कॉप-30: प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में रिकॉर्ड प्रगति, लेकिन 40 फीसदी देशों के पास नहीं सुरक्षा कवच

कॉप-30 में जारी संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के मुताबिक आज 119 देशों ने बहु-आपदा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित कर ली है, लेकिन अभी भी 2027 तक हर व्यक्ति तक इसकी पहुंच का लक्ष्य काफी दूर है
फोटो: आईस्टॉक
फोटो: आईस्टॉक
Published on

दुनिया में मौसम के बिगड़ते मिजाज के साथ जलवायु आपदाओं का आना अब बेहद आम हो गया है। कभी बाढ़, कभी तूफान, कभी लू तो कभी जंगलों में धधकती आग — ऐसी आपदाएं हर दिन मानवता को झकझोर रही हैं। मतलब कि धरती पर हर दिन कोई न कोई चेतावनी गूंज रही है, लेकिन इसके बावजूद आज भी कई जगहों पर यह चेतावनी या तो देर से पहुंचती है, या कभी पहुंचती ही नहीं।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नई रिपोर्ट 'ग्लोबल स्टेटस ऑफ मल्टी-हैजर्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम्स 2025' में जानकारी दी है कि आज 119 देशों ने बहु-आपदा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (मल्टी-हैजर्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम) विकसित कर ली है।

मतलब कि अब दुनिया के 60 फीसदी देशों के पास किसी न किसी रूप में आपदा से पहले सतर्क करने के लिए चेतावनी प्रणाली मौजूद है। यह पिछले दस वर्षों में 113 फीसदी की बढ़ोतरी को दर्शाता है। हालांकि इसके बावजूद यह सुरक्षा कवच अधूरा है।

प्रगति के बावजूद पिछड़ा है अफ्रीका

रिपोर्ट के मुताबिक अभी भी कई देशों में चेतावनी व्यवस्था कमजोर है। छोटे द्वीपीय देशों की स्थिति अभी भी चिंताजनक है, जहां महज 43 फीसदी देशों के पास ही प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है। इसी तरह भले ही इस दिशा अफ्रीका ने 2015 से 72 फीसदी की प्रगति है, लेकिन अभी भी यह चेतावनी प्रणाली के मामले में सबसे कमजोर क्षेत्र बना हुआ है।

यह भी पढ़ें
जलवायु संकट: बहुआयामी गरीबी के साथ जलवायु आपदाओं के साए में जी रहे 88.7 करोड़ लोग
फोटो: आईस्टॉक

यह रिपोर्ट विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डबल्यूएमओ) और संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (यूएनडीआरआर) द्वारा संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन कॉप-30 में जारी की गई है। गौरतलब है कि जलवायु संकट से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए दुनिया भर के नेता ब्राजील के बेलेम शहर में एकजुट हुए हैं।

ऐसे में संयुक्त राष्ट्र ने आगाह किया है, अगर निवेश और तैयारी में तेजी नहीं आई, तो 2027 तक “हर व्यक्ति तक प्रारंभिक चेतावनी” पहुंचाने का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य 2027 तक धरती के हर इंसान तक समय रहते चेतावनी पहुंचाना है ताकि जलवायु आपदाओं से होने वाली जान-माल की क्षति को कम से कम किया जा सके।

रिपोर्ट ने यह भी बताया है कि भीषण गर्मी, जंगलों में धधकती आग और ग्लेशियर झीलों के फटने जैसी नई आपदाएं तेजी से पैर पसार रही हैं और मौजूदा चेतावनी प्रणालियां इनसे निपटने में अभी भी पूरी तरह सक्षम नहीं हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने जलवायु शिखर सम्मेलन में चेतावनी दी है, “जलवायु संकट तेज हो रहा है। जंगल में रिकॉर्ड तोड़ आग, घातक बाढ़ और भीषण तूफान इंसानों की जिंदगियों, अर्थव्यवस्थाओं और दशकों की मेहनत को तबाह कर रहे हैं।“

यह भी पढ़ें
जलवायु आपदा: हिमालय से लेकर घाट तक, पूर्व चेतावनी प्रणाली की तत्काल आवश्यकता
फोटो: आईस्टॉक

उन्होंने देशों से अनुकूलन और लचीलापन में किए जा रहे निवेश में भारी वृद्धि करने की अपील की है, ताकि 2027 तक हर व्यक्ति तक समय रहते चेतावनी पहुंच सके।

पांच दशकों में 20 लाख से ज्यादा जिंदगियों को निगल चुकी हैं आपदाएं

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक, पिछले पांच दशकों में जल, जलवायु और मौसम सम्बन्धी आपदाओं ने 20 लाख से अधिक लोगों को असमय मौत के मुंह में धकेल दिया है, जिनमें से 90 फीसदी मौतें विकासशील देशों में हुई हैं।

यूएन महासचिव जिनीवा में, विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक बैठक में कहा था, "प्रारंभिक-चेतावनी प्रणालियां कारगर हैं। ये किसानों को अपनी फसलों और पशुधन की रक्षा करने की शक्ति देती हैं। परिवारों को खतरों से सुरक्षित रूप से बाहर निकलने में सक्षम बनाती हैं और पूरे समुदाय को तबाही से बचाती हैं।"

उनका आगे कहना है, "जिन देशों में कारगर प्रारंभिक-चेतावनी प्रणालियां मौजूद हैं, वहां आपदा से सम्बन्धित मृत्यु दर कम से कम छह गुणा कम है।" उनके मुताबिक ऐसी विनाशकारी घटनाओं के बारे में महज 24 घंटे पहले सूचना देने से, नुकसान को 30 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

यह भी पढ़ें
जलवायु से जुड़ी आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार नहीं एशिया-पैसिफिक: संयुक्त राष्ट्र
फोटो: आईस्टॉक

अभी भी लम्बा सफर तय करना बाकी

उन्होंने माना कि जानकारी साझा करने की व्यवस्था शुरू होने के बाद से दुनिया के सबसे कम विकसित देशों ने अपनी क्षमता करीब दोगुनी कर ली है, "लेकिन हमें अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है।“

यूएनडीआरआर प्रमुख कमल किशोर ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “आपदाएं न तो प्राकृतिक होती हैं और न ही अनिवार्य। बढ़ते जलवायु संकट के बीच भी हम बढ़ती आपदा हानियों को रोक सकते हैं।“

उन्होंने आगे कहा कि, “इन रुझानों को पलटने के लिए देशों को आने वाले पांच वर्षों में सेंडाई फ्रेमवर्क को पूरी तरह लागू करना होगा। इसके लिए लचीलापन बढ़ाने पर वित्तीय निवेश को प्राथमिकता देना बेहद जरूरी है।“

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि आपदा से पहले कार्रवाई करने की पहल तो बढ़ रही है, लेकिन जोखिम संबंधी जानकारी जुटाने की क्षमता को अभी और मजबूत करने की जरूरत है। 2022 के बाद से इसमें 16 फीसदी सुधार हुआ है और दुनिया के सिर्फ एक-तिहाई देशों के पास ही यह बुनियादी क्षमता है, जबकि जोखिम की जानकारी ही किसी भी प्रभावी चेतावनी प्रणाली की नींव होती है।

यह भी पढ़ें
अगले 27 वर्षों में जलवायु आपदाओं का शिकार होंगे भारत के 95 फीसदी छोटे किसान: रिपोर्ट
फोटो: आईस्टॉक

ऐसे में रिपोर्ट ने सरकारों से अपील की है कि वे हर व्यक्ति तक प्रारंभिक चेतावनी पहुंचाने के लक्ष्य को पाने के लिए मिलकर काम करें। इसके लिए जरूरी है कि वे आपदा प्रबंधन में वित्तीय निवेश बढ़ाएं, जोखिम प्रबंधन को मजबूत करें, और सभी चेतावनी प्रणालियों को स्थानीय समुदायों की भागीदारी से तैयार करें, ताकि एक भी व्यक्ति पीछे न छूटे।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in