जलवायु परिवर्तन एक ऐसा खतरा है, जो आज जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रहा है। इससे हमारी अर्थव्यवस्थाएं भी सुरक्षित नहीं है। जलवायु में आते इन बदलावों का सीधा असर आम आदमी की कमाई पर भी पड़ रहा है।
जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपने एक नए अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के कमाई पर पड़ते इन्हीं प्रभावों को उजागर किया है। रिसर्च मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से अगले 26 वर्षों में वैश्विक स्तर पर होती कमाई स्थाई तौर पर औसतन 19 फीसदी तक घट जाएगी। इससे भारत भी अछूता नहीं रहेगा। आशंका है कि भारत के अधिकांश क्षेत्रों में कमाई में 20 से 25 फीसदी की गिरावट आ सकती है।
रिसर्च में यह भी सामने आया है कि यदि आज से ही कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती की जाए तो भी कमाई में इस कमी का आना करीब-करीब तय है। बता दें कि वातावरण में पहले ही जीवाश्म ईंधन और अन्य कारणों से हो चुके उत्सर्जन की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को होने वाला यह नुकसान करीब-करीब तय माना जा रहा है।
इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि आर्थिक रूप से होता यह नुकसान बढ़ते तापमान को दो डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने की आवश्यक लागत से भी छह गुणा अधिक है।
अध्ययन में बढ़ते तापमान, भारी बारिश, और चरम मौसमी घटनाओं से सालाना होने वाले नुकसान का भी अनुमान लगाया है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि 2050 तक इनकी वजह से सालाना होने वाला नुकसान करीब 3,175 लाख करोड़ रुपए (38 लाख करोड़ डॉलर) पर पहुंच जाएगा। हालांकि उनके मुताबिक चरम मौसमी घटनाओं की वजह से यह नुकसान उससे ज्यादा भी हो सकता है।
इस नुकसान का आंकलन करने के लिए वैज्ञानिकों ने दुनिया के 1,600 से अधिक क्षेत्रों के चार दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है, ताकि यह समझा जा सके कि बदलती जलवायु, भविष्य में आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करेगी।
इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक जलवायु में आते बदलावों की वजह से अगले 26 वर्षों में दुनिया के करीब-करीब हर देश को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है। इनसे फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका जैसे समृद्ध देश भी नहीं बच पाएंगें।
हालांकि अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता मैक्सिमिलियन कोट्ज ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगें। उनके मुताबिक अधिकांश क्षेत्रों में कृषि पैदावार, श्रम उत्पादकता और बुनियादी ढांचे जैसे कारकों पर जलवायु परिवर्तन के पड़ते प्रभावों के कारण कमाई में महत्वपूर्ण कमी देखने को मिलेगी।
भारत के अधिकांश हिस्सों में कमाई में आ सकती है 20 से 25 फीसदी की गिरावट
अध्ययन में जो आंकड़े सामने आए हैं उनके मुताबिक जहां अमेरिका और यूरोप में कमाई को होने वाला नुकसान औसतन 11 फीसदी रहने का अंदेशा है। वहीं अफ्रीका और दक्षिण एशिया में होने वाली औसत कमाई में 22 फीसदी का नुकसान हो सकता है। हालांकि कुछ देशों में यह उससे कम-ज्यादा हो सकता है।
रिसर्च के मुताबिक भारत के अधिकांश राज्यों में कमाई को होने वाला यह नुकसान 20 से 25 फीसदी के बीच रह सकता है। वहीं हिमाचल प्रदेश, उत्तरखंड, और अरुणाचल प्रदेश में इस नुकसान के 10 से 20 फीसदी के बीच रहने का अंदेशा है।
अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता लियोनी वेन्ज ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि आने वाले समय में होने वाले इस नुकसान के लिए अब तक किया जा चुका उत्सर्जन जिम्मेवार है। ऐसे में हमें यदि हमें इस नुकसान को सीमित करना है तो इसके लिए जलवायु अनुकूलन से जुड़े कहीं ज्यादा प्रयास करने होंगें।
उनका यह भी कहना है कि उत्सर्जन को तत्काल कम करना जरूरी है, वर्ना यह आर्थिक नुकसान और बढ़ सकता है। जो सदी के अंत तक वैश्विक रूप से 60 फीसदी तक पहुंच सकता है। उनके मुताबिक इससे यह भी पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने पर किया निवेश इससे होने वाले नुकसान से कहीं ज्यादा सस्ता है। हालांकि इसमें जीवन या जैव विविधता को होने वाली क्षति जैसे गैर आर्थिक प्रभावों को शामिल नहीं किया गया है।
सबसे कम जिम्मेवार देशों को सबसे ज्यादा होगा नुकसान
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में जलवायु प्रभावों में व्याप्त महत्वपूर्ण असमानताओं को भी उजागर किया है। इस बारे में एंडर्स लेवरमैन ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि उष्णकटिबंधीय देशों को उनकी गर्म जलवायु के कारण सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ेगा। तापमान बढ़ने से यह प्रभाव कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेंगें।
उनके मुताबिक कमजोर देश जो जलवायु में आते बदलावों के लिए सबसे कम जिम्मेवार हैं, उनको इन बदलावों से सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ सकता है। इन देशों को समृद्ध देशों की तुलना में कमाई में 60 फीसदी से अधिक का नुकसान हो सकता है। दुर्भाग्य से, यह देश पहले ही जलवायु में आते इन बदलावों से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इनके पास इसके प्रति अनुकूलन के लिए बेहद कम संसाधन मौजूद हैं।
ऐसे में शोधकर्ताओं ने बढ़ते तापमान को स्थिर रखने के लिए जीवाश्म ईंधन जैसे तेल, गैस और कोयले के उपयोग को बंद करने पर जोर दिया है। उनके मुताबिक अक्षय ऊर्जा की ओर रुख इन अनचाहे खतरों से सुरक्षा और आर्थिक कल्याण के लिए बेहद आवशयक है। साथ ही उन्होंने यह भी चेताया है कि यदि हम पुराने ढर्रे पर चलते रहे तो आने वाले वक्त में इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।