जलवायु संकट से विस्थापन का सबसे अधिक दंश झेलेगा अफ्रीका, सीएसई रिपोर्ट का बड़ा खुलासा

आशंका है कि 2050 तक जलवायु संकट के कारण अफ्रीका की करीब 200 करोड़ की आबादी में से पांच फीसदी लोग अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो सकते हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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  • अफ्रीका में जलवायु संकट के कारण विस्थापन की दर तेजी से बढ़ रही है।

  • सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक अफ्रीका सबसे अधिक जलवायु विस्थापन झेलने वाला महाद्वीप बन सकता है।

  • बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं के कारण विस्थापन की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे कृषि और खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

  • प्राकृतिक आपदाओं से विस्थापित लोगों की संख्या 2009 से 2023 के बीच छह गुणा तक बढ़ गई है

  • आपदाओं के कारण हर साल विस्थापित होने वालों की संख्या 2009 में 11 लाख से बढ़कर 2023 में 63 लाख पर पहुंच गई। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से जलवायु से जुड़ी घटनाओं जैसे बाढ़ और सूखे के कारण हुई है

  • आशंका है कि 2050 तक अफ्रीका की कुल आबादी का करीब पांच फीसदी हिस्सा जलवायु आपदाओं के कारण विस्थापित हो सकता है।

अफ्रीका, जोकि अपनी आबादी के हिसाब से दुनिया का सबसे युवा महाद्वीप है, अब जलवायु संकट से भी सबसे ज्यादा प्रभावित है। नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ अफ्रीका एनवायरमेंट 2025' में यह भी खुलासा किया है कि अफ्रीका सबसे अधिक जलवायु विस्थापन झेलने वाला महाद्वीप बनने की कगार पर है।

रिपोर्ट को आज यानी 18 सितंबर 2025 को इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में जारी किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले वर्षों में जलवायु आपदाओं के कारण अफ्रीका में विस्थापन और पलायन की दर दुनिया में सबसे अधिक होगी।

रिपोर्ट में अंतराष्ट्रीय संगठन इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) के आंकड़ों के हवाले से जानकारी दी है कि 2009 से 2023 के बीच महाद्वीप में आंतरिक विस्थापन तीन गुना बढ़ गया है। बता दें कि आईडीएमसी दुनिया भर में आंतरिक विस्थापन पर नजर रखती है।

रिपोर्ट के मुताबिक, इसके पीछे संघर्ष और हिंसा के बढ़ने के साथ-साथ जलवायु से जुड़ी चरम आपदाओं में हो रहा इजाफा भी जिम्मेवार है।

सबसे बड़ी वजह जलवायु आपदाएं

रिपोर्ट बताती है कि इस दौरान संघर्ष और हिंसा के कारण विस्थापन तो बढ़ा ही, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं से विस्थापित लोगों की संख्या 2009 से 2023 के बीच छह गुणा तक बढ़ गई है। आंकड़ों के मुताबिक संघर्ष और हिंसा से विस्थापित लोगों की संख्या 2009 में 1.02 करोड़ से बढ़कर 2023 में 3.25 करोड़ पर पहुंच गई।

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वहीं, आपदाओं के कारण हर साल विस्थापित होने वालों की संख्या 2009 में 11 लाख से बढ़कर 2023 में 63 लाख पर पहुंच गई। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से जलवायु से जुड़ी घटनाओं जैसे बाढ़ और सूखे के कारण हुई है, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि महाद्वीप पर पर्यावरणीय आपदाओं का असर लगातार बढ़ रहा है। इनमें से 75 फीसदी से ज्यादा विस्थापन बाढ़ के कारण हुआ, जबकि 11 फीसदी के लिए सूखा जिम्मेवार था।

पूर्वी अफ्रीका में आपदाओं की वजह से हुए विस्थापन के 69 फीसदी के लिए बाढ़ जिम्मेवार थी, जो मुख्य रूप से मार्च से मई के बीच और अक्टूबर से दिसंबर के बीच मौसम में देखी गई।

वहीं पश्चिमी अफ्रीका में आपदाओं की वजह से हुए 99 फीसदी विस्थापन के लिए बाढ़ जिम्मेवार रही, जो ज्यादातर जून से सितंबर के बीच दर्ज की गई।

सीएसई रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पिछले 15 वर्षों में, चक्रवात इदाई और फ्रेडी सबसे बड़े आपदा-संबंधी विस्थापन का कारण रहे। आंकड़ों के मुताबिक नाइजीरिया में सबसे ज्यादा 87 लाख लोग विस्थापित हुए, जिनमें से करीब तीन-चौथाई 2012 और 2022 में आई दो बड़ी बाढ़ों से प्रभावित हुए। बाढ़ की यह घटनाएं देश में बाढ़-संबंधी विस्थापन के 70 फीसदी से अधिक के लिए जिम्मेवार रही।

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भविष्य में और भयावह हो सकती है तस्वीर

इसी तरह हॉर्न ऑफ अफ्रीका में बार-बार पड़ने वाले सूखे और बाढ़ ने विस्थापन की समस्या को व्यापक रूप से बढ़ा दिया। इससे न केवल कृषि पर असर पड़ा साथ ही खाद्य सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा पैदा हो गया। पिछले 15 वर्षों में यहां 2011, 2017 और 2022 में सूखे की तीन बड़ी घटनाएं हुई, जिन्होंने कृषि उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया और खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया।

इंस्टिट्यूट फॉर सिक्योरिटी स्टडीज के एक अन्य अनुमान के अनुसार, 2009 से 2023 के बीच अफ्रीका में चरम मौसमी घटनाओं के कारण विस्थापितों की संख्या 600 फीसदी बढ़ गई। इन आपदाओं में अधिकांश बाढ़ और तूफान थे, इसके बाद सूखे, जंगल की आग, भू-स्खलन, कटाव और भीषण तापमान ने कहर ढाया है।

आशंका है कि आने वाले दशकों में अफ्रीका में जलवायु-संबंधी विस्थापन चरम पर होगा। अफ्रीका क्लाइमेट मोबिलिटी इनिशिएटिव, जो अफ्रीकन यूनियन कमीशन, विश्व बैंक, यूएन विकास कार्यक्रम, अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन और यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज का संयुक्त प्रयास है, उसने जलवायु आपदाओं के कारण होने वाले विस्थापन का अध्ययन किया है।

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'द अफ्रीका क्लाइमेट मोबिलिटी रिपोर्ट' के मुताबिक 2050 तक अफ्रीका की कुल आबादी का करीब पांच फीसदी हिस्सा जलवायु आपदाओं के कारण विस्थापित हो सकता है, जो आज की 1.5 फीसदी की दर से बहुत अधिक है। आशंका है कि इसका बड़ा हिस्सा अपने ही देश में विस्थापित बन जाएगा।

अफ्रीका क्लाइमेट मोबिलिटी इनिशिएटिव के मूल्यांकन के अनुसार, महाद्वीप के कुछ देशों में जलवायु-संबंधी विस्थापन अन्य देशों की तुलना में अधिक होगा। रिपोर्ट से पता चला है कि 2050 तक पूर्वी अफ्रीकी देशों में विस्थापितों का यह आंकड़ा आबादी के 10.5 फीसदी तक पहुंच सकता है।

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