
क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव (सीपीआई) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए निवेश को 425,300 करोड़ रुपए से कम से कम तीन गुणा यानी 11 लाख करोड़ रुपए करने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में जलवायु शमन ने औसतन 371,200 करोड़ रुपए (50 बिलियन डॉलर) आकर्षित किए, जो 2019-20 की तुलना में 20 फीसदी अधिक है।
इस अवधि के दौरान अनुकूलन-संबंधी क्षेत्र में हो रहे निवेश में तीन गुणा वृद्धि देखी गई। यह निवेश 2021-22 में सालाना 1,09,200 करोड़ रुपए (15 बिलियन डॉलर) तक पहुंच गया।
सीपीआई इंडिया के निदेशक विवेक सेन का कहना है, “भारत में पर्यावरण अनुकूल वित्त में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी एक लंबा सफर तय करना है। यह रिपोर्ट उन प्रमुख क्षेत्रों की ओर इशारा करती है जहां निवेश को बढ़ावा देने और मौजूदा अंतराल को पाटने के लिए कार्रवाई की आवश्यकता है।“
भारत सरकार का अनुमान है कि देश को अपने जलवायु लक्ष्यों (एनडीसी) को हासिल करने के लिए 2030 तक 1,62,50,000 करोड़ रुपए (2.5 ट्रिलियन डॉलर) की आवश्यकता है। यदि साल दर साल देखें तो यह आवश्यकता 11,00,000 करोड़ रुपए (17,000 करोड़ डॉलर) के बराबर है।
राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) कहे जाने वाले ये लक्ष्य पेरिस समझौते का हिस्सा हैं। इनका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होते हुए बढ़ते उत्सर्जन को कम करना और वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा में रोके रखना है।
इसी तरह भारत को अनुकूलन के लिए 2015 से 2030 के बीच 85,60,000 करोड़ रुपए (एक लाख करोड़ डॉलर) के निवेश की आवश्यकता है। यदि साल दर साल देखें तो यह आवश्यकता 57,33,000 करोड़ रुपए (6700 करोड़ डॉलर) प्रति वर्ष है।
जलवायु परिवर्तन के चलते अनुकूलन पर करना होगा कहीं ज्यादा खर्च
सीपीआई ने अपनी रिपोर्ट, "द लैंडस्केप ऑफ ग्रीन फाइनेंस इन इंडिया" में पर्यावरण अनुकूल वित्त के सार्वजनिक और निजी दोनों स्रोतों की जांच की है। रिपोर्ट में इस बात की भी जांच की है कि इन घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय स्रोतों से अंतिम लाभार्थियों तक धन कैसे पहुंचता है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में पर्यावरण अनुकूल वित्त का करीब 83 फीसदी हिस्सा घरेलू स्तर पर जुटाया गया। इसमें 66 फीसदी का योगदान निजी क्षेत्रों ने दिया है।
वैश्विक स्तर पर देखें तो शमन के लिए उपलब्ध वित्त जो 2019-20 में 15 फीसदी था, वो 2021-22 में बढ़कर 17 फीसदी पर पहुंच गया। 2021-22 में शमन के लिए 66 फीसदी फंड निजी स्रोतों से आया, जो 2019-20 में महज 40 फीसदी था। वहीं शेष 34 फीसदी सार्वजनिक स्रोतों से आया था।
रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न क्षेत्रों में, स्वच्छ ऊर्जा को 47 फीसदी निवेश प्राप्त हुआ। वहीं ऊर्जा दक्षता को 35 फीसदी और परिवहन के साफ सुथरे साधनों पर 18 फीसदी निवेश किया गया। इन तीनों क्षेत्रों के लिए अधिकांश वित्त घरेलू स्तर पर जुटाया गया था।
शमन के विपरीत, अनुकूलन के लिए अधिकांश वित्त सार्वजनिक साधनों से जुटाया गया। 2021-22 में, इस वित्तपोषण का 98 फीसदी हिस्सा घरेलू स्रोतों से आया, इसे मुख्य रूप से केंद्र और राज्य सरकार के बजट के जरिए जुटाया गया।
हालांकि निजी स्रोतों, जैसे निवेशकों, से कृषि में अनुकूलन संबंधी गतिविधियों के लिए मिलने वाली धनराशि बेहद कम, एक फीसदी से भी कम थी।
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय वित्त की हिस्सेदारी बेहद सीमित है, लेकिन 2019-20 की तुलना में इसमें 2021-22 के दौरान 19 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसमें से 92 फीसदी सार्वजनिक स्रोतों से आया। रिपोर्ट में चेताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में अनुकूलन के लिए किए जा रहे निवेश में वृद्धि होने की संभावना है।
अनुकूलन क्षेत्र में, आपदा जोखिम प्रबंधन को सबसे अधिक धनराशि प्राप्त हुई, जो इस क्षेत्र को दिए गए वित्त का 42 फीसदी थी। इसमें 2019-20 से दस गुना वृद्धि भी देखी गई है। इसका सबसे बड़ा कारण सरकारी बजट में आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए किए जा रहे खर्च में वृद्धि थी।
इसके बाद, बाढ़ और चक्रवात से बचाव के लिए 32 फीसदी और 24 फीसदी धनराशि खेतों को जलवायु में आते बदलावों के अनुकूल बनाने में खर्च की गई।
कृषि अनुकूलन संबंधित गतिविधियों में फसल बीमा को कुल वित्तपोषण का 58 फीसदी हिस्सा प्राप्त हुआ। कृषि अनुकूलन गतिविधियों के 99 फीसदी का वित्तपोषण सार्वजनिक स्रोतों से किया गया।