
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शहरी भारत में बढ़ते ओजोन प्रदूषण पर सुनवाई करते हुए डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट का संज्ञान लिया है।
सीपीसीबी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर और मुंबई में ओजोन का स्तर सबसे अधिक है, जिसका मुख्य कारण नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन है।
इस मामले में अगली सुनवाई 12 नवंबर 2025 को होगी।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 26 सितंबर 2025 को प्रदूषण से जुड़े दो मामलों को एक साथ जोड़ने का निर्देश दिया है। यह मामले में भारतीय शहरों में बढ़ते ग्राउंड लेवल ओजोन प्रदूषण से जुड़े हैं। इस मामले में अगली सुनवाई 12 नवंबर 2025 को होगी।
एनजीटी इस बात की जांच कर रहा है कि भारत के प्रमुख शहरों में ग्राउंड लेवल ओजोन कैसे बढ़ रहा है। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में डाउन टू अर्थ में 6 अगस्त 2024 को प्रकाशित खबर पर स्वतः संज्ञान लिया है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 25 सितंबर 2025 को जानकारी दी है कि सीएसई रिपोर्ट में बताए 10 क्षेत्रों में ओजोन के स्तर का विश्लेषण किया गया। इसमें कुल 178 निगरानी स्टेशन शामिल थे।
इनमें दिल्ली-एनसीआर के 57 स्टेशन, मुंबई महानगरीय क्षेत्र के 45 स्टेशन, कोलकाता महानगरीय क्षेत्र के 10 स्टेशन, ग्रेटर हैदराबाद के 14, बेंगलुरु महानगरीय क्षेत्र के 11, चेन्नई महानगरीय क्षेत्र के 7 स्टेशन, पुणे महानगरीय क्षेत्र के 12 स्टेशन, ग्रेटर अहमदाबाद के 10 स्टेशन, ग्रेटर लखनऊ और ग्रेटर जयपुर के छह-छह स्टेशन शामिल थे।
सीपीसीबी रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर और मुंबई महानगरीय क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तुलना में ओजोन का स्तर अधिक पाया गया। इसका मुख्य कारण परिवहन, पावर प्लांट और औद्योगिक गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाला नाइट्रोजन ऑक्साइड है।
सीपीसीबी की ओर से पेश वकील ने जानकारी दी है कि एक अन्य मामले में दायर रिपोर्ट में ओजोन और इसके कारणों को नियंत्रित करने के लिए एक अध्ययन करने का सुझाव दिया गया है। इसमें एक विशेषज्ञ समिति के गठन की भी सिफारिश की गई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी इस कदम की सिफारिश की है।
यह मामला अभी विचाराधीन है और ट्रिब्यूनल में इस पर आगे की कार्यवाही चल रही है।
लखनऊ में जल संकट पर एनजीटी में हुई सुनवाई, चार सप्ताह में रिपोर्ट देने का आदेश
26 सितंबर 2025 को लखनऊ के जिलाधिकारी और नगर निगम आयुक्त की ओर से पेश वकील ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से चार सप्ताह का समय मांगा है, ताकि लखनऊ नगर निगम क्षेत्र में आने वाले जल स्रोतों की जानकारी, उन पर अतिक्रमण की स्थिति और वर्तमान हालात के बारे में जानकारी अदालत में प्रस्तुत की जा सके।
सुनवाई में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के वकील ने अदालत का ध्यान एक रिपोर्ट की ओर आकर्षित किया। इसमें बताया गया कि केंद्रीय भूजल बोर्ड ने 2021 में लखनऊ जिले में नेशनल एक्विफर मैपिंग की थी। इसके आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भूजल स्तर में गिरावट और भूजल संसाधनों की कमी को रोकने के लिए ब्लॉकवार प्रबंधन योजनाएं तैयार की गई हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन योजनाओं का उद्देश्य भूजल के स्तर में गिरावट को रोकना और भूजल के संरक्षण को सुनिश्चित करना है। इसमें आपूर्ति और मांग दोनों पक्षों से जुड़े उपायों को शामिल किया गया है। इन उपायों में कृत्रिम रिचार्ज, खेतों में जल संरक्षण, और जल उपयोग दक्षता अपनाना आदि शामिल हैं।
लखनऊ के जिलाधिकारी और नगर निगम आयुक्त की ओर से पेश वकील ने अदालत से चार सप्ताह का समय मांगा है, ताकि केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा तैयार ब्लॉकवार प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन में अब तक हुई प्रगति की जानकारी अदालत के सामने प्रस्तुत की जा सके। इस मामले में अगली सुनवाई 17 दिसंबर 2025 को होगी।