यदि भारत में नाइट्रोजन ऑक्साइड (नॉक्स) के उत्सर्जन को करीब आधा कर दिया जाए तो उससे कृषि उत्पादन में करीब 8 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। यह जानकारी हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जोकि जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक यदि देश में नाइट्रोजन ऑक्साइड से होने वाले प्रदूषण को आधा कम कर दिया जाए तो जहां इससे खरीफ फसलों के उत्पादन में 8 फीसदी की वृद्धि हो जाएगी, वहीं रबी यानी सर्दियों में होने वाली फसलों की पैदावार भी 6 फीसदी बढ़ जाएगी।
देखा जाए तो आमतौर पर कृषि पैदावार में होने वाली वृद्धि को मुख्य रूप से सिंचाई और उर्वरकों से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन इस शोध से पता चला है कि फसलों की पैदावार में वायु प्रदूषण भी अहम भूमिका निभा सकता है। वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन में उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों का उपयोग किया है। इनके विश्लेषण से पता चला है कि नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में की जाने वाली कटौती नाटकीय रूप से फसलों की पैदावार के लिए फायदेमंद हो सकती है।
यह गैस कारों और उद्योंगों से होने वाले उत्सर्जन में होती है अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया है कि इससे होने वाला प्रदूषण फसलों की पैदावार को कैसे प्रभावित करता है। देखा जाए तो इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो दुनिया भर में कृषि उत्पादन में इजाफा करने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मददगार हो सकते हैं।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डेविड लोबेल का कहना है कि नाइट्रोजन ऑक्साइड एक ऐसी गैस हो जा इंसानों के लिए अदृश्य होती है, लेकिन उपग्रहों की मदद से इनको मापा जा सकता है। उनके अनुसार चूंकि हम अंतरिक्ष से फसलों की पैदावार को भी माप सकते हैं ऐसे में हम यह जान सकते हैं कि यह गैसें कृषि को कैसे प्रभावित करती हैं।
अध्ययन के मुताबिक यह हानिकारक गैसें दो तरह से फसलों को प्रभावित करती हैं पहला तो यह गैसें सीधे तौर पर फसलों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है। दूसरा यह ओजोन के गठन में मदद करती हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाने के लिए जाना जाता है। इसके साथ ही इन गैसों का असर पार्टिकुलेट मैटर ऐरोसोल पर भी पड़ता है जो सूर्य की रौशनी को अवशोषित और बिखेर सकते हैं। हालांकि वैज्ञानिक इस गैस और उसके प्रभावों के बारे में लम्बे समय से जानते हैं लेकिन इसके बावजूद यह फसलों को कैसे और कितना प्रभावित करती हैं इस बारे में बहुत सीमित जानकारी ही उपलब्ध है।
सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के अन्य देशों में बढ़ जाएगी पैदावार
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 2018 से 2020 के बीच फसलों की हरियाली और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर को उपग्रह से मापा है। देखा जाए तो नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड का प्राथमिक रूप है। ऐसे में इसकी मदद से एनओएक्स की गणना की जा सकती है।
इस शोध में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार यह गैस न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में फसलों की पैदावार को प्रभावित कर रही है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यदि इसके उत्सर्जन को आधा कर दिया जाए तो उसकी मदद से चीन में रबी फसलों की पैदावार में 25 फीसदी, जबकि खरीफ फसलों की पैदावार में 15 फीसदी की वृद्धि की जा सकती है।
इसी तरह यूरोप में इसकी कटौती से दोनों फसलों के पैदावार में 10 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। वहीं उत्तर और दक्षिण अमेरिका में इन गैसों का प्रभाव सबसे कम था। कुल मिलकर इसका सबसे ज्यादा असर उन स्थानों और मौसम में सबसे ज्यादा पड़ा था जहां नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन के गठन को प्रेरित करती है।
ऐसे में शोधकर्ता जेनिफर बर्नी का कहना है कि एनओएक्स को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे जो कदम उठाए जाएंगें वो जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के साथ-साथ वायु गुणवत्ता के लिए भी फायदेमंद होंगें। इन सबका फायदा इंसानी स्वास्थ्य को भी होगा। इस शोध से पता चला है कि साथ ही इसकी मदद से फसलों की पैदावार में भी वृद्धि होगी, जो बढ़ती आबादी की खाद्य सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने में भी मददगार होगी।