
नई रिपोर्ट “पिचेस इन पेरिल” के मुताबिक 2026 फीफा वर्ल्ड कप जलवायु संकट की वजह से उत्तरी अमेरिका का आखिरी टूर्नामेंट हो सकता है, जिसमें बिना बड़े अनुकूलन के खेलना संभव हो।
16 मेजबान स्टेडियमों में से 10 पहले ही सुरक्षित सीमा पार कर चुके हैं और भीषण गर्मी की चपेट में हैं।
2050 तक करीब 90% स्टेडियमों में खिलाड़ियों और दर्शकों को झुलसाती गर्मी से बचाने के लिए बड़े बदलाव करने पड़ेंगे।
अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको के 16 में से 14 स्टेडियम 2025 तक गर्मी, बारिश और बाढ़ जैसी तीन प्रमुख जलवायु खतरों की सीमा पार कर चुके हैं।
कई स्टेडियमों में तापमान लगातार 32–35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा, डलास और ह्यूस्टन सबसे ज्यादा प्रभावित रहे।
रिपोर्ट बताती है कि मेसी, रोनाल्डो, सालाह और एम्बाप्पे जैसे खिलाड़ियों के बचपन के दो-तिहाई मैदान 2050 तक असहनीय गर्मी से जूझेंगे।
2050 तक एक-तिहाई स्टेडियमों में पानी की भारी किल्लत होगी, जिससे मैदानों की देखभाल और कूलिंग सिस्टम प्रभावित होंगे।
भीषण गर्मी से तपते स्टेडियम, बाढ़-सूखे से जूझते मैदान…, यह कोई भविष्य की कोरी कल्पना नहीं बल्कि मौजूदा समय की हकीकत है। कहीं न कहीं फुटबॉल का रोमांच अब जलवायु संकट की मार झेल रहा है।
इस बारे में जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि जलवायु संकट अब खेल के मैदानों तक पहुंच चुका है। विशेषज्ञों ने भी चेताया है कि 2026 का फीफा वर्ल्ड कप, भविष्य में आने वाली चुनौतियों की सिर्फ एक झलक मात्र है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2026 का फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप उत्तरी अमेरिका का आखिरी बड़ा टूर्नामेंट हो सकता है जिसमें जलवायु अनुकूलन के बिना खेल संभव हो।
मतलब कि आने वाले सालों में खेल के मैदान असहनीय गर्मी, सूखा, लू और बाढ़ जैसी जलवायु आपदाओं से जूझ सकते हैं।
गौरतलब है कि आगामी फीफा वर्ल्ड कप 11 जून से 19 जुलाई, 2026 के बीच आयोजित किया जायेगा। इसे तीन उत्तरी अमेरिकी देशों कनाडा, मैक्सिको और अमेरिका के 16 शहरों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाएगा। इस मुकाबले में दुनिया की 48 टीमें हिस्सा लेंगी।
“पिचेस इन पेरिल” नामक इस रिपोर्ट से पता चला है कि 2026 वर्ल्ड कप के 16 में से 10 स्टेडियम पहले ही सुरक्षित सीमा को पार कर चुके हैं और भीषण गर्मी की चपेट में हैं। रिपोर्ट में यह भी अंदेशा जताया गया है कि 2050 तक करीब 90 फीसदी स्टेडियमों में खिलाड़ियों और दर्शकों को झुलसा देने वाली गर्मी से बचाने के लिए बड़े बदलाव करने होंगे।
देखा जाए तो अब हर छोटे- बड़े मैदान पर गर्मी, बाढ़, सूखा या जंगल की आग जैसी आपदाएं खेल को असंभव बना रही हैं।
गर्मी से तपते स्टेडियम, बाढ़-सूखे से जूझते मैदान
इस रिपोर्ट को फुटबॉल फॉर फ्यूचर और कॉमन गोल ने क्लाइमेट एनालिटिक्स फर्म ज्यूपिटर इंटेलिजेंस के साथ मिलकर तैयार की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि न सिर्फ बड़े स्टेडियम, बल्कि वे छोटे मैदान भी जलवायु संकट की चपेट में हैं, जहां से लियोनेल मेसी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने अपने करियर की शुरुआत की थी।
इस रिपोर्ट में पहली बार आईपीसीसी मानकों के आधार पर 2026 वर्ल्ड कप के सभी मैदानों का जलवायु जोखिम आकलन किया गया है। इसमें 2030 और 2034 के मेजबान स्टेडियमों के साथ-साथ लियोनेल मेस्सी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो जैसे दिग्गज खिलाड़ियों के बचपन के मैदान भी शामिल हैं।
रिपोर्ट में यह भी चेताया है कि 2050 तक एक-तिहाई स्टेडियम पानी की भारी किल्लत झेल सकते हैं। इसका असर मैदानों की देखभाल, कूलिंग सिस्टम और खेल को जारी रखने की क्षमता पर पड़ेगा। यही नहीं, आने वाले वर्ल्ड कप स्थलों - 2030 में मोरक्को, स्पेन और पुर्तगाल और 2034 में सऊदी अरब–पर भी जलवायु संकट मंडरा रहा है।
इस साल हाल ही में अमेरिका में हुए क्लब वर्ल्ड कप ने आने वाले खतरों की झलक दिखा दी थी। जब खिलाड़ियों को बेहद कठोर परिस्थितियों में खेलना पड़ा था। झुलसाती गर्मी और तूफानी बारिश के बीच फीफा को पानी, कूलिंग और वॉटर ब्रेक्स, के साथ एयर फैन और छायादार बेंच जैसी सुविधाओं की व्यवस्था करनी पड़ी।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि अमेरिका, कनाडा और मेक्सिको के 16 में से 14 स्टेडियम 2025 में ही तीन बड़े जलवायु खतरों भीषण गर्मी, मूसलाधार बारिश और बाढ़ की सुरक्षित सीमा को पार कर चुके हैं।
मैदानों पर चढ़ा जलवायु संकट का पारा
इनमें से 13 स्टेडियम हर गर्मी कम से कम एक दिन ऐसे हालात झेलते हैं, जब तापमान फीफा की 32 डिग्री सेल्सियस की वेट-बल्ब ग्लोब टेम्परेचर सीमा से ऊपर चला जाता है। यह पैमाना धूप में इंसानी शरीर पर गर्मी के असर को मापने का अंतरराष्ट्रीय मानक है। अटलांटा, डलास, ह्यूस्टन, केन्सास सिटी, मियामी और मॉन्टेरी जैसे शहरों में तापमान दो महीने से ज्यादा समय तक 32 डिग्री सेल्सियस की सीमा से ऊपर रहा।
इसी तरह दस स्टेडियम हर गर्मी में कम से कम एक दिन ऐसे हालात झेलते हैं, जब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इनमें डलास (31 दिन) और ह्यूस्टन (51 दिन) सबसे ज्यादा प्रभावित रहे। हालांकि डलास और ह्यूस्टन के स्टेडियम की छतें गर्मी से कुछ बचाव जरूर करेंगी, लेकिन जलवायु संकट सिर्फ बड़े मैदानों तक सीमित नहीं है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक मेसी, रोनाल्डो, मोहम्मद सालाह और कीलियन एम्बाप्पे के बचपन के दो तिहाई मैदान इतने गर्म हो जाएंगे कि वहां खेलना मुश्किल होगा। वहीं दक्षिण (ग्लोबल साउथ) के खिलाड़ी पहले ही उत्तर की तुलना में सात गुना अधिक दिन असहनीय गर्मी में खेलने को मजबूर हैं।
रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि मिस्र में मोहम्मद सालाह का घरेलू मैदान हर साल एक महीने से ज्यादा वक्त तक भीषण गर्मी के चलते खेलने के लायक नहीं रहेगा। वहीं नाइजीरिया के कप्तान विलियम ट्रूस्ट-एकोन्ग का बचपन का मैदान 2050 तक साल के 338 दिन झुलसाने वाली गर्मी झेलेगा।
गौरतलब है कि हाल ही में क्लब वर्ल्ड कप में खिलाड़ियों ने झुलसाती गर्मी के बीच परिस्थितियों को “असंभव” बताया था। विशेषज्ञों ने तो यहां तक सुझाव दिया कि 2026 वर्ल्ड कप के मैच सुबह 9 बजे शुरू कराने पड़ सकते हैं।
स्पेन के वर्ल्ड कप विजेता जुआन माता का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "जलवायु संकट की हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह पहले से कहीं ज्यादा साफ दिख रहा है, कभी रिकॉर्ड तोड़ लू तो कभी वैलेन्सिया जैसी विनाशकारी बाढ़।"
उनका आगे कहना है, "फुटबॉल हमेशा से लोगों को जोड़ता आया है, लेकिन अब यह हमें याद दिला रहा है कि अगर हम कार्रवाई नहीं करेंगे तो क्या खो सकते हैं। हमें अपनी और आने वाली पीढ़ियों की खातिर इस चुनौती का सामना करना होगा।"
रिपोर्ट में फुटबॉल इंडस्ट्री से 2040 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का संकल्प लेने और अनुकूलन फंड बनाने की अपील की गई है। उत्तरी अमेरिका में 3,600 प्रशंसकों पर हुए सर्वे में शामिल 91 फीसदी प्रशंसकों का भी मानना है कि 2026 का वर्ल्ड कप “सस्टेनेबिलिटी का रोल मॉडल” बनना चाहिए।