भारत में दिन ही नहीं तप रही रातें, नींद के साथ स्वास्थ्य से भी कर रहा खिलवाड़

केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, जम्मू कश्मीर और आंध्र प्रदेश के शहरों में जलवायु परिवर्तन की वजह से साल में करीब 50 से 80 अतिरिक्त गर्म रातें दर्ज की गई
भारत के कई हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ रही है, जो अब तक सैकड़ों लोगों की जान ले चुकी है; फोटो: आईस्टॉक
भारत के कई हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ रही है, जो अब तक सैकड़ों लोगों की जान ले चुकी है; फोटो: आईस्टॉक
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देश में बढ़ता तापमान और उससे जुड़ी चरम मौसमी घटनाएं महज फसाना भर नहीं रह गई हैं। इन घटनाओं का असर अब खुलकर सामने आने लगा है। जलवायु परिवर्तन न केवल दिन बल्कि रात में भी बढ़ते तापमान की वजह बन रहा है। जो न केवल लोगों की नींद उड़ा रहा है, साथ ही उनके स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ कर रहा है।

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर काम कर रहे अंतराष्ट्रीय संगठन क्लाइमेट सेंट्रल और क्लाइमेट ट्रेंड्स ने अपने नए विश्लेषण में खुलासा किया है कि देश में गर्म होती रातों के पीछे जलवायु परिवर्तन का बड़ा हाथ है, जो भारत के साथ-साथ दुनिया भर में नींद की गुणवत्ता पर असर डाल रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ने लगा है।

भारत जलवायु में आते बदलावों के लिए प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील देशों में से भी एक है। यदि पिछले एक दशक के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में रात के समय न्यूनतम तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विश्लेषण ने पुष्टि की है कि रात में तापमान के 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहने की एक बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है।

क्लाइमेट सेंट्रल की 'स्लीपलेस नाइट्स' नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक 2018 से 2023 के बीच केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, जम्मू कश्मीर और आंध्र प्रदेश के शहरों में जलवायु परिवर्तन की वजह से साल में करीब 50 से 80 अतिरिक्त रातें ऐसी दर्ज की गई हैं, जब तापमान 25 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया।

यदि मेट्रो शहरों पर नजर डालें तो मुंबई में रात के तापमान में सबसे ज्यादा बदलाव देखने को मिला है। बढ़ते तापमान की वजह से शहर में 65 अतिरिक्त गर्म रातें देखी गई हैं। वहीं यदि राज्यों की बात करें तो पश्चिम बंगाल और असम पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है, जहां जलपाईगुड़ी, गुवाहाटी, सिलचर, डिब्रूगढ़ और सिलीगुड़ी जैसे शहरों में औसतन हर साल 80 से 86 अतिरिक्त दिन ऐसे दर्ज किए गए हैं जब तापमान जलवायु परिवर्तन की वजह से 25 डिग्री से ऊपर पहुंच गया।

भारत के मैदानी इलाकों में ही नहीं पहाड़ों पर भी गर्म हो रही रातें

जलवायु परिवर्तन के चलते कई शहरों में 15 से 50 अतिरिक्त दिन ऐसे रहे, जब न्यूनतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा। इनमें जयपुर भी शामिल है, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण 19 अतिरिक्त गर्म रातें दर्ज की गई।

आंकड़ों से पता चला है कि भारत में गर्मियों के दौरान रात का तापमान अक्सर 20 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है। देखा जाए तो जलवायु में आते बदलावों की वजह से इन गर्म रातों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है कि गंगटोक में 54 अतिरिक्त दिन, दार्जिलिंग में 31, शिमला में 30 और मैसूर में 26 अतिरिक्त दिन न्यूनतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा।

रिपोर्ट के मुताबिक रात के समय अधिक तापमान लोगों को असहज कर सकता है। रात में जब शरीर का तापमान कम नहीं होता तो वो स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इससे मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है।

इस बाते के भी प्रमाण बढ़े हैं कि रात के समय बढ़ता तापमान नींद की गुणवत्ता और अवधि को भी प्रभावित करता है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सोचने-समझने की क्षमता और जीवन प्रत्याशा को नुकसान पहुंचा सकता है। गर्म रातें विशेष रूप से बुजुर्गों और समाज के कमजोर तबके के लिए कहीं ज्यादा मुश्किल होती हैं, जिनकी ऐसी, कूलर, पंखों जैसी सुविधाओं तक पहुंच बेहद सीमित होती है।

गौरतलब है कि यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ रही है। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक भारत में लू और गर्मी का कहर इस साल 100 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है। इसके साथ ही अब तक लू लगने के 42,000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। भीषण गर्मी और लू का यह कहर केवल भारत तक ही सीमित नहीं है हाल में हज करने गए 1,000 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है। कई अन्य देशों में भी लू और गर्मी से होने वाली मौतों की खबरे सामने आई हैं।

कई भारतीय शहरों में इस समय रात के समय बढ़ते तापमान ने नए रिकॉर्ड बनाए हैं। उदाहरण के लिए 19 जून को दिल्ली ने न्यूनतम तापमान का नया रिकॉर्ड बनाया था, जब बढ़ता तापमान 35.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। इस विश्लेषण में सामने आया है कि 2018 से 2023 के बीच दिल्ली में जलवायु परिवर्तन की वजह से करीब चार अतिरिक्त रातें ऐसे दर्ज की गई, जब तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक रिकॉर्ड किया गया।

ऐसा ही कुछ 18 जून 2024 को राजस्थान में दर्ज किया गया, जब अलवर में न्यूनतम तापमान बढ़कर 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। 1969 के बाद से देखें तो वहां रात के समय तापमान कभी इतना नहीं दर्ज किया गया। अलवर से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2018 से 2023 के बीच करीब नौ अतिरिक्त रातें ऐसी रिकॉर्ड की गई जब जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया था।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में भी इस सप्ताह न्यूनतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इसी तरह शाहजहांपुर में भी न्यूनतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस और वाराणसी में 33.6 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया। वाराणसी से जुड़े विश्लेषण को देखें तो 2018 से 2023 के बीच चार अतिरिक्त रातें ऐसी दर्ज की गई जब जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान 25 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ने भी पुष्टि की है कि जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में पड़ रही गर्मी और लू की घटनाएं और अधिक विकराल रूप ले सकती हैं।

क्लाइमेट सेंट्रल ने अपनी रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर होने वाले बदलावों पर भी प्रकाश डाला है। विश्लेषण के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया गर्म हो रही है। इसकी वजह से दिन की तुलना में रात का तापमान कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है।

क्यों गर्म हो रहे हैं शहर, कौन है जिम्मेवार

विश्लेषण के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से 2018 से 2023 के बीच पृथ्वी पर हर व्यक्ति को 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाली 4.8 रातें और गुजारनी पड़ी। इस दौरान, औसत हर व्यक्ति को सालाना 11.5 अतिरिक्त दिनों का सामना करना पड़ा जब तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक था। देखा जाए तो इसके लिए हम इंसान खुद जिम्मेवार हैं जो जीवाश्म ईंधन पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। जीवाश्म ईंधन पर यह निर्भरता बढ़ते उत्सर्जन की वजह बन रही है।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी से जुड़े जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर रॉक्सी मैथ्यू कोल ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि, “अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट का असर रात में कहीं ज्यादा स्पष्ट होता है। शहरों में इमारतें, सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचे गर्मी को अवशोषित करते हैं और फिर उस गर्मी को उत्सर्जित करते हैं। इसकी वजह से वो ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कहीं ज्यादा गर्म हो जाते हैं।“

उनके मुताबिक दिन के समय, सूर्य की किरणें लघु तरंग विकिरण के रूप में पहुंचती हैं और पृथ्वी की सतह को गर्म करती हैं। रात में, यह गर्मी लॉन्गवेव विकिरण के रूप में मुक्त होती है। हालांकि यह लघु तरंगें आसानी से सतह तक पहुंच जाती हैं, वहीं लॉन्गवेव विकिरण कंक्रीट और बादलों में फंस जाता है।

शहरों में ऊंची इमारतें और कंक्रीट रात के समय अतिरिक्त गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते। ऐसे में तापमान ठंडा नहीं हो पाता और रात में भी गर्मी और लू जारी रहती है। उनका आगे कहना है कि पेड़ों वाली हरी-भरी जगहें रात में गर्मी को तेजी से मुक्त कर सकती हैं, लेकिन भारत में प्राकृतिक क्षेत्रों की तुलना में गगनचुंबी इमारतों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। ऊपर से बेतरतीब शहरी नियोजन, खराब निर्माण इसमें और ज्यादा योगदान देता है।

उनके मुताबक जलवायु परिवर्तन की वजह से हर जगह गर्मी बढ़ रही है, लेकिन हमारी इमारतों और बुनियादी ढांचे द्वारा पैदा अर्बन हीट आइलैंड की वजह से शहरों में कहीं ज्यादा गर्मी हो रही है।

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