
सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक 10 करोड़ लोग विस्थापित हो सकते हैं।
यह रिपोर्ट अफ्रीका के पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डालने वाले मुद्दों जैसे जलवायु अनुकूलन, कार्बन बाजार और खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित है।
2021 से 2025 के बीच मौसम और जलवायु से जुड़ी आपदाओं ने वहां करीब 22.2 करोड़ लोगों के जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है।
यह पांच साल मौसम, जलवायु और पानी से जुड़ी आपदाओं की वजह से इंसानी जानमाल हुए नुकसान के लिहाज से सबसे विनाशकारी साबित हुए हैं।
आपदाओं के कारण हर साल विस्थापित होने वालों की संख्या 2009 में 11 लाख से बढ़कर 2023 में 63 लाख पर पहुंच गई।
अगर वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करता है तो अफ्रीका की आधी आबादी कुपोषण से जूझने को मजबूर हो सकती है।
आंकड़ों के मुताबिक जहां 2023 में हैजे के मामले पिछले साल की तुलना में 125 फीसदी बढ़े। वहीं इसी साल मलेरिया संक्रमण में भी 14 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया।
अफ्रीका वैश्विक औसत से कहीं तेजी से गर्म हो रहा है। यह गंभीर चेतावनी दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ ने अपन ताजा रिपोर्ट “स्टेट ऑफ अफ्रीकाज एनवायरनमेंट 2025” में दी है।
रिपोर्ट के मुताबिक 2024 अफ्रीका का अब तक का सबसे गर्म साल रहा। ऐसा नहीं है कि गर्मी सिर्फ जमीनी हिस्सों को प्रभावित कर रही है। महाद्वीप के चारों ओर मौजूद महासागर भी समुद्री लू और गर्मी से तप रहे है। इसका सीधा असर वहां रहने वाले लोगों पर पड़ रहा है।
रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि 2021 से 2025 के बीच मौसम और जलवायु से जुड़ी आपदाओं ने वहां करीब 22.2 करोड़ लोगों के जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है। यह पांच साल मौसम, जलवायु और पानी से जुड़ी आपदाओं की वजह से इंसानी जानमाल हुए नुकसान के लिहाज से सबसे विनाशकारी साबित हुए हैं।
गौरतलब है कि यह रिपोर्ट 18 सितम्बर 2025 को इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में जारी की गई है। यह रिपोर्ट अफ्रीकी पत्रकारों की जमीनी पड़ताल पर आधारित है। इसमें जलवायु अनुकूलन, कार्बन बाजार, जलवायु ऋण, पलायन, खाद्य सुरक्षा, पानी और स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दों को संबोधित किया गया है। साथ ही इसमें गहराई से शोध किए गए आंकड़े पेश किए गए हैं।
सबसे चिंताजनक तस्वीर विस्थापन और पलायन की है। रिपोर्ट बताती है कि 2050 तक जलवायु परिवर्तन के कारण अफ्रीका की करीब 5 फीसदी आबादी (यानी करीब 10 करोड़ लोग) अपना घर छोड़ने को मजबूर हो सकती है। यह दुनिया में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला सबसे बड़ा विस्थापन है।
आंकड़ों ने उजागर किया है कि आपदाओं के कारण हर साल विस्थापित होने वालों की संख्या 2009 में 11 लाख से बढ़कर 2023 में 63 लाख पर पहुंच गई। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से जलवायु से जुड़ी घटनाओं जैसे बाढ़ और सूखे के कारण हुई।
कृषि, भोजन और स्वास्थ्य पर संकट
इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन और भूमि क्षरण ने खेती-किसानी पर गहरा असर डाला है। अनुमान है कि इसकी वजह से कृषि पैदावार में 18 फीसदी की गिरावट आई है। रिपोर्ट बताती है कि पश्चिम और मध्य अफ्रीका का कोको उत्पादन, जो दुनिया की 70 फीसदी जरूरत पूरी करता है, इससे बुरी तरह प्रभावित होगा।
चिंता की बात यह है कि अगर वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करता है तो अफ्रीका की आधी आबादी कुपोषण से जूझने को मजबूर हो सकती है।
जलवायु परिवर्तन पर बने अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) का भी अनुमान है कि सहारा के दक्षिणी हिस्सों में 2050 तक मक्के की पैदावार 22 फीसदी तक घट सकती है। वहीं जिम्बाब्वे और दक्षिण अफ्रीका में यह गिरावट 30 फीसदी से भी ज्यादा होने का अंदेशा है। आशंका है कि इस अवधि में गेहूं उत्पादन 35 फीसदी तक घट सकता है।
यूनेस्को से जुड़ी डॉक्टर रीटा बिस्सूनौथ का रिपोर्ट के बारे में कहना है, “सीएसई की यह रिपोर्ट केवल वैज्ञानिक आकलन नहीं, बल्कि एक नैतिक चेतावनी है। यह ऐसे समय में आई है जब अफ्रीका उस जलवायु संकट की पहली पंक्ति में खड़ा है, जिसे उसने पैदा नहीं किया, लेकिन जिसकी सबसे ज्यादा मार वही झेल रहा है।उत्तरी अफ्रीका में हर साल औसतन 1.18 अरब डॉलर और उप-सहारा अफ्रीका में 1.25 अरब डॉलर का सीधा आर्थिक नुकसान हो रहा है। संदेश साफ है विकास की यह राह शाश्वत नहीं है।”
स्वास्थ्य के मोर्चे पर तस्वीर बेहद भयावह
स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी तस्वीर भयावह है। रिपोर्ट के मुताबिक अब हैजा का सबसे बड़ा बोझ अफ्रीका पर आ गया है। आंकड़ों के मुताबिक जहां 2023 में हैजे के मामले पिछले साल की तुलना में 125 फीसदी बढ़े। वहीं इसी साल मलेरिया संक्रमण में भी 14 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया।
रिपोर्ट जारी करते हुए इथियोपिया के बायो एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के महानिदेशक प्रोफेसर कसाहुन टेस्फाये ने कहा “रिपोर्ट के आंकड़े भले ही चिंताजनक हों, लेकिन वे आगे का रास्ता भी दिखाते हैं। यह साफ है कि हमारे प्राकृतिक संसाधन और जमीन ही हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं, जिनके सहारे हम शाश्वत बायोइकोनॉमी खड़ी कर सकते हैं। समाधान केवल उस संकट को कम करने में नहीं है जिसे हमने पैदा ही नहीं किया, बल्कि एक बिल्कुल नए विकास मॉडल को अपनाने में है और वह मॉडल है अफ्रीकी बायोइकोनॉमी।”
‘बायोइकोनॉमी’ को समझाते हुए प्रोफेसर कसाहुन ने कहा “यह ऐसी अर्थव्यवस्था है जो नवीकरणीय जैविक संसाधनों से भोजन, सामग्री और ऊर्जा तैयार करती है। इसमें अपशिष्ट अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत होता है।”
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने इस मौके पर कहा “अफ्रीका में बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। यहां हर देश अब अपने स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नीतियां बना रहा है, चाहे वह नेट-जीरो की रणनीति हो या स्थानीय ज्ञान से सूखे और चरम मौसम से जूझने की कोशिश। आज हर अफ्रीकी देश के पास दिखाने के लिए अपने अनुकूलन कार्यक्रम हैं।”