जलवायु परिवर्तन से बदल सकता है अल नीनो का स्वरूप: नई शोध का बड़ा खुलासा

धरती के बढ़ते तापमान से अल नीनो प्रणाली में बड़ा बदलाव, मौसम के पैटर्न होंगे अधिक नियमित लेकिन चरम प्रभावशाली।
अत्यधिक मौसमीय प्रभाव: बारिश और सूखे के चरम उतार-चढ़ाव और अधिक तीव्र होंगे, कृषि और जल संसाधन प्रभावित होंगे।
अत्यधिक मौसमीय प्रभाव: बारिश और सूखे के चरम उतार-चढ़ाव और अधिक तीव्र होंगे, कृषि और जल संसाधन प्रभावित होंगे।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • अल नीनो की अनियमितता में बदलाव: आने वाले 30 से 40 वर्षों में अल नीनो-ला नीना चक्र अधिक नियमित और शक्तिशाली हो सकता है।

  • समुद्र और वायु का बढ़ता तालमेल: गर्म महासागर और वायुमंडल की परस्पर क्रिया से ईएनएसओ के दोलन की तीव्रता बढ़ेगी।

  • वैश्विक जलवायु प्रणालियों का समन्वय: ईएनएसओ अन्य बड़े जलवायु चक्रों (एनएओ, आईओडी, टीएनए) के साथ तालमेल बिठा सकता है।

  • अत्यधिक मौसमीय प्रभाव: बारिश और सूखे के चरम उतार-चढ़ाव और अधिक तीव्र होंगे, कृषि और जल संसाधन प्रभावित होंगे।

  • पूर्वानुमान में सुधार लेकिन उच्च जोखिम: नियमित ईएनएसओ से मौसम पूर्वानुमान आसान होगा, लेकिन इसके बढ़ते प्रभावों के लिए तैयारी जरूरी।

दुनिया के मौसम और जलवायु पर सबसे अधिक असर डालने वाली प्राकृतिक प्रणालियों में से एक है अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ईएनएसओ)। यह प्रणाली प्रशांत महासागर के तापमान और हवा के प्रवाह में होने वाले उतार-चढ़ाव से जुड़ी है और इसका असर भारत के मानसून से लेकर अमेरिका की बारिश तक देखा जाता है। लेकिन एक नई अंतर्राष्ट्रीय शोध से पता चला है कि जैसे-जैसे धरती गर्म होती जा रही है, यह प्रणाली आने वाले दशकों में एक बड़े बदलाव से गुजर सकती है।

क्या कहता है अध्ययन?

दक्षिण कोरिया, अमेरिका, जर्मनी और आयरलैंड के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन को प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं ने उन्नत जलवायु मॉडल का उपयोग करते हुए पाया कि आने वाले 30 से 40 सालों में अल नीनो और ला नीना का मौजूदा अनियमित चक्र एक नियमित और अधिक शक्तिशाली चक्र में बदल सकता है।

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अभी तक अल नीनो हर दो से सात साल में कभी-कभी होता है और उसकी तीव्रता भी अलग-अलग होती है। लेकिन शोध के अनुसार भविष्य में यह प्रणाली लगभग एक "घड़ी की तरह" नियमित और तीव्र हो सकती है, यानी समुद्र की सतह के तापमान में बड़े बदलाव और उससे जुड़े मौसमीय प्रभाव अधिक पूर्वानुमान योग्य, लेकिन साथ ही अधिक खतरनाक भी हो जाएंगे।

कैसे होगा यह बदलाव

इस बदलाव के पीछे मुख्य कारण है धरती के बढ़ते तापमान के कारण महासागर और वायुमंडल के बीच बढ़ती परस्पर क्रिया है। जब समुद्र गर्म होता है, तो वह अधिक ऊर्जा वातावरण को देता है, जिससे प्रशांत क्षेत्र में हवाओं और तापमान के बीच एक तरह की “तालमेल” बनने लगती है।

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यह तालमेल धीरे-धीरे इतनी मजबूत हो सकती है कि अल नीनो–ला नीना चक्र खुद से “चलने” लगे, यानी यह एक प्रकार का जलवायु दोलन बन जाए जो अपनी निश्चित लय में चलता रहे।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि एक गर्म दुनिया में उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर एक तरह के जलवायु टिप्पिंग पॉइंट से गुजर सकता है, जहां यह अस्थिर होकर अपने आप में एक नियमित दोलन में बदल जाता है।

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वैश्विक जलवायु प्रणालियों का समन्वय

शोध में यह भी पाया गया कि भविष्य में अल नीनो केवल अपने क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह अन्य प्रमुख जलवायु प्रणालियों के साथ जुड़ सकता है। इनमें शामिल हैं –

  • नॉर्थ अटलांटिक ऑसिलेशन

  • इंडियन ओशन डाइपोल

  • ट्रॉपिकल नॉर्थ अटलांटिक

इसका अर्थ है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों की जलवायु प्रणालियां एक ही “ताल” में चलने लगेंगी, जैसे कई पेंडुलम एक साथ झूलने लगें। इसके कारण कुछ क्षेत्रों में बारिश और सूखे के पैटर्न और भी तीव्र हो सकते हैं।

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संभावित प्रभाव: बारिश, सूखा और जलवायु बदलाव

यदि अल नीनो अधिक नियमित और शक्तिशाली हो गया, तो इससे बारिश और सूखे के चरम उतार-चढ़ाव और अधिक बढ़ जाएंगे।

शोध के अनुसार, दक्षिणी कैलिफोर्निया, आइबेरियन प्रायद्वीप (स्पेन- पुर्तगाल) जैसे क्षेत्रों में बारिश में बदलाव संबंधी प्रभाव देखने को मिलेगा, यानी एक साल भारी बारिश और अगला साल गहरा सूखा।

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इस तरह के अचानक बदलाव कृषि, जल संसाधन और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर चुनौती साबित हो सकते हैं। भारत जैसे देश, जहां मानसून अल नीनो से गहराई से जुड़ा है, वहां भी इसका अप्रत्यक्ष असर पड़ सकता है।

हालांकि वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि अल नीनो का अधिक नियमित होना मौसमी पूर्वानुमान के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि इससे मौसम की भविष्यवाणी अधिक सटीक हो सकेगी। लेकिन इसके साथ-साथ समाज को अधिक चरम मौसमी घटनाओं के लिए तैयार रहना पड़ेगा।

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उन्नत जलवायु मॉडलिंग की भूमिका

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अल्फ्रेड वेगेनर संस्थान जलवायु मॉडल (ए डब्ल्यूआई-सीएम 3) नामक अत्याधुनिक जलवायु मॉडल का उपयोग किया। यह मॉडल वायुमंडल में 31 किलोमीटर और महासागर में चार से 25 किलोमीटर के संकल्प पर काम करता है, जो जलवायु प्रणालियों की बेहद सूक्ष्म समझ प्रदान करता है।

उन्होंने उच्च उत्सर्जन वाले ग्रीनहाउस गैस परिदृश्य के तहत मॉडल चलाया और वास्तविक अवलोकनों से तुलना की। परिणामों से स्पष्ट हुआ कि कुछ अन्य मॉडल भी इसी प्रकार के बदलाव का संकेत दे रहे हैं।

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भविष्य की दिशा और तैयारी की जरूरत

इस शोध का सबसे बड़ा संदेश यह है कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन केवल तापमान बढ़ा नहीं रहा, बल्कि वह पृथ्वी की जलवायु की “लय” को ही बदल सकता है। यदि अल नीनो अधिक शक्तिशाली और नियमित हो गया, तो दुनिया के मौसम पैटर्न भी उसकी लय में बदल जाएंगे। इससे कृषि उत्पादन, जल प्रबंधन, और आपदा तैयारी पर गहरा असर पड़ेगा।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह बदलाव जलवायु पूर्वानुमान को बेहतर बना सकता है, लेकिन इसके साथ आने वाले जोखिमों से निपटने के लिए हमें वैश्विक स्तर पर बेहतर योजना और अनुकूलन रणनीतियां विकसित करनी होंगी।

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शोधकर्ता अब और भी उच्च संकल्प (नौ और चार किलोमीटर) वाले मॉडल का उपयोग कर यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि यह “वैश्विक तालमेल” किस प्रकार बनता है और क्या अन्य महासागरीय प्रणालियां भी इसी प्रकार का व्यवहार दिखा सकती हैं।

यह अध्ययन इस बात की चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन केवल तापमान बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धरती की पूरी जलवायु प्रणाली को नई लय में ढाल सकता है। यदि अल नीनो जैसी प्रणाली “संगीत की ताल” की तरह नियमित हो जाए, तो इसका असर हर महाद्वीप पर महसूस किया जाएगा, चाहे वह बारिश हो, सूखा हो, या कृषि उत्पादन

इसलिए वैज्ञानिकों के अनुसार, आने वाले दशकों में जलवायु पूर्वानुमान, जल संसाधन प्रबंधन और वैश्विक सहयोग को और अधिक सशक्त बनाना जरूरी होगा, ताकि हम इस बदलती जलवायु की नई लय के साथ खुद को समय पर तैयार कर सकें।

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