क्या एल नीनो और ला नीना की घटनाओं को खामोश कर देगा बढ़ता तापमान

मौसम से जुड़ी इन घटनाओं में आने वाले बदलावों के लिए काफी हद तक हम इंसान जिम्मेवार हैं, जिनकी वजह से जलवायु में बदलाव आ रहा है
क्या एल नीनो और ला नीना की घटनाओं को खामोश कर देगा बढ़ता तापमान
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जलवायु परिवर्तन के कारण जो पिछले 11,000 वर्षों में नहीं हुआ, वो भविष्य में होने वाला है। हाल ही में किए एक अध्ययन से पता चला है कि भविष्य में एल नीनो और ला नीना की घटनाओं के आने का जो एक चक्र है वो भविष्य में कमजोर पड़ जाएगा। बात हैरान कर देने वाली है। हालांकि यह बदलाव हमारे लिए अच्छा होगा या बुरा इस बारे में अभी स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

कम से कम पिछले 11,000 वर्षों से एल नीनो और ला नीना की यह घटनाएं हमारे मौसम को बिना रोकटोक के प्रभावित करती रही हैं। पर हाल ही में दक्षिण कोरिया की पुसान नेशनल यूनिवर्सिटी के आईबीएस सेंटर फॉर क्लाइमेट फिजिक्स, जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ मेट्रोलॉजी और यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि भविष्य में तापमान में आ रहे बदलावों के साथ यह घटनाएं कमजोर पड़ती जाएंगी। यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है।  

इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने दक्षिण कोरिया के एक सबसे तेज सुपरकंप्यूटर एलेफ की मदद ली है, जिससे उन्होंने वैश्विक स्तर पर जलवायु मॉडल सिमुलेशन की एक विस्तृत श्रृंखला बनाई है। इसमें उन्होंने उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र मौजूद उष्णकटिबंधीय अस्थिर तरंगो को वास्तविक वातावरण के सिमुलेशन की मदद से समझने का प्रयास किया है। यह दोनों ही अल नीनो और ला नीना के बनने और खत्म होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने 

इस सिमुलेशन की मदद से वैज्ञानिकों ने यह समझने का प्रयास किया है कि आने वाले वक्त में जैसे जैसे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ेगी वो मौसम से जुड़ी घटना अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) को कैसे प्रभावित करेगा। इसके निष्कर्ष के बारे में जानकारी देते हुए इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट में कार्यरत डॉ क्रिश्चियन वेन्गेल ने बताया कि, "हमारे कंप्यूटर सिमुलेशन से जो परिणाम सामने आए हैं वो पूरी तरह स्पष्ट हैं, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से ईएनएसओ चक्र की तीव्रता कमजोर हो जाएगी।"

वायुमंडल और महासागर प्रणाली में ऊष्मा के प्रवाह का पता लगाकर वैज्ञानिकों ने ईएनएसओ के कमजोर पड़ने के प्रमुख कारणों का पता लगा लिया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में एल नीनो की घटनाएं जल वाष्प के वाष्पीकरण के कारण वातावरण में बहुत तेजी से गर्मी को खो देंगी, जिसकी वजह से समुद्र का तापमान गिर जाता है। इसके साथ ही भविष्य में पूर्वी और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में तापमान का अंतर बहुत कम हो जाएगा, जो ईएनएसओ चक्र के दौरान तापमान को चरम सीमा तक जाने से रोक देगा।

इस शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता माल्टे स्ट्यूकर ने बताया कि ईएनएसओ प्रणाली में सकारात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के बीच एक खींचातानी चलती रहती है, गर्म जलवायु में जिनका झुकाव नकारात्मक पक्ष की तरफ ज्यादा होता है। इसका मतलब है कि भविष्य में अल नीनो और ला नीना की घटनाएं अपने चरम पर नहीं पहुंच पाएंगी। 

भले ही यह अध्ययन इस बात का इशारा करता है कि पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग के चलते साल दर साल  तापमान में आने वाला उतार-चढाव कमजोर पड़ जाएगा, लेकिन इसके बावजूद अल नीनो और ला नीना के कारण होने वाली भारी बारिश भविष्य में भी जारी रहेगी। इसके लिए बढ़ते तापमान में भी जल चक्र में आने वाली तीव्रता मुख्य रूप से जिम्मेवार है।   

क्या होती हैं अल नीनो और ला नीना की घटनाएं

गौरतलब है कि मौसम से जुड़ी इन घटनाओं को आमतौर पर एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) के नाम से जाना जाता है। यह दोनों ही घटनाएं प्रशांत महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से जुड़ी हैं। जिसमें एल नीनो तापमान में होने वाली वृद्धि और ला नीना तापमान में आने वाली गिरावट से जुड़ा है।

वैज्ञानिक रूप से, एल-नीनो प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र की उस मौसमी घटना का नाम है, जिसमें पानी की सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है और हवा पूर्व की और बहने लग जाता है। जो न केवल समुद्र पर बल्कि वायुमंडल पर भी प्रभाव डालता है। इस घटना के चलते समुद्र का तापमान 4 से 5 डिग्री तक गर्म हो जाता है।

वहीं इसके विपरीत ला नीना की स्थिति बनने पर पश्चिमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सामान्य से कम वायुदाब बनने से इसकी स्थिति बनती है। इसके कारण समुद्र का तापमान सामान्य से घट जाता है। आमतौर पर इन दोनों ही घटनाओं का असर 9 से 12 महीने तक रहता है, पर कभी-कभी यह स्थिति कई वर्षों तक बनी रह सकती है। यह दोनों ही घटनाएं दुनिया भर में मौसम, बारिश, तूफान, बाढ़, सूखा जैसी घटनाओं को प्रभावित करती हैं। इनकी वजह से कहीं सामान्य से ज्यादा बारिश होती है तो कहीं सूखा पड़ता है, और कहीं तूफान आते हैं। 

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