जलवायु संकट: सदी के अंत तक उत्तरप्रदेश में 20 फीसदी तक घट सकती है धान की पैदावार

भविष्य में बारिश में इजाफे से जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धान की पैदावार में बढ़ सकती है। वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में बढ़ते तापमान और घटते सीजन की वजह से धान की पैदावार घट जाएगी
पारम्परिक तरीके से धान को पौधे से अलग करते किसान; फोटो: आईस्टॉक
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जलवायु परिवर्तन भारतीय किसानों के लिए एक कड़वी सच्चाई बन चुका है। न चाहते हुए भी देश में किसानों को इस अनजाने खतरे से जूझना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के किसान भी इन बदलावों से सुरक्षित नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश पर मंडराते इस खतरे पर प्रकाश डालते हुए एक हालिया रिसर्च में खुलासा किया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से भविष्य में वहां धान की पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है।

उत्तरप्रदेश में जलवायु परिवर्तन की वजह से धान की पैदावार पर कितना असर पड़ेगा इस बारे में अध्ययन में सामने आया है कि उत्तरप्रदेश के जिन क्षेत्रों में धान सिंचाई पर निर्भर है वहां इसकी पैदावार में 20 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

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हालांकि दूसरी तरफ जहां फसल काफी हद तक बारिश पर निर्भर हैं, वहां पैदावार बढ़ सकती है, लेकिन कुल मिलाकर भविष्य में उत्तरप्रदेश में हो रही धान की उपज में गिरावट आने की आशंका है।

रटगर्स यूनिवर्सिटी, जलवायु अनुसंधान केंद्र सिंगापुर और भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल अर्थ फ्यूचर में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि 23.7 करोड़ की आबादी वाला उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा कृषि प्रधान राज्य है, जो सिंधु-गंगा के मैदानों में स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 2.41 करोड़ हेक्टेयर है, जिसमें से 1.68 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर कृषि की जाती है, जो इसके कुल क्षेत्रफल का करीब 70 फीसदी है।

साल में एक से ज्यादा फसलें उगाई जाती है, जिनमें धान, गेहूं, मक्का, गन्ना, चना और अरहर प्रमुख हैं। अधिकांश लोग अपनी जीविका के लिए कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं। इनमें एक बड़ी संख्या छोटे और सीमान्त किसानों की है, जिनकी आय बेहद कम है। ऊपर से खराब बुनियादी ढांचे और कृषि पर भारी निर्भरता के कारण यहां के किसान जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील हैं।

गौरतलब है कि इसकी भौगोलिक स्थिति धान की पैदावार के लिए उपयुक्त है। यही वजह है कि राज्य के करीब-करीब सभी जिलों में बड़े पैमाने पर धान की बुवाई होती है। हालांकि यहां जलवायु, सिंचाई व्यवस्था, खेतों के आकार और कृषि के तरीकों में काफी अंतर है।

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उत्तर प्रदेश में प्रति हेक्टेयर पैदा होता है 2,150 किलोग्राम धान, राष्ट्रीय औसत है कम

उत्तर प्रदेश, भारत का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य है। यहां करीब 58.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की बुवाई की जाती है। इससे सालाना करीब दो करोड़ टन धान पैदा होता है, जो देश के कुल धान उत्पादन का करीब 11 से 12 फीसदी है। हालांकि, राज्य में प्रति हेक्टेयर धान की औसत पैदावार करीब 2,150 किलोग्राम है, जो राष्ट्रीय औसत (2,700 किलोग्राम/हेक्टेयर) से कम है।

राज्य में अलग-अलग कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र (एईजेड) हैं। इनमें कुछ क्षेत्र शुष्क, जबकि कुछ नम हैं। साथ ही इन क्षेत्रों में होने वाली मानसूनी बारिश में भी बेहद अंतर होता है। ऐसे में अध्ययन में जलवायु परिवर्तन उत्तर प्रदेश में खरीफ के सीजन में धान की खेती को कैसे प्रभावित करेगा, इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1995 से 2014 के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। साथ ही इन आंकड़ों की मदद से भविष्य में धान की पैदावार पर जलवायु परिवर्तन का किस हद तक असर पड़ेगा उसकी गणना की है।

इसके लिए वैज्ञानिकों ने एक उन्नत सिमुलेशन मॉडल का भी उपयोग किया है, साथ ही दो जलवायु परिदृश्यों एसएसपी2-4.5 और एसएसपी5-8.5 के तहत पड़ने वाले प्रभावों का आंकलन किया है। साथ ही वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में सभी क्षेत्रों में पौधों के विकास, फसल उपज, सिंचाई, जल उपयोग और दक्षता का भी अध्ययन किया है।

16 जलवायु मॉडलों का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने पाया कि इन दोनों ही जलवायु परिदृश्यों में वर्षा में इजाफे की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश पर निर्भर धान की पैदावार में इजाफा हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ पूर्वी उत्तर प्रदेश में धान की पैदावार घट जाएगी।

रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि उत्तरप्रदेश के सभी क्षेत्रों में जहां धान सिंचाई पर निर्भर है, वहां 2090 तक धान की पैदावार में 20 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। इसके लिए जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ता तापमान और पैदावार के सीजन में आती गिरावट जिम्मेवार है।

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हालांकि साथ ही वैज्ञानिकों ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि 2030 से 2090 के बीच सिंचाई की आवश्यकता घट सकती है। इसके कारण पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने अध्ययन में लिखा है कि इस दौरान एक तरह जहां बारिश में इजाफा होगा वहीं साथ ही वाष्पीकरण में गिरावट की वजह से फसलों को पानी की होने वाली हानि में कमी का फायदा मिलेगा।

गौरतलब है कि संसद में पूछ गए एक सवाल के जवाब में दिसंबर 2023 में अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि जलवायु में आते बदलावों की वजह से देश में 2050 तक धान की पैदावार में 20 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है जो 2080 तक बढ़कर 47 फीसदी तक पहुंच सकती है।

एक रिसर्च से पता चला है कि अगले 23 वर्षों में दुनिया के 71 फीसदी कृषि क्षेत्र खतरे की जद में होंगें, जिनमें भारत भी शामिल है। वेरिस्क मैपलक्रॉफ्ट द्वारा प्रकाशित इस रिसर्च से पता चला है कि दुनिया में मौजूदा खाद्य उत्पादक क्षेत्रों का करीब तीन चौथाई हिस्सा 2045 तक गर्मी के तनाव के कारण अत्यधिक जोखिम का सामना करने को मजबूर होगा।

हाल ही में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्लू) द्वारा किए शोध से पता चला है कि देश में 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। शोध के मुताबिक देश का करीब 68 फीसदी हिस्सा सूखे की जद में है। इसके चलते हर साल करीब 14 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं।

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