत के पश्चिमी तट के कई इलाकों में रात के समय रिकॉर्ड तोड़ तापमान देखा गया। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी देश के अधिकांश हिस्सों सर्दियों (दिसंबर से फरवरी) के सामान्य से अधिक गर्म रहने का पूर्वानुमान जताया है।

सर्दियों में भी तापमान में वृद्धि की यह प्रवृत्ति परेशान करने वाली है, जो मानवीय गतिविधियों, विशेषकर जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस गैसों की वजह से तापमान में हो रही वृद्धि को दर्शाती है।

नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के मुताबिक इस साल अक्टूबर का महीना जलवायु इतिहास का दूसरा सबसे गर्म अक्टूबर था। बता दें कि सबसे गर्म अक्टूबर का महीना 2023 में दर्ज किया गया था।

इसी तरह यूरोपियन यूनियन की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने भी पुष्टि की है कि, नवंबर 2024 भी इतिहास का दूसरा सबसे गर्म नवंबर था। अब तक का सबसे गर्म नवंबर, 2023 में दर्ज किया गया था।

देखा जाए तो बढ़ते तापमान के मामले में 2023 को पीछे छोड़ 2023 आगे निकल सकता है। इसके साथ ही वो दर्ज रिकॉर्ड में अब तक का सबसे गर्म साल बन जाएगा।

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