क्या सच में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ सकती है धान की पैदावार

तापमान में हो रही वृद्धि के कारण ठन्डे इलाकों में भी धान की एक से ज्यादा बार फसल प्राप्त की जा सकती है
क्या सच में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ सकती है धान की पैदावार
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चावल दुनिया में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला अनाज है। विश्व की आधी से भी ज्यादा आबादी के लिए यह एक मुख्य भोजन है। विशेष रूप से एशिया में यह बहुत आम है। एशिया जोकि पहले ही भुखमरी की समस्या से त्रस्त है वहां यह अनाज पेट भरने का एक प्रमुख साधन है। आंकड़ों के अनुसार दुनिया का करीब 90 फीसदी धान एशिया में ही पैदा किया जाता है।

धान हर साल पैदा की जाने वाली फसल है जिसका मतलब है कि इसे एक मौसम में लगाया जाता है और फसल प्राप्त की जाती है। यदि इनकी ठीक से देखभाल की जाए तो धान में साल दर साल वृद्धि होती रहती है और इससे एक से ज्यादा बार फसल प्राप्त की जा सकती है। कुछ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इससे एक से ज्यादा बार फसल काटी जाती है।

100 से भी ज्यादा देशों में की जाती है इसकी खेती

दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में इसकी खेती की जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि धान की 110,000 से भी ज्यादा किस्मों की खेती की जाती है जो गुणवत्ता और पोषण के मामले में एक दूसरे से अलग होती हैं।

धान का पौधा घास की तरह होता है जब उसे एक बार काटा जाता है तो वो फिर से दोबारा बढ़ जाता है। धान को काटने और फिर से बढ़ने देने की खेती को रटूनिंग कहा जाता है। इस पद्दति में एक ही खेत में धान की कई फसल प्राप्त की जा सकती है इसलिए पारम्परिक खेती की तुलना में इनके लिए फसल के लम्बे उपजाऊ सीजन की जरुरत पड़ती है।

दुनिया के कई देशों में जहां ट्रॉपिकल क्लाइमेट होता है वहां उपजाऊ मौसम समस्या नहीं है। लेकिन जापान जैसे देशों में जहां मौसम सर्द होता है वहां धान की फसल को बार-बार रोपना पड़ता है। हिरोशी नकानो जोकि राष्ट्रीय कृषि और खाद्य अनुसंधान संगठन से जुड़े हैं उन्होंने जापान में इसपर एक शोध किया है। जिसमें उन्होने रटूनिंग की क्षमता के बारे में अधिक जानने का प्रयास किया है। यह शोध एग्रोनोमी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

क्या कहता है शोध

नकानो के अनुसार तापमान में आ रहे बदलावों का असर जापान पर भी पड़ रहा है, जिस कारण वहां का तापमान औसत से अधिक हो गया है। यह धान के किसानों के लिए लाभदायक हो सकता है। इससे उन्हें धान के लिए अधिक वक्त मिल जाता है, और वो एक से ज्यादा फसल प्राप्त कर सकते हैं। उनके अनुसार इसकी मदद से वो बसंत आने से पहले ही धान की रोपाई कर सकते हैं और बाद में उसकी कटाई कर सकते हैं। उनका बताया कि उनका मकसद जलवायु परिवर्तन का लाभ उठाते हुए कृषि के लिए नई रणनीतियां बनाना है जिससे अधिक से अधिक पैदावार प्राप्त की जा सके।

इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने पहली फसल की दो पैदावार के बीच के समय और कटाई के समय उनकी ऊंचाई की तुलना की है। पहली कटाई के बाद उन्होंने बीज एकत्र किये हैं। जिसमें उन्होंने बीज की गिनती और वजन करके पैदावार को मापा है। इसी तरह दूसरी पैदावार को भी मापा है। जिसमें उन्हें पता चला की दोनों बार पैदावार अलग-अलग थी, क्योंकि फसल का समय और ऊंचाई, उपज को प्रभावित करती है।

अध्ययन से पता चला है कि जब पौधों को ज्यादा ऊंचाई से काटा जाता है तो उनसे ज्यादा पैदावार प्राप्त होती है। उनके अनुसार ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब पौधे ऊंचाई से काटे जाते हैं तो उनके तनो और पत्तियों में अधिक ऊर्जा और पोषक तत्त्व होते हैं जो दूसरी फसल के लिए फायदेमंद होते हैं। इसी तरह जब पहली फसल को सामान्य समय पर काटा जाता है तो उनसे अधिक फसल प्राप्त होती है। उनके अनुसार ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इससे बीजों को बढ़ने के लिए अधिक समय मिल जाता है।

नकानों के अनुसार हमारे शोध के नतीजे दिखाते हैं कि पौधों को सामान्य समय और अधिक ऊंचाई से काटा जाना चाहिए। जिससे धान की अधिक पैदावार प्राप्त की जा सके। उनके अनुसार यह तकनीक ने केवल दक्षिण-पश्चिम जापान के लिए फायदेमंद है बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में जहां इस तरह का मौसम है वहां भी इसकी मदद से एक से अधिक फसलें और अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण उन जगहों पर भी इस तकनीक की मदद से अधिक पैदावार मिल सकती है जहां यह पहले नहीं की जाती थी।

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