भारत पेश करेगा नए संशोधित जलवायु लक्ष्य: कॉप-30 में भूपेंद्र यादव का ऐलान

पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने जलवायु सम्मेलन कॉप-30 में विकसित देशों से अपील की है कि वे अपने नेट-जीरो लक्ष्य मौजूदा समय-सीमा से पहले हासिल करें, ताकि विकासशील देशों के लिए कार्बन स्पेस बचा रहे
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सारांश
  • भारत 2035 के लिए अपने नए संशोधित जलवायु लक्ष्य (एनडीसी) और द्विवार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट (बीटीआर) को पेरिस समझौते के अनुरूप समय पर जमा करेगा।

  • इस बात की घोषणा केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने 17 नवंबर को ब्राजील के बेलेम शहर में चल रहे कॉप-30 सम्मेलन के उच्चस्तरीय सत्र में की है।

  • यह कदम भारत की दीर्घकालिक जलवायु रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है, खासकर तब जब वार्ताकार बेलेम पैकेज को अंतिम रूप देने के लिए एक निर्णायक सप्ताह में प्रवेश कर रहे हैं।

भारत 2035 के लिए अपने नए संशोधित जलवायु लक्ष्य (एनडीसी) और द्विवार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट (बीटीआर) को पेरिस समझौते के अनुरूप समय पर जमा करेगा। इस बात की घोषणा केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने 17 नवंबर को ब्राजील के बेलेम शहर में चल रहे कॉप-30 सम्मेलन के उच्चस्तरीय सत्र में की है।

यह कदम भारत की दीर्घकालिक जलवायु रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है, खासकर तब जब वार्ताकार बेलेम पैकेज को अंतिम रूप देने के लिए एक निर्णायक सप्ताह में प्रवेश कर रहे हैं। गौरतलब है कि राष्ट्रीय निर्धारित योगदान यानी एनडीसी पेरिस समझौते का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें हर देश बताता है कि वह अपने उत्सर्जन कैसे कम करेगा और जलवायु परिवर्तन के असर से कैसे निपटेगा।

हर पांच साल में देश अपने एनडीसी, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसी) सचिवालय को भेजते हैं। अब तक 198 में से 100 से ज्यादा देश अपने एनडीसी का तीसरा अपडेट सबमिट कर चुके हैं।

सरल भाषा में समझें क्या है एनडीसी और बीटीआर

वहीं द्विवार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट (बीटीआर) सभी देशों के लिए एक पारदर्शी तरीका है जिसके जरिए वे पेरिस समझौते के तहत अपनी जलवायु कार्रवाई की जानकारी देते हैं। इससे देशों के बीच भरोसा बढ़ता है और जलवायु वित्त और तकनीक जुटाने में मदद मिलती है।

इस रिपोर्ट में किसी देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जलवायु अनुकूलन के प्रयास, और उसे मिली या जरूरी सहायता का विस्तृत विवरण होता है। इससे दुनिया भर के देशों की तुलना करना और उन्हें जवाबदेह बनाना आसान होता है। इसके साथ ही बीटीआर, देशों को अपनी योजनाओं की खामियां पहचानने, अच्छी प्रक्रियाएं अपनाने और भविष्य की जलवायु नीतियों को बेहतर बनाने में भी मदद करती है।

भारत की ओर पक्ष रखते हुए भूपेंद्र यादव ने कहा कि कॉप-30 को “कार्रवाई के सम्मेलन” और “वायदों को पूरा करने वाला कॉप” के रूप में याद किया जाना चाहिए। पेरिस समझौते के 10 साल पूरे होने पर उन्होंने जोर दिया कि अब दुनिया को वादों से आगे बढ़कर ठोस कार्रवाई की ओर बढ़ना होगा।

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उन्होंने ब्राजील को सम्मेलन की मेजबानी के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि अमेजन का यह हिस्सा हमारे ग्रह की जैविक संपदा का जीवंत प्रतीक है और जलवायु महत्वाकांक्षा, समानता और वैश्विक भरोसा बहाल करने वाले कॉप के लिए बिल्कुल उपयुक्त स्थान है।

बढ़ते दबाव के बीच भारत की भूमिका

यह कॉप ऐसे समय हो रहा है जब दुनिया डेढ़ डिग्री के लक्ष्य की राह से पूरी तरह भटक चुकी है। वैश्विक जलवायु व्यवस्था भारी दबाव में है। 2023 के ग्लोबल स्टॉकटेक ने साफ कर दिया कि दुनिया उत्सर्जन में कटौती, जलवायु वित्त और अनुकूलन तीनों मोर्चों पर पिछड़ रही है।

विकासशील देश बार-बार गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें पर्याप्त वित्त नहीं मिल रहा, कर्ज का बोझ बढ़ रहा है और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्रणाली उनकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही।

ऐसे माहौल में, भारत खुद को "ब्रिज बिल्डर" यानी पुल के रूप में पेश कर रहा है, जो जलवायु न्याय, समान अवसर और तकनीक की सब तक आसान पहुंच की वकालत करता है।

बेलेम में दिया भारत का बयान, पहले की जी20 और कॉप वार्ताओं का स्वाभाविक विस्तार है, जहां भारत लगातार अधिक जलवायु वित्त, सस्ते ऋण और देशों की अलग-अलग जिम्मेदारियों की स्पष्ट स्वीकार्यता की मांग उठाता रहा है।

विकसित देशों को भारत की दो टूक: जल्द हासिल करे नेट-जीरो

यादव ने विकसित देशों से कड़े शब्दों में कहा है कि वे अपने नेट-जीरो लक्ष्य मौजूदा समय-सीमा से बहुत पहले हासिल करें, ताकि विकासशील देशों के लिए कार्बन स्पेस बचा रहे। उन्होंने दोहराया कि जलवायु वित्त को “बिलियन से ट्रिलियन" तक ले जाना होगा और नए, अतिरिक्त तथा रियायती फंड उपलब्ध कराने होंगे।

यादव ने यह भी कहा कि तकनीक पर कड़े पेटेंट नियम हटाने होंगे, क्योंकि ये कमजोर देशों को जरूरी जलवायु तकनीकों तक पहुंचने से रोक रहे हैं।

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यह मांग विकासशील देशों की बढ़ती नाराज़गी को दिखाती है। अमीर देश अब तक हर साल 100 अरब डॉलर देने के अपने वादे को पूरा नहीं कर पाए हैं, और नए वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य पर भी प्रगति बेहद धीमी है, जबकि यही भविष्य की जलवायु वित्त व्यवस्था तय करेगा।

नए एनडीसी से पहले भारत ने गिनाई उपलब्धियां

यादव ने भारत की जलवायु उपलब्धियों को विस्तार से बताते हुए कहा कि विकास और पर्यावरण संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं। 2005 के बाद से भारत ने अपनी उत्सर्जन तीव्रता में 36 फीसदी से ज्यादा की कमी की है। भारत की कुल बिजली क्षमता का आधा से ज्यादा हिस्सा अब गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से आ रहा है। इतना ही नहीं 256 गीगावॉट गैर-जीवाश्म क्षमता के साथ भारत ने अपना 2030 का लक्ष्य पांच साल पहले ही हासिल कर लिया है।

उन्होंने इंटरनेशनल सोलर अलायंस, ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस, न्यूक्लियर मिशन और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जैसे बड़े ऊर्जा अभियानों का जिक्र किया और कहा कि ये भारत की बढ़ती वैश्विक जलवायु नेतृत्व क्षमता को दिखाते हैं।

इसके अलावा, भारत ने प्राकृतिक कार्बन भंडारण को बढ़ाने के लिए समुदायों की भागीदारी से 16 महीनों में 200 करोड़ से अधिक पौधे लगाए हैं।

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जलवायु नीतियों में ‘बिग कैट्स’: भारत ने दिखाई नई सोच

इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस (आईबीसीए) के उच्चस्तरीय सत्र में यादव ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण, जलवायु स्थिरता का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

उन्होंने बताया कि बाघ, तेंदुओं जैसी बड़ी बिल्लियां “परिस्थितिकी तंत्र की सेहत की प्रहरी” होती हैं। जहां ये सुरक्षित होती हैं, वहां जंगल बेहतर होते हैं, घासभूमि स्वस्थ रहती है, जलस्रोत स्थिर रहते हैं और प्राकृतिक कार्बन भंडारण भी बढ़ता है।

उन्होंने चेताया कि बड़ी बिल्लियों की संख्या कम होने से पूरा पारिस्थितिकी तंत्र कमजोर होता है और जलवायु के असर को झेलने की क्षमता भी कमजोर पड़ती है। इसलिए उन्होंने आग्रह किया कि भविष्य के एनडीसी में जैव विविधता को एक प्राकृतिक जलवायु समाधान के रूप में शामिल किया जाए।

यादव ने कहा, “जिसे हम अक्सर वन्यजीव संरक्षण कहते हैं, वह असल में सबसे स्वाभाविक जलवायु कार्रवाई है।“

भारत ने दिखाया संरक्षण में नेतृत्व

भारत दुनिया की सात में से पांच बड़ी बिल्ली प्रजातियों का घर है। भारत ने अपने संरक्षण कार्यों में कई बड़ी सफलताएं हासिल की हैं, जैसे लक्ष्य से पहले बाघों की संख्या दोगुनी करना और एशियाई शेरों की आबादी को बढ़ाना। भारत ने एक व्यापक वन्यजीव डाटाबेस भी तैयार किया है, संरक्षित क्षेत्रों और वन्य गलियारों को विस्तार दिया है और स्थानीय समुदायों को पर्यावरण-आधारित आजीविकाओं से जोड़ा है।

यादव ने बताया कि 17 देश आधिकारिक रूप से आईबीसीए से जुड़ चुके हैं और 30 से ज्यादा ने इससे जुड़ने में दिलचस्पी दिखाई है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “वन अर्थ, वन वर्ल्ड, वन फ्यूचर” की सोच दोहराई। उन्होंने घोषणा की कि भारत 2026 में नई दिल्ली में ग्लोबल बिग कैट्स समिट की मेजबानी करेगा, और सभी देशों को इसमें मिलकर काम करने का आमंत्रण दिया।

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अपने वक्तव्यों का समापन करते हुए यादव ने कहा कि दुनिया एक ऐसे समय पर है जब पर्यावरण की नई दिशा तय करनी है, और इसके लिए प्रतियोगिता नहीं बल्कि एकजुटता जरूरी है।

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