इसमें कोई शक नहीं की जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उससे न केवल लोगों के जीवन और गुणवत्ता को खतरा है। साथ ही लोगों की आय पर भी इन बदलावों का भारी असर पड़ेगा। भारत भी इससे अलग नहीं है। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले प्रभाव को लेकर जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले 28 वर्षों में भारत की जीडीपी में 15 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ भारत ही नहीं दक्षिण एशिया के अन्य देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका भी इससे बुरी तरह प्रभावित होंगें। पता चला है कि 2050 तक दक्षिण एशिया में भारत और बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था इन खतरों से कहीं ज्यादा प्रभावित हो सकती है।
यह जानकारी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग फर्म एसएंडपी ग्लोबल द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है। यह फर्म देशों को उनकी अर्थव्यवस्थाओं और स्वास्थ्य के आधार पर क्रेडिट स्कोर देती है।
रिपोर्ट में भारत सहित दुनिया के 135 देशों की अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले प्रत्यक्ष प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट में मुख्य तौर पर बाढ़, सूखा, तूफान, समुद्र के जल स्तर में होती वृद्धि, जंगल में लगने वाली आग, हीटवेव और जल संकट जैसे खतरों का जीडीपी पर पड़ने वाले असर का आंकलन किया गया है। इस रिपोर्ट में जलवायु के खतरों को तीन अलग-अलग परिदृश्यों के आरसीपी2.6, आरसीपी4.5 और आरसीपी 8.5 तहत मापा है।
अनुमान है कि इन देशों में आने वाले कुछ दशकों में बाढ़, तूफान, दावाग्नि और समुद्र के बढ़ते जल स्तर का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा, जो अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करेगा। वहीं दूसरी तरफ यदि जलवायु अनुकूलन पर ध्यान न दिया गया तो कृषि के लिए पानी की कमी पाकिस्तान और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करेगी।
इतना है नहीं रिपोर्ट के मुताबिक यदि क्षेत्रीय तौर पर देखें तो दुनिया में इन बदलावों का सबसे ज्यादा असर दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इतना है नहीं रिपोर्ट के मुताबिक यदि क्षेत्रीय तौर पर देखें तो दुनिया में इन बदलावों का सबसे ज्यादा असर दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
जहां अनुकूलन के आभाव में यूरोप से 10 गुना ज्यादा असर पड़ेगा। अनुमान है कि जलवायु बदलावों के चलते जहां बाढ़, सूखा, तूफान, दावाग्नि और समुद्र के बढ़ते जलस्तर का खतरा बढ़ जाएगा। साथ ही बढ़ती गर्मी और लू पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी हो जाएगी, जो बार-बार दस्तक देगी।
भारत की 62 फीसदी कृषि पर पड़ सकता है जल संकट का असर
इतना ही नहीं दक्षिण एशिया के लिए रिपोर्ट में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार बाढ़, तूफान, दावाग्नि और बढ़ते समुद्री जल स्तर के चलते भारत की करीब 52 फीसदी जीडीपी पर असर पड़ता सकता है। वहीं बांग्लादेश की 90 फीसदी, पाकिस्तान की 20 फीसदी और श्रीलंका की 5 फीसदी जीडीपी पर इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।
इसी तरह कृषि पर बढ़ते जल संकट की बात करें तो उसके चलते भारत की 10 फीसदी, पाकिस्तान की 17 और श्रीलंका की 5 फीसदी जीडीपी प्रभावित हो सकती है। अनुमान है कि जहां आने वाले वक्त में पाकिस्तान की 81 फीसदी कृषि पानी की कमी से त्रस्त होगी। वहीं श्रीलंका में 73 और भारत में 62 फीसदी पर इसका असर देखने को मिल सकता है।
वहीं यदि लोगों पर लू के प्रकोप को देखें तो अगले 28 वर्षों में श्रीलंका की 100 फीसदी आबादी लू की चपेट में आ सकती है। वहीं पाकिस्तान की 48 फीसदी, भारत की 40 फीसदी और बांग्लादेश की 21 फीसदी आबादी लू का बढ़ता कहर झेलने को मजबूर होगी। हाल ही में भारत में लू को लेकर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा किए विश्लेषण से पता चला है कि इस साल देश के 15 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश लू की चपेट में हैं जहां पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया है।
इन बदलावों से दुनिया में कोई नहीं होगा सुरक्षित
यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो जलवायु में आते इन बदलावों के चलते जीडीपी में 4 फीसदी की गिरावट आ सकती है। देखा जाए तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा उन कमजोर देशों को भुगतना होगा जो इन जलवायु बदलावों के लिए जिम्मेवार तक नहीं हैं। अनुमान है कि अमीर देशों की तुलना में निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में जीडीपी को औसतन 3.6 गुना ज्यादा नुकसान होने की संभावना है।
इसके साथ ही मध्य एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका सहित उप-सहारा अफ्रीका के कई क्षेत्रों में भी इन बदलावों का बड़े पैमाने पर असर हो सकता है। इसी तरह पूर्वी एशिया और प्रशांत देश को भी उप-सहारा अफ्रीका के समान ही खतरों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन जहां अफ्रीकी देशों में गर्मी, सूखे और लू का खतरा ज्यादा होगा वहीं इन क्षेत्रों को तूफान और बाढ़ के चलते कहीं ज्यादा हानि हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक छोटे द्वीपीय देशों और भूमध्य रखा के पास के देशों पर जोखिम सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही उन देशों पर ज्यादा प्रभाव की आशंका है जहां अर्थव्यवस्था सेवा क्षेत्र की तुलना में कृषि पर ज्यादा निर्भर है।
गौरतलब है कि आईपीसीसी द्वारा जारी रिपोर्ट “क्लाइमेट चेंज 2022: इम्पैटस, अडॉप्टेशन एंड वल्नेरेबिलिटी” में भी बढ़ते जलवायु के खतरों के बारे में आगाह किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार यदि तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो दुनिया में करीब 300 करोड़ लोग पानी की गंभीर समस्या से त्रस्त होंगें जबकि तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ यह आंकड़ा बढ़कर 400 करोड़ के पार चला जाएगा।
इतना ही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ करीब 8 फीसदी भूमि कृषि के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी, जिसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा, आय और स्वास्थ्य पर पड़ेगा।
हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने भी गणना की है कि, पिछले 50 वर्षों में औसतन दुनिया के किसी न किसी देश में मौसम या जलवायु से जुड़ी आपदा ने लोगों को अपना निशाना बनाया है। इन आपदाओं में हर रोज 115 लोगों की मौत हो रही है। वहीं हर दिन 1,544 करोड़ रुपए के रूप में इसका खामियाजा अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ रहा है।
बीमा फर्म स्विस रे का भी अनुमान है कि पिछले 10 वर्षों में बाढ़, तूफान और दावाग्नि के चलते हर साल वैश्विक जीडीपी को 0.3 फीसदी का नुकसान हुआ है। अनुमान है कि अकेले 2021 में प्राकृतिक आपदाओं से करीब 21 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था, जबकि 9,200 लोगों की गई जान इन आपदाओं ने ली थी। वहीं संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2030 तक बदलती जलवायु के चलते हर साल 560 आपदाएं लोगों को अपना निशाना बनाएंगी।
हमारी धरती एक साझा विरासत है और यह खतरा ऐसा है जिससे कोई एक देश या शहर प्रभावित नहीं होगा। यदि तापमान बढ़ता है तो उसका खामियाजा सारी मानव जाति को उठाना होगा। ऐसे में यह हमें तय करना है कि हम अपने लिए कैसा भविष्य चुनते हैं।