
एक नई स्टडी से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन स्थानीय प्रजातियों के लिए दोहरी चुनौती बन रहा है। एक तरफ जहां जलवायु में आते बदलावों से स्थानीय प्रजातियों के उपयुक्त प्राकृतिक आवास घट रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विदेशी प्रजातियों का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ सकता है।
इसकी वजह से स्थानीय और विदेशी प्रजातियों के बीच टकराव की आशंका भी बढ़ रही है। यह जानकारी अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक अभी तक किए ज्यादातर अध्ययनों में जलवायु परिवर्तन और विदेशी प्रजातियों के आक्रमण और उनके प्रभावों को अलग-अलग समझा जाता था। ऐसे में इनके संयुक्त प्रभावों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया गया। लेकिन इस नए अध्ययन में दोनों के संयुक्त प्रभाव को परखा गया है, ताकि यह समझा जा सके कि किन जीवों पर खतरा मंडरा रहा है।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि जलवायु में आते बदलावों से भविष्य में स्थानीय और विदेशी दोनों प्रजातियों के लिए अनुकूल आवास सिकुड़ सकते हैं।
चिंता की बात है इनकी वजह से दोनों के आवास एक दूसरे से ओवरलैप कर सकते हैं। नतीजन इसकी वजह से स्थानीय प्रजातियों पर दबाव बढ़ सकता है। यहां तक की कुछ प्रजातियां स्थानीय तौर पर विलुप्त भी हो सकती हैं।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता इवान एरिसमेंडी ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा, "जलवायु परिवर्तन और विदेशी प्रजातियों का फैलाव दुनिया भर में पारिस्थितिकी तंत्र को बदल सकता है। ऐसे में हमारे लिए इन दोनों के संयुक्त प्रभावों को समझना जरूरी है।" उनके मुताबिक इससे बचने के लिए प्रबंधन की नई रणनीतियां बनानी होंगी।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक इकोलॉजिकल मॉडल का उपयोग किया है, जोकि एक तरह का कंप्यूटर टूल है। यह मॉडल पर्यावरण से जुड़ी जानकारी और आंकड़ों के आधार पर भविष्य में प्रजातियों के संभावित आवास को बताता है। इसकी मदद से शोधकर्ताओं ने एक फ्रेमवर्क तैयार किया, जिससे यह समझा जा सके कि जलवायु परिवर्तन किस तरह प्रजातियों के फैलाव और उनके ओवरलैप होते आवासों को प्रभावित कर सकता है।
अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पैसिफिक नॉर्थवेस्ट में विदेशी प्रजातियों स्मॉलमाउथ बास और नॉर्दर्न पाइक के बढ़ते खतरे और स्थानीय रेडबैंड ट्राउट और बुल ट्राउट मछलियों पर उनके प्रभावों का अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं ने यह भी पुष्टि की है कि इस मॉडल का उपयोग अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में दूसरी प्रजातियों के अध्ययन में भी किया जा सकता है।
अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनसे पता चला है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन की वजह से देशी और विदेशी (रेडबैंड ट्राउट, बुल ट्राउट, स्मॉलमाउथ बास और नॉर्दर्न पाइक) दोनों तरह की मछलियों के आवास सिकुड़ जाएंगे। ऐसे में ये मछलियां ऊंचे और ठंडे पानी वाले इलाकों की तरफ शिफ्ट करेंगी।
प्रबंधन की नई रणनीतियों की है आवश्यकता
अध्ययन में यह भी सामने आया है इसकी वजह से ये मछलियां सीमित जगहों पर इकट्ठा हो सकती हैं। शोधकर्ताओं ने पिछले शोधों का हवाला देते हुए कहा है कि जब स्मॉलमाउथ बास और नॉर्दर्न पाइक जैसी शिकारी मछलियों का आवास सैल्मन जैसी देशी प्रजातियों से मिलता है, तो वे उनका शिकार करती हैं।
इससे स्थानीय मछलियों पर दबाव बढ़ जाएगा। इसकी वजह से खासतौर पर उनके छोटे बच्चों और अंडों पर कहीं खतरा ज्यादा होगा। साथ ही इसकी वजह से साल भर शिकार और प्रतिस्पर्धा का खतरा भी बना रहता है।
शोधकर्ताओं को डर है कि बढ़ती चुनौतियों के चलते कुछ इलाकों में देशी सैल्मन प्रजातियां खत्म हो सकती हैं, जैसा कि पहले भी दक्षिण-पूर्व अलास्का और दुनिया के अन्य हिस्सों में हो चुका है।
अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ताओं प्रोफेसर गिलर्मो जियानिको के मुताबिक हमें ऐसी प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता है जो प्रजातियों के आपसी प्रभावों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से समझें और संबोधित करें। उनके अनुसार हमारा तरीका आसान और कम खर्चीला है। इसकी मदद से उन क्षेत्रों की पहचान और निगरानी की जा सकती है, जहां विदेशी प्रजातियां भविष्य में स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि अगर समय रहते सतर्कता बरती जाए और विदेशी प्रजातियों की निगरानी व नियंत्रण की योजना बनाई जाए तो देशी प्रजातियों को बचाया जा सकता है।