जलवायु आपदाओं से बीमा क्षेत्र को झटका, 2025 में 14,500 करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है नुकसान

2024 में आपदाओं की वजह 31,800 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जिसमें से महज 57 फीसदी ही बीमा से कवर था
जलवायु आपदाओं से बीमा क्षेत्र को झटका, 2025 में 14,500 करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है नुकसान
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जलवायु आपदाओं का कहर हर गुजरते साल के साथ बढ़ता जा रहा है। यह आपदाएं बीमा उद्योग के लिए भी बड़ी चुनौती बन चुकी हैं। दुनिया की बड़ी बीमा कंपनी स्विस रे ने अपनी नई रिपोर्ट में आगाह किया है कि 2025 में जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते 14,500 करोड़ डॉलर का नुकसान हो सकता है। गौरतलब है कि यह वो नुकसान है जो बीमा के तहत कवर है।

रिपोर्ट के मुताबिक यदि 2024 के मुकाबले देखें तो इस नुकसान में करीब छह फीसदी की वृद्धि होने की आशंका है। यह रिपोर्ट 29 अप्रैल 2025 को जारी की गई है।

2024 में आपदाओं के चलते हुआ यह नुकसान 13,700 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया था। बीते कुछ वर्षों में देखें तो यह नुकसान सालाना पांच से सात फीसदी की दर से बढ़ा है।

ऐसे में स्विस रे ने आशंका जताई है कि अगर यही रफ्तार बनी रही, तो 2025 में आपदाओं से होने वाला यह नुकसान 14,500 करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है। यह आंकड़ा 1990 के दशक से अब तक हुए नुकसान के औसत से काफी ज्यादा है और 2017 के बाद दूसरा सबसे बड़ा नुकसान होगा। बीते तीन दशकों में पांच बार ऐसा मौका आया है जब आपदाओं से सालाना होने वाला यह नुकसान सामान्य से कहीं ज्यादा रहा।

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आखिरी बार ऐसा 2017 में हुआ था, जब हार्वे, इरमा और मारिया जैसे तूफानों ने बीमा कंपनियों को सबसे ज्यादा झटका दिया था। उस दौरान यह नुकसान सामान्य से 111 फीसदी ज्यादा रहा।

स्विस रे के आपदा जोखिम मॉडल के मुताबिक 2025 में आपदाओं से होने वाले नुकसान के बीमा दावे 30,000 करोड़ डॉलर या उससे ज्यादा हो सकते हैं। इसके होने की सम्भावना दस में से एक है। हालांकि यदि ऐसा हुआ तो यह पहला ऐसा साल होगा जब आपदाओं से बीमा कंपनियों को इतना नुकसान होगा।

जलवायु आपदाओं से हिली बीमा उद्योग की नींव

2024 के आंकड़ों को देखें तो आपदाओं की वजह 31,800 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ था, जिसमें से महज 57 फीसदी का ही बीमा था। मतलब कि 18,100 करोड़ डॉलर के नुकसान को कवर करने के लिए कोई बीमा नहीं था।

रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती चरम मौसमी आपदाओं ने बीमा उद्योग को अस्थिर कर दिया है, जिससे प्रीमियम बढ़ रहे हैं और बीमा कंपनियां अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों से अपने पैर बाहर खींच रही हैं।

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उदाहरण के लिए, लॉस एंजिल्स में लगी आग ने 23,000 हेक्टेयर में फैले जंगलों और बस्तियों को अपनी चपेट में लिया था। इस आपदा में जहां 29 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वहीं 16,000 इमारतें, जैसे घर, दफ्तर, दुकानें और सार्वजनिक सुविधाएं तबाह हो गई थी। इसकी वजह से हजारों लोग बेघर हो गए। इसके बाद, कैलिफोर्निया के बाजार का 80 फीसदी हिस्सा कवर करने वाली एक दर्जन बड़ी बीमा कंपनियों ने नई पॉलिसियां देना बंद कर दी या उन पर सख्त शर्तें लगा दी।

आम आदमी की पहुंच से बाहर होता बीमा

रिपोर्ट के मुताबिक बीमा दावों की लागत बढ़ने से बीमा कंपनियों को कई सालों तक नुकसान झेलना पड़ा है।

रिपोर्ट के मुताबिक किसी इलाके में प्राकृतिक आपदाओं का खतरा कितना अधिक है यह लम्बे समय में प्रीमियम की कीमतों को तय करता है। उदाहरण के लिए, कैलिफोर्निया में सबसे महंगे प्रीमियम उन इलाकों में हैं जहां जंगलों में आग लगने का खतरा ज्यादा है।

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देश में भी देखें तो जिन क्षेत्रों में आपदाओं से होने वाला नुकसान सबसे ज्यादा होता है, वहां बीमा का प्रीमियम भी सबसे ज्यादा होता है। ऐसे इलाकों में बीमा मिलना मुश्किल हो जाता है, ऐसे में नुकसान को कम करने और बढ़ती आपदाओं से निपटने के लिए प्रयास करने की जरूरत है।

2024 में तूफान हेलेन और मिल्टन सबसे ज्यादा नुकसान की वजह बने थे। इसी तरह अमेरिका में आए भारी आंधी-तूफान, दुनिया भर के शहरी क्षेत्रों में आई बाढ़ और कनाडा में अब तक के सबसे बड़े प्राकृतिक आपदा बीमा दावे इसमें शामिल हैं। 

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