सिर्फ गर्मियों के प्रयोग नहीं बता पाते जलवायु परिवर्तन की पूरी सच्चाई

शोध दुनिया के सभी महाद्वीपों से हासिल किए गए आंकड़ों को एक साथ जोड़ता है, जो यह समझने में मदद कर सकता है कि भविष्य में बढ़ती गर्मी के दौरान पौधों की कौन सी प्रजातियां पनपेंगी या संघर्ष करेंगी।
कुछ पौधों ने अक्सर बढ़ते तापमान के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दिखाई हैं, जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि जलवायु स्थितियों में निरंतर बदलाव के कारण दुनिया भर में इनमें कमी आ सकती है।
कुछ पौधों ने अक्सर बढ़ते तापमान के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दिखाई हैं, जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि जलवायु स्थितियों में निरंतर बदलाव के कारण दुनिया भर में इनमें कमी आ सकती है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी (एमएसयू) के वैज्ञानिकों ने दुनिया के 126 जगहों पर किए गए तापमान बढ़ने से जुड़े प्रयोगों का अध्ययन किया। इससे पता चला कि जब वैज्ञानिक सिर्फ गर्मियों में गर्मी का असर देखते हैं, तो नतीजे पूरे साल के असर को सही से नहीं दिखाते। यानी, सिर्फ गर्मी के मौसम में किए गए प्रयोगों से पता नहीं चलता कि सर्दी के समय की गर्मी पौधों पर कैसे असर डालती है।

इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि वैज्ञानिकों ने ऐसे पौधों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जो उस इलाके के मूल पौधे नहीं हैं। इससे यह समझने में मुश्किल हो जाती है कि ये पौधे जलवायु परिवर्तन के असर को कैसे झेलते हैं।

इसलिए वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में जो भी प्रयोग किए जाएं, वे लंबे समय तक चलने चाहिए – पूरे साल या कई सालों तक – ताकि सही जानकारी मिल सके।

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कुछ पौधों ने अक्सर बढ़ते तापमान के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दिखाई हैं, जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि जलवायु स्थितियों में निरंतर बदलाव के कारण दुनिया भर में इनमें कमी आ सकती है।

अध्ययन में पौधों की विदेशी प्रजातियों पर बढ़ते तापमान के प्रभावों पर शोध की कमी का भी खुलासा हुआ, जो वैज्ञानिकों को यह समझने की क्षमता में रुकावट डालता है कि ये प्रजातियां जलवायु परिवर्तन पर कैसे प्रतिक्रिया करती हैं। शोधकर्ताओं ने वर्तमान अध्ययनों में जानकारी की कमी का पता लगाया। शोध में सुझाव दिया गया कि भविष्य में बढ़ते तापमान के प्रयोगों को कई मौसमों और पौधों पर इसके पड़ने वाले असर की जानकरी हासिल करने के लिए लंबे समय तक चलाया जाना चाहिए।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि कई पारिस्थितिक तंत्रों में पौधों पर बढ़ते तापमान के प्रभावों के इस अहम वैश्विक विश्लेषण का उपयोग भविष्य के प्रभावों के मॉडल को अपडेट करने के लिए किया जा सकता है। शोध में कहा गया है कि पौधों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में जानकारी की कमी को पूरा करने के लिए और अधिक प्रयोग करने की जरूरत है।

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कुछ पौधों ने अक्सर बढ़ते तापमान के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दिखाई हैं, जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि जलवायु स्थितियों में निरंतर बदलाव के कारण दुनिया भर में इनमें कमी आ सकती है।

दुनिया भर में हो रहे बदलावों को समझना

शोधकर्ता पूरी दुनिया में लटर नेटवर्क जैसे साझे प्रयासों के माध्यम से मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि यह बेहतर ढंग से समझा जा सके कि पौधे अलग-अलग वातावरणों में दुनिया भर में हो रहे बदलावों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते हैं।

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने उन अध्ययनों का विश्लेषण किया, जिनमें तापमान वृद्धि के कारण पौधों के लक्षणों और गुणों में बदलाव की जांच करने के लिए ओपन-टॉप चैंबर या ऊपर से खुले कमरे का उपयोग किया गया था। उन्होंने यह भी पता लगाया कि जगह, प्रयोगात्मक विधियों और पौधों की पहचान के आधार पर बदलावों की गंभीरता कैसे अलग-अलग होती है।

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विश्लेषण के दायरे ने शोधकर्ताओं को पौधों की प्रतिक्रियाओं में वैश्विक रुझानों की पहचान करने और यह अनुमान लगाने में मदद दी कि भविष्य में तापमान में वृद्धि जारी रहने पर क्या हो सकता है।

शोध में कहा गया कि परिणाम चौंकाने वाले थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि भीषण गर्मी के मौसम के दौरान और सर्द-सर्दियों वाले समशीतोष्ण क्षेत्रों में पौधे तापमान में कम अंतर वाले अधिक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाए जाने वाले पौधों की तुलना में बढ़ते तापमान के प्रति अधिक स्पष्ट प्रतिक्रियाएं दिखाते हैं।

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पिछले अध्ययनों से भी पता चलता है कि विदेशी पौधे भविष्य की जलवायु स्थितियों से लाभान्वित हो सकते हैं, जिससे संभावित रूप से उनके फैलने या आक्रामक होने के आसार बढ़ जाते हैं। इस बीच, कुछ पौधों ने अक्सर बढ़ते तापमान के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दिखाई हैं, जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि जलवायु स्थितियों में निरंतर बदलाव के कारण दुनिया भर में इनमें कमी आ सकती है।

जलवायु संबंधी शोधों में पौधों की विभिन्न प्रजातियों को शामिल करने के साथ-साथ विभिन्न वातावरणों में तथा लंबी अवधि में इन प्रयोगों को एक साथ जोड़ने से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि गर्म भविष्य में कौन सी प्रजातियां पनपेंगी या इसके लिए संघर्ष करेंगी।

शोध में कहा गया है कि यह अध्ययन एकत्र किए गए डेटासेट के आकार के संदर्भ में अनोखा है। यह दुनिया भर के प्रयोगों और अंटार्कटिका सहित सभी महाद्वीपों से हासिल किए गए आंकड़ों को एक साथ जोड़ता है।

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