

बाढ़ से धान की फसल को नुकसान: 1980 से 2015 के बीच बाढ़ के कारण हर साल औसतन 4.3 फीसदी या 1.8 करोड़ टन चावल नष्ट हुआ।
सूखे का प्रभाव: इसी दौरान सूखे के कारण धान की पैदावार को औसतन 8.1 फीसदी कम हुई।
फसल नष्ट करने वाली बाढ़: यदि फसल सात दिन तक पूरी तरह जलमग्न रहती है, तो अधिकांश पौधे मर जाते हैं।
भविष्य का खतरा: प्रमुख धान-उगाने वाले क्षेत्रों में सबसे तीव्र साप्ताहिक बारिश 13 फीसदी तक बढ़ सकती है, जिससे बाढ़ और सामान्य हो सकती हैं।
समाधान: बाढ़-प्रतिरोधी धान की किस्में और बेहतर जल प्रबंधन अपनाकर भविष्य में नुकसान कम किया जा सकता है।
चावल दुनिया के सबसे अहम खाद्य अनाजों में से एक है। यह न केवल एशिया के कई देशों में लोगों की मुख्य आहार का हिस्सा है, बल्कि विश्व की बड़ी आबादी के लिए जीवनदायिनी भी है। हाल के दशकों में, अत्यधिक बाढ़ ने धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है और इसके कारण विश्व के लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा खतरे में है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन में यह पता चला कि 1980 से 2015 के बीच, बाढ़ के कारण हर साल औसतन लगभग 4.3 फीसदी धान की फसल नष्ट हुई, जो लगभग 1.8 करोड़ टन चावल के बराबर है।
शोध में यह भी पाया गया कि साल 2000 के बाद से यह नुकसान और बढ़ गया है, क्योंकि विश्व के प्रमुख धान उगाने वाले क्षेत्रों में अत्यधिक बाढ़ की घटनाएं अधिक सामान्य हो गई हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते आने वाले दशकों में यह प्रवृत्ति और गंभीर हो सकती है।
सूखे और बाढ़ का धान पर असर
वैज्ञानिकों और किसानों को लंबे समय से पता है कि सूखे के दौरान धान की पैदावार घट जाती है। इस अध्ययन ने इसे और स्पष्ट किया है और दिखाया है कि 1980 से 2015 के बीच, सूखे ने औसतन हर साल 8.1 फीसदी धान की फसल को प्रभावित किया। वहीं, बाढ़ का खतरा भी कम नहीं है।
धान की फसल को शुरुआती विकास चरण में सतही पानी की जरूरत पड़ती है, लेकिन यदि पानी लंबे समय तक गहरा या स्थायी रूप से जमा रहे, तो यह फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है या पूरी तरह नष्ट कर सकता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि वैज्ञानिक लंबे समय से सूखे के प्रभावों पर गौर फरमाते रहे हैं, लेकिन बाढ़ के कारण होने वाले नुकसान पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। यह अध्ययन न केवल उन क्षेत्रों को दर्शाता है जहां धान की पैदावार बाढ़ से प्रभावित हुई है, बल्कि यह भविष्य में इस खतरे से निपटने की तैयारी के लिए भी मार्गदर्शन करता है।
'धान नष्ट करने वाली बाढ़' क्या होती है
साइंस एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पहली बार स्पष्ट रूप से यह बताया गया कि कौन सी बाढ़ धान के लिए जानलेवा होती है। शोध में कहा गया है कि जब धान की फसल पूरी तरह से कम से कम सात दिन के लिए जलमग्न रहती है, तो अधिकांश पौधे मर जाते हैं। इस तरह की बाढ़ को पहचान कर, वैज्ञानिक अब यह आकलन कर सकते हैं कि पिछले वर्षों में कितनी फसल इसी कारण नष्ट हुई।
कैसे किया गया अध्ययन?
शोधकर्ताओं ने धान की पैदावार पर बाढ़ और सूखे के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए कई स्रोतों का उपयोग किया। उन्होंने चावल की विकास अवस्था, वार्षिक वैश्विक पैदावार, 1950 से अब तक की सूखा और बाढ़ के डेटाबेस, भूमि पर बाढ़ के व्यवहार का मॉडल और प्रमुख नदी क्षेत्रों में मिट्टी की नमी का सिमुलेशन किया।
इन सभी आंकड़ों को मिलाकर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि आने वाले दशकों में प्रमुख धान-उगाने वाले क्षेत्रों में सबसे तीव्र साप्ताहिक वर्षा पिछले 1980 से 2015 के औसत की तुलना में 13 फीसदी अधिक हो सकती है। इसका अर्थ है कि भविष्य में धान की फसल को नष्ट करने वाली बाढ़ अधिक सामान्य हो सकती हैं।
बाढ़-प्रतिरोधी धान और जोखिम क्षेत्र
भविष्य में नुकसान कम करने के लिए बाढ़-प्रतिरोधी धान की किस्मों का अधिक उपयोग मददगार हो सकता है। अध्ययन में सबसे अधिक खतरे वाले क्षेत्रों में भारत का साबरमती बेसिन, उत्तर कोरिया, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस और नेपाल शामिल हैं। इनमें से कुछ जगहों पर बाढ़ का असर पिछले दशकों में तेजी से बढ़ा है। कुल नुकसान सबसे अधिक उत्तर कोरिया, पूर्वी चीन और भारत के पश्चिम बंगाल में हुआ है।
कुछ क्षेत्रों में, जैसे भारत का पेनार बेसिन, बाढ़ कभी-कभी फसल के लिए लाभकारी भी साबित होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्म और शुष्क परिस्थितियों में पानी जल्दी वाष्पित हो जाता है, जिससे लंबे समय में नुकसान नहीं होता और कभी-कभी फसल को जरूरी नमी भी मिल जाती है।
जटिल जलवायु प्रभाव और चुनौती
अध्ययन इस बात को सामने लाता है कि धान केवल सूखा या बाढ़ से ही प्रभावित नहीं होता, बल्कि अत्यधिक गर्मी, ठंड और इन घटनाओं के होने से भी उसकी पैदावार पर गंभीर असर पड़ता है। पिछले शोध से पता चला है कि सूखे और बाढ़ के बीच तेजी से बदलाव होने पर धान की पैदावार का नुकसान लगभग दोगुना हो सकता है।
इसलिए वैज्ञानिकों और किसानों के लिए यह समझना आवश्यक है कि धान पर बाढ़, सूखा, गर्मी और ठंड जैसे तनाव कारक घटनाओं का प्रभाव कैसे होता है और इसे कम करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं।
यह अध्ययन दिखाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण धान की फसल को बाढ़ का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। सूखे और बाढ़ दोनों ही खतरे हैं और इनके मिले-जुले प्रभाव से खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। भविष्य में सुरक्षित और पर्याप्त धान उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए बाढ़-प्रतिरोधी किस्मों का विकास, बेहतर जल प्रबंधन और जलवायु अनुकूल खेती के उपाय आवश्यक हैं।
विश्व के लिए यह चुनौती स्पष्ट है कि धान की फसल को बचाने के लिए समय रहते तैयारी करना ही सुरक्षित भविष्य की कुंजी है।