जलवायु परिवर्तन: 12 महीनों में भारतीयों को 20 दिन ज्यादा झेलनी पड़ी भीषण गर्मी

रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले 12 महीनों में दुनिया का कोई भी हिस्सा खतरनाक गर्मी से नहीं बच सका। हर देश में, जलवायु परिवर्तन ने बेहद गर्म दिनों की संख्या में इजाफा किया है
फोटो: आईस्टॉक
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जलवायु में आते बदलावों के चलते साल दर साल गर्मी का कहर बढ़ रहा है। ऐसा ही कुछ पिछले 12 महीनों में भी देखने को मिला, जब दुनिया की 49 फीसदी आबादी यानी 400 करोड़ लोगों को भीषण गर्मी के 30 अतिरिक्त दिन झेलने पड़े।

गौरतलब है कि यह 30 दिन उनके इलाके में 1991 से 2020 के बीच दर्ज 90 फीसदी तापमान से ज्यादा गर्म थे। वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि इस बढ़ती गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार था। यह खुलासा एक नई अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले 12 महीनों में दुनिया का कोई भी हिस्सा खतरनाक गर्मी से नहीं बच सका। हर देश में, जलवायु परिवर्तन ने बेहद गर्म दिनों की संख्या में इजाफा किया है।

भारत से जुड़े आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 12 महीनों में जलवायु परिवर्तन की वजह से 20 अतिरिक्त बेहद गर्म दिन दर्ज किए गए। अरुणाचल प्रदेश में इन दिनों की संख्या 44, जबकि जम्मू कश्मीर में 22 दर्ज की गई।

रिपोर्ट के मुताबिक सभी देशों और क्षेत्रों में अरूबा सबसे ज्यादा प्रभावित रहा, जहां 187 बेहद गर्म दिन रिकॉर्ड किए गए। हैरानी की बात है कि अगर जलवायु परिवर्तन न हुआ होता, तो वहां के लोगों को ऐसे सिर्फ 45 दिन ही झेलने पड़ते। मतलब की जलवायु परिवर्तन की वजह से वहां 142 बेहद गर्म दिन दर्ज किए। इसके बाद डॉमिनिका में 184 बेहद गर्म दिन रिकॉर्ड किए गए।

'क्लाइमेट चेंज एंड द एस्केलेशन ऑफ ग्लोबल एक्सट्रीम हीट' नामक यह रिपोर्ट वर्ल्ड हीट एक्शन डे पर जारी की गई है। इस रिपोर्ट को वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन, क्लाइमेट सेंट्रल और रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट क्लाइमेट सेंटर के वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार किया है।

अपनी इस रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने मई 2024 से एक मई 2025 के बीच की अवधि का अध्ययन किया है। बता दें कि वैज्ञानिकों ने 'अत्यधिक गर्म दिन' उन दिनों को माना है जो 1991 से 2020 के बीच दर्ज 90 फीसदी तापमान से कहीं ज्यादा गर्म थे।

इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने मॉडल के जरिए मौजूदा गर्म दिनों की तुलना उस काल्पनिक दुनिया से की, जहां यदि इंसानों ने जलवायु को प्रभावित नहीं किया होता, तो स्थिति क्या होती।

जलवायु परिवर्तन से दोगुने हुए बेहद गर्म दिन

रिपोर्ट के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनसे पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले 12 महीनों में दुनिया की 49 फीसदी आबादी ने 30 अतिरिक्त दिनों तक गर्मी की मार झेली है। दुनिया के 195 देशों और क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन की वजह से बेहद गर्म दिन दोगुने हो गए हैं।

इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने पिछले 12 महीनों में लू (हीटवेव) की 67 घटनाएं दर्ज की — और पाया कि इस हर एक घटना पर जलवायु परिवर्तन की छाप थी। इन घटनाओं ने लोगों की सेहत और सम्पति पर गहरा असर डाला है।

रिपोर्ट के मुताबिक, जीवाश्म ईंधनों का जलना अब हर महाद्वीप पर स्वास्थ्य और जीवन को नुकसान पहुंचा रहा है। हालांकि विकासशील देशों में इन प्रभावों को अभी भी गंभीरता से नहीं समझा गया है।

लगातार टूट रहे तापमान के रिकॉर्ड

रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान पर भी प्रकाश डाला गया है। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा, जिसने 2023 में बने पिछले रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है। इतना ही नहीं इस साल अब तक का सबसे गर्म जनवरी का महीना भी रिकॉर्ड किया गया है।

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वहीं फरवरी 2025 का महीना अब तक का तीसरा सबसे गर्म फरवरी था। इस दौरान तापमान औद्योगिक काल से पहले (1850-1900) की तुलना में 1.59 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। वहीं भारत में फरवरी में बढ़ती गर्मी ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 125 वर्षों के दौरान 2025 में अब तक की सबसे गर्म फरवरी रिकॉर्ड की गई।

इसके साथ ही दुनिया ने इस साल अब तक के अपने दूसरे सबसे गर्म मार्च का भी सामना किया। इस दौरान तापमान सामान्य से 1.6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। इसी तरह अप्रैल 2025, पिछले 22 में से 21वां महीना रहा जब बढ़ते तापमान ने 1.5 डिग्री सेल्सियस की लक्ष्मण रेखा को पार कर दिया। इस दौरान तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.51 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया।

वहीं नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) से जुड़े वैज्ञानिकों ने इस बात की 99 फीसदी आशंका जताई है कि 2025 अब तक के पांच सबसे गर्म वर्षों में शामिल होगा।

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देखा जाए तो यह कोई अचानक से होने वाली घटना नहीं है। इसके कारण अच्छी तरह से समझे जा चुके हैं। वैज्ञानिक पहले ही कह चुके हैं कि यदि बढ़ते तापमान पर लगाम न लगाई गई तो उसके बेहद विनाशकारी परिणाम सामने आ सकते हैं। इसके बावजूद ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है।

धरती का तापमान अब औद्योगिक काल से पहले की तुलना में औसतन 1.3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है। वहीं यदि सिर्फ 2024 को देखें तो यह वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गई है।

इसके वजह से चरम मौसमी घटनाओं का कहर बढ़ रहा है। ऐसी ही भीषण गर्मी और लू की एक घटना मार्च 2025 में मध्य एशिया में दर्ज की गई। रिपोर्ट की मानें तो यदि जलवायु परिवर्तन न हुआ होता तो उस दौरान तापमान 10 डिग्री सेल्सियस कम होता।

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विनाश की राह पर मानवता

जलवायु परिवर्तन से जुड़ी ऐसी ही एक घटना मई 1 से 30, 2024 के बीच प्रशांत द्वीपों में दर्ज की गई। यह घटना इतनी असामान्य थी कि अगर जलवायु परिवर्तन न हुआ होता, तो यह घटना न के बराबर या शायद हुई ही नहीं होती। रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन ने इसकी आशंका को 69 गुना बढ़ा दिया।

देखा जाए तो बढ़ती गर्मी का असर सिर्फ स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ रहा। यह कई क्षेत्रों को एक साथ प्रभावित करता है। इससे जहां किसानों उनके मवेशियों और खेतों पर असर पड़ता है।

साथ ही जल संकट गहरा जाता है। इतना ही नहीं इसकी वजह से जहां स्वास्थ्य सेवाएं दबाव में आ जाती हैं और बिजली जैसी बुनियादी सेवाएं भी बाधित हो सकती हैं।

नतीजन शहरों में हालात और गंभीर हो जाते हैं—बिजली कटौती, पानी की किल्लत, काम के घंटों में कमी और तनाव या हिंसा जैसी घटनाएं बढ़ जाती हैं। ये सभी असर दिखाते हैं कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, हमारी व्यवस्था एक साथ कई तरीकों से कमजोर हो रही है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि कमजोर देशों में गर्मी से जुड़ी बीमारियों और मौतों के सटीक आंकड़े मौजूद नहीं हैं। जैसे 2022 की गर्मियों में यूरोप में 61,000 से अधिक मौतें रिकॉर्ड हुईं, लेकिन बाकी जगहों पर ऐसे आंकड़े नहीं उपलब्ध नहीं हैं। कई बार गर्मी से होने वाली मौतों को दिल या फेफड़ों की बीमारी बताकर दर्ज कर लिया जाता है। ऐसे में रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने शहरों के लिए खासतौर पर हीट अलर्ट सिस्टम, जनजागरूकता अभियान और गर्मी से निपटने की योजनाओं की जरूरत पर जोर दिया है।

वैज्ञानिकों ने शहरों में इमारतों, मकानों के बेहतर डिजाईन जैसे छाया, हवादार कर्म और भीषण गर्मी में भारी काम से बचने की सिफारिश की है। हालांकि उन्होने इस बात पर भी जोर दिया है कि केवल इन बदलावों से काम नहीं चलेगा। बढ़ती गर्मी को रोकने का एकमात्र तरीका है जल्द से जल्द कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को बंद करना और बढ़ते उत्सर्जन पर लगाम लगाना।

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