भारत स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि अफ्रीका में पानी को लेकर हो रहे संघर्ष में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है। आंकड़ों के मुताबिक 2022 में जहां पानी को लेकर हुए संघर्ष की 53 घटनाएं सामने आई थी, जो 2023 में बढ़कर 71 पर पहुंच गई।
'2024 स्टेट ऑफ अफ्रीका एनवायरमेंट रिपोर्ट' के मुताबिक, 2019 के बाद से अफ्रीका में पानी को लेकर हुए संघर्ष के कभी इतने मामले सामने नहीं आए।
गौरतलब है कि यह रिपोर्ट भारत स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ द्वारा तैयार की गई है, जो अफ्रीका के जल संसाधन पर केंद्रित है। इस रिपोर्ट को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और मीडिया फॉर एनवायरमेंट, साइंस, हेल्थ एंड एग्रीकल्चर ने संयुक्त रूप से नैरोबी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान जारी किया है। बता दें कि इस कड़ी की पहली रिपोर्ट 2023 में जारी की गई थी।
रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया गया है, इसमें एक तरफ जहां जल सुरक्षा, शहरों में गहराता जल संकट, पानी के लिए लोगों द्वारा किया जा रहा पलायन, बढ़ता संघर्ष, बीमारियां जैसी समस्याओं को उजागर किया है। साथ ही कैसे जलवायु में आता बदलाव इस समस्या को गहरा रहा है, इस पर भी प्रकाश डाला गया है।
वहीं दूसरी तरफ अफ्रीका किस तरह से पानी को लेकर पैदा हो रही इन समस्याओं से उबर सकता है और किस तरह बारिश के पानी को संजोने की अपनी क्षमता में विस्तार करके इस समस्या को हल कर सकता है, इसके बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई है। रिपोर्ट में दृढ़ता से तर्क दिया है कि पानी को अफ्रीका की विकास योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए।
सीएसई ने अपनी इस रिपोर्ट में अफ्रीका को लेकर कई महत्वपूर्ण तथ्य साझा किए हैं। आंकड़ों के मुताबिक अफ्रीका, दुनिया में गंभीर जल संकट से जूझ रही 22 फीसदी आबादी का घर है। वहीं यदि उप-सहारा अफ्रीका की बात करें तो यह दुनिया में सबसे अधिक जल-संकटग्रस्त क्षेत्र है। वहीं आशंका है कि अफ्रीका में 2005 से 2030 के बीच पानी की मांग में 283 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।
रिपोर्ट को जारी करने के अवसर पर, जानी-मानी भारतीय पर्यावरणविद् और सीएसई प्रमुख सुनीता नारायण ने कहा है कि, "अफ्रीका और दुनिया के अन्य हिस्से पानी की कमी से जूझ रहे हैं। इसके लिए संसाधन की कमी के साथ-साथ इसका कुप्रबंधन भी जिम्मेवार है।"
उनका आगे कहना है कि, “जलवायु परिवर्तन हमारी दुनिया में गर्मी के साथ-साथ जल संकट को भी गहरा रहा है। लेकिन जलवायु में आता बदलाव इस समस्या की मूल जड़ नहीं है। असली मुद्दा यह है कि हम मौजूदा समय में जल प्रबंधन के लिए बेहतर और किफायती प्रणाली बनाने में असमर्थ रहे हैं।“
इस दौरान उन्होंने जलवायु परिवर्तन और पानी के बीच संबंधों के बारे में भी बात की और कहा, "जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील देश पानी की गंभीर कमी से भी जूझ रहे हैं। रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है कि बढ़ते वैश्विक तापमान की वजह से 2030 तक अफ्रीका में 70 करोड़ लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ सकता है।
इतना ही नहीं इससे खाद्य उत्पादन भी प्रभावित होगा और गर्मी एवं पानी के तनाव के कारण 2050 तक खाद्य उत्पादन में छह से 14 फीसदी की गिरावट आ सकती है।“
2024 स्टेट ऑफ अफ्रीका एनवायरमेंट रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन पर बनाए अंतर-सरकारी पैनल आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट का भी हवाला दिया है। इसके मुताबिक अफ्रीका दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है।
आंकड़ों के मुताबिक उत्तर और दक्षिण अफ्रीका में, तापमान सामान्य से करीब चार डिग्री सेल्सियस अधिक रह सकता है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होते जल संकट की वजह से मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका को सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान होने का अंदेशा है। आशंका है कि यह नुकसान 2050 तक छह से 14 फीसदी के बीच रह सकता है।
इस बारे में डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक और रिपोर्ट से जुड़े रिचर्ड महापात्रा का कहना है, "अफ्रीका दुनिया का सबसे युवा शहरी महाद्वीप है। 1960 के दशक में, यहां की 80 फीसदी आबादी ग्रामीण थी, लेकिन अब अफ्रीकी आबादी का आधा हिस्सा शहरी है।
आशंका है कि 2050 तक, अफ्रीका के 15 देशों के कम से कम 24 बड़े शहरों में जल संकट की समस्या गहरा सकती है। उदाहरण के लिए, केन्या पहले ही अपने तेजी से फैलते शहरों में भारी जल संकट का सामना कर रहा है, जहां एक तिहाई लोग साफ पानी की कमी से जूझ रहे हैं।"
नारायण और महापात्रा के मुताबिक अफ्रीका में बारिश का पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। ऐसे में इसे संजोने से जल आपूर्ति में सुधार के साथ-साथ समुदाय को भी इसके प्रबंधन में शामिल किया जा सकता है। इससे हर किसी को इस अभियान में शामिल किया जा सकता है। जल संचयन और एकीकृत भूमि-जल प्रबंधन अफ्रीका के लिए कोई नया नहीं है, बस अफ्रीका को इसके बारे में सुप्त अवस्था में पड़े अपने ज्ञान को दोबारा जगाने की आवश्यकता है।
(आप इस रिपोर्ट को यहां से निःशुल्क डाउनलोड कर सकते हैं)