तपी रातें, घटी नींद: इस तरह भी हमारी सेहत से खिलवाड़ कर रहा बढ़ता तापमान

दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने 1.2 करोड़ रातों के आंकड़ों का विश्लेषण कर बताया है कि रातों में बढ़ती गर्मी नींद की अवधि और गुणवत्ता दोनों को प्रभावी कर रही है
तपती रातें नींद में डाल रही खलल; प्रतीकात्मक तस्वीर: पिक्साबे
तपती रातें नींद में डाल रही खलल; प्रतीकात्मक तस्वीर: पिक्साबे
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सारांश
  • बढ़ते तापमान के कारण रात की नींद पर गहरा असर पड़ रहा है।

  • दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अध्ययन के अनुसार, गर्म रातें नींद की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही हैं, जिससे स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं।

  • विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर और बीमार लोग अधिक प्रभावित हो रहे हैं।

रात का बढ़ता तापमान दबे पांव हमारी नींद पर असर डाल रहा है। तापमान की यह अतिरिक्त तपिश नींद को न केवल छोटा कर रही है, बल्कि उसे उथली, अधूरी और कम सुकूनभरी भी बना रही है।

दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में इस बारे में किए नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ती गर्म रातें दुनिया की नींद छीन रही हैं, और इसका सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ रहा है जो पहले से जीवन की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। यह लोग पहले ही बीमारियों, आर्थिक कमजोरी जैसी मुसीबतों का सामना कर रहे हैं ऊपर से घटती नींद और उसकी गुणवत्ता उनके स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रही है।

इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायरमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं। यह नया अध्ययन हार्वर्ड मेडिकल स्कूल/ब्रिघम एंड विमेन्स हॉस्पिटल के सहयोग से किया गया है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 14,232 अमेरिकियों के आंकड़ों का उपयोग किया है।

इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि 2099 तक लोग हर साल 24 घंटे तक की नींद सिर्फ बढ़ते तापमान और गर्मी के कारण खो सकते हैं।

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वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब रात में तापमान बढ़ता है तो वो शरीर को स्वाभाविक रूप से ठंडा होने नहीं देता। इससे तनाव बढ़ता है और नींद की अवधि, रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) स्लीप और गुणवत्ता पर असर पड़ता है। गौरतलब है कि आरईएम स्लीप, नींद का वह समय होता है, जिसमें हमारा शरीर खुद को स्वस्थ्य करता है।

इस दौरान हम सपने देखते हैं, दिमाग बहुत एक्टिव रहता है, शरीर आराम करता है, लेकिन साथ ही सीखने और याद रखने का काम भी करता रहता है। इससे आगे चलकर कई स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है, जिनमें दिल और सांस से जुड़ी दिक्कतें तथा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता जियावेन लियाओ का कहना है, “भीषण गर्मी और लू के दौरान दिल और फेफड़ों की बीमारियों से होने वाली मौतें बढ़ जाती हैं। लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि जब वैश्विक तापमान लगातार बढ़ता रहेगा, तो इसका लोगों की सेहत पर क्या असर पड़ेगा?”

इस बारे में अब तक हुए शोध बताते हैं कि बढ़ता तापमान नींद में दिक्कतें पैदा करता है, लेकिन ज्यादातर अध्ययन यह नहीं बता पाए कि किन लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता है।

कारण यह था कि उनमें अध्ययन में शामिल लोगों की उम्र, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और स्वास्थ्य से जुड़ी विस्तृत जानकारी शामिल नहीं थी। इससे वैज्ञानिक पूरी तरह समझ नहीं पाए कि कौन सबसे ज्यादा जोखिम में है और किस तरह मदद की जाए।

कौन सबसे ज्यादा प्रभावित?

इस शोध में 14,000 से अधिक लोगों के स्वास्थ्य, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और फिटबिट से रिकॉर्ड की गई 1.2 करोड़ रातों की नींद का विश्लेषण किया गया है।

इसमें उन्होंने यह समझने की कोशिश की कि लोग कितनी देर सोते हैं और उन्हें नींद आने में कितनी आसानी होती है। उन्होंने 80 लाख से ज्यादा रातों से जुड़े वह आंकड़े भी जांचे हैं, जिनमें नींद के अलग-अलग चरण और नींद टूटने की आवृत्ति दर्ज थी। अंत में, उन्होंने लोगों के रहने के स्थान और मौसम से जुड़े आंकड़ों को मिलाकर यह पता लगाया कि क्या बदलते तापमान का नींद पर कोई असर पड़ रहा है।

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विश्लेषण के नतीजे दर्शाते हैं कि जब रात का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो नींद के 2.63 मिनट कम हो जाते हैं। यह असर महिलाओं के साथ-साथ महिलाओं, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों और पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों अधिक दर्ज किया गया।

अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि जून से सितंबर के बीच नींद में सबसे अधिक कमी पाई गई। शोधकर्ताओं के मुताबिक वेस्ट कोस्ट के लोग बाकी क्षेत्रों की तुलना में करीब तीन गुणा अधिक नींद खो रहे हैं। भले ही नींद में कुछ मिनटों की यह कमी मामूली लगे, लेकिन जब लाखों लोगों की नींदे घटती है, तो यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन जाता है।

भविष्य की बेचैन रातें

इस अध्ययन के अनुमान डराते हैं क्योंकि आने वाली पीढ़ियां हर साल एक पूरा दिन कम सोएंगी। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि यदि तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो लोग भविष्य में हर साल औसतन 8.5 से 24 घंटे तक की नींद खो सकते हैं।

नींद में इतनी कमी का सीधा मतलब है कि आने वाले वर्षों में इसका स्वास्थ्य पर लंबे समय तक गंभीर असर पड़ेगा। अध्ययन यह भी दिखाता है कि यह खतरा सभी के लिए बराबर नहीं है, कुछ समुदाय गर्म रातों की मार के प्रति कहीं ज्यादा असुरक्षित हैं। जो गरीब या पहले से बीमार हैं, या ऐसे इलाकों में रह रहे हैं जहां भीषण गर्मी पड़ती है, सबसे पहले इसका तीखा झटका उन्हीं को लग रहा है।

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इसीलिए समाधान भी इन्हीं संवेदनशील इलाकों और आबादियों पर केंद्रित होने चाहिए, जैसे शहरों में एयर कंडीशनिंग की पहुंच बढ़ाना, ग्रीन रूफ और शहरी हरियाली को बढ़ावा देना, और घरों में बेहतर इन्सुलेशन और वेंटिलेशन को अनिवार्य करना।

इसके साथ ही कूलिंग और स्लीप हाइजीन जैसे कार्यक्रम बड़े स्तर पर चलाए जाएं, तो नींद की गुणवत्ता सुधारने और गर्मी के हानिकारक प्रभाव कम करने में बड़ी मदद मिल सकती है।

अंतराष्ट्रीय संगठन क्लाइमेट सेंट्रल और क्लाइमेट ट्रेंड्स ने अपने एक विश्लेषण में खुलासा किया है कि भारत में गर्म होती रातों के पीछे जलवायु परिवर्तन का बड़ा हाथ है, जो देश के साथ-साथ दुनिया भर में नींद की गुणवत्ता पर असर डाल रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ने लगा है।

'स्लीपलेस नाइट्स' नामक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 से 2023 के बीच केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, जम्मू कश्मीर और आंध्र प्रदेश के शहरों में जलवायु परिवर्तन की वजह से साल में करीब 50 से 80 अतिरिक्त रातें ऐसी दर्ज की गई हैं, जब तापमान 25 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया।

रिपोर्ट के मुताबिक रात के समय अधिक तापमान लोगों को असहज कर सकता है। रात में जब शरीर का तापमान कम नहीं होता तो वो स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, इससे मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है।

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