
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के नए विश्लेषण में सामने आया है कि साल 2025 के गर्मी के मौसम के दौरान सभी प्रमुख महानगरों में सतही (जमीन के पास बनने वाला) ओजोन प्रदूषण में भारी बढ़ोतरी हुई है। (इस विश्लेषण में दिल्ली को शामिल नहीं किया गया है, जिसकी अलग से रिपोर्ट बनाई गई है।) सभी प्रमुख महानगरों - कोलकाता, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई - में ऐसे दिन दर्ज किए गए हैं जब 8 घंटे की औसत अवधि तक ओजोन का स्तर मानकों से अधिक रहा। इससे यह पता चलता है कि इन शहरों को अब एक साथ कई प्रदूषकों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
सीएसई के अर्बन लैब द्वारा 'एयर क्वालिटी ट्रैकर' पहल के तहत किए गए नवीनतम वायु गुणवत्ता विश्लेषण में पाया गया कि प्राथमिक प्रदूषकों (जो सीधे स्रोतों से निकलते हैं) के विपरीत ओजोन सीधे किसी स्रोत से उत्सर्जित नहीं होती। यह गैस तब बनती है जब नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसीएस) और कार्बन मोनोक्साइड—जो गाड़ियों, बिजली घरों, फैक्ट्रियों और दूसरे जलने वाले स्रोतों से निकलते हैं—धूप में आपस में रासायनिक क्रियाएँ करते हैं।
वीओसीएस के कुछ प्राकृतिक स्रोत, जैसे पेड़-पौधे भी होते हैं, जो इस प्रक्रिया को और जटिल बना देते हैं। सतही ओजोन केवल शहरी इलाकों में नहीं जमती, बल्कि यह लंबी दूरी तक फैल सकती है और एक क्षेत्रीय प्रदूषक का रूप ले लेती है। इसका असर कृषि उत्पादकता पर भी पड़ता है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
सीएसई के क्लीन एयर प्रोग्राम की प्रमुख एवं कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं, "यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन सकता है, क्योंकि ओजोन एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है और थोड़े समय के लिए संपर्क में आने से भी इंसानों के लिए हानिकारक हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि मौजूदा नीतियों में ओजोन की निगरानी और नियंत्रण को शामिल किया जाए।
साथ ही, लोगों को इस गैस के ज़्यादा संपर्क से बचाने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं। उत्तर भारत के शहरों में जहां गर्मियों की भीषण गर्मी और तेज धूप ओजोन स्तर को बढ़ाते हैं, वहीं गर्म जलवायु वाले शहरों में यह अधिकता अन्य मौसमों-जैसे सर्दी और वसंत-में भी लगातार देखने को मिलती है। ओजोन नियंत्रण के लिए वाहनों, उद्योगों और सभी प्रकार के दहन स्रोतों से निकलने वाली कई गैसों पर सख्त नियंत्रण की आवश्यकता है।"
सीएसई के अर्बन लैब में डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर शरनजीत कौर कहती हैं, "पर्याप्त निगरानी की कमी, सीमित आंकड़े और विश्लेषण के अपर्याप्त तरीके भारत के शहरों में बढ़ते इस खतरे की समझ को कमजोर कर रहे हैं। केवल पूरे शहर का औसत निकालने पर निर्भर रहना - जो आमतौर पर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का अनुमान लगाने की मानक प्रक्रिया है - समस्या की गंभीरता को कम आंकता है। इसकी बजाय जरूरी है कि उन स्थानों की पहचान की जाए, जहां ओजोन का स्थानीय स्तर पर जमाव और लोगों का सीधा संपर्क अधिक होता है, और फिर उसके अनुसार नियंत्रण करने वाली रणनीतियां बनाई जाएं।"
सीएसई की समीक्षा में यह भी सामने आया है कि सतही ओजोन श्वसन मार्गों में सूजन और क्षति पहुंचा सकती है, संक्रमणों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ा सकती है और दमा (अस्थमा), क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस और एम्फायसेमा जैसी श्वसन संबंधी बीमारियों को और गंभीर बना सकती है। अपूर्ण विकसित फेफड़ों वाले बच्चे, बुजुर्ग और पहले से ही सांस के रोगी विशेष रूप से अधिक संवेदनशील होते हैं। ओजोन के संपर्क में आने से अस्थमा के दौरे अधिक बार और गंभीर रूप में आते हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती होने की दर बढ़ जाती है। चूंकि ओजोन बहुत तेजी से प्रतिक्रिया करने वाली गैस है, इसलिए इसके लिए 24 घंटे के बजाय 8 घंटे की औसत सीमा तय की गई है।
जांच की पद्धति:
यह आकलन गर्मी के महीनों (मार्च–मई) के दौरान 2022 से 2025 तक के रुझानों को चिन्हित करता है (31 मई 2025 तक)। यह विश्लेषण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी के आधिकारिक ऑनलाइन पोर्टल ‘सेंट्रल कंट्रोल रूम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट’ पर उपलब्ध 15 मिनट की औसत वाली सार्वजनिक वास्तविक समय की सूक्ष्म डेटा पर आधारित है। यह डेटा कॉन्टिन्युअस एंबियंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम के तहत मुंबई (31 स्टेशन), कोलकाता-हावड़ा (12), बेंगलुरु (14), हैदराबाद (14), और चेन्नई (9) में फैले कुल 80 आधिकारिक स्टेशनों से संकलित किया गया है।
सतही ओजोन प्रदूषण बहुत अस्थिर और स्थानीय होता है और अलग-अलग जगहों पर इसका स्तर बदलता रहता है। इसी वजह से और वैश्विक मानकों के अनुसार इस विश्लेषण में हर निगरानी स्टेशन पर यह देखा गया कि कितने दिनों तक 8 घंटे का मानक पार हुआ। ओजोन का बनना जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं और प्रकाश-रासायनिक प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करता है, इसलिए समय और स्थान के हिसाब से इसका स्तर बदलता है। मौसम की स्थिति जैसे धूप, गर्म मौसम और ठहरी हुई हवाएं भी इसके बनने में भूमिका निभाती हैं। यह अध्ययन महानगरों के प्रत्येक स्टेशन पर मानक से अधिक होने वाले दिनों को ट्रैक करता है। अगर किसी शहर में एक भी स्टेशन मानक पार करता है, तो उसे उस शहर के लिए ‘मानक उल्लंघन’ माना गया है। अगर कई स्टेशन एक ही दिन मानक पार करते हैं, तो यह बताता है कि प्रदूषण कितनी बड़ी जगह फैला है और कितने लोग प्रभावित हो रहे हैं।
इस अध्ययन में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार यूएस ईपीए की पद्धति अपनाई गई है। इसके तहत किसी दिन के लिए हर 8 घंटे के औसत ओजोन स्तर की गणना की जाती है, और उनमें से सबसे ज्यादा मान को उस दिन का ओजोन स्तर माना जाता है। यूएस ईपीए के अनुसार, शहर या क्षेत्र का एक्यूआई उस दिन सभी स्टेशनों में दर्ज सबसे अधिक मान के आधार पर तय किया जाता है। इसलिए इस अध्ययन में रुझान की गणना उन दिनों की संख्या के रूप में की गई है जब 8 घंटे का औसत मानक पार किया गया - इन्हें आगे "एक्सीडेंस डे" कहा गया है। यानी अधिकता वाले दिन बताया गया है।
शहर वार निष्कर्ष
मुंबई
गर्मी के मौसम के दौरान: 1 मार्च से 31 मई के बीच इस गर्मी में मुंबई ने 92 में से 32 दिनों में ओजोन मानकों का उल्लंघन दर्ज किया। यह पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 42 प्रतिशत की गिरावट दर्शाता है। 29 मार्च सबसे खराब दिन रहा, जब शहर के 31 निगरानी स्टेशनों में से 8 पर ओजोन स्तर मानक से ऊपर दर्ज किया गया। इस दौरान क्षेत्रीय स्तर पर अधिकतम सतही ओजोन सांद्रता 90 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m³) दर्ज की गई।
ओजोन हॉटस्पॉट्स: मुंबई में सबसे अधिक प्रभावित स्थान चकाला रहा, जहां मार्च से मई के बीच 29 दिनों तक ओजोन मानकों का उल्लंघन हुआ। इसके बाद बायकुला और खेरवाड़ी का स्थान रहा।
जगह-जगह का फर्क और अन्य प्रदूषकों का संबंध: सतही ओजोन का वितरण आमतौर पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ₂) के साथ विपरीत संबंध दर्शाता है। विशेष रूप से भारी यातायात वाले क्षेत्रों में जहां एनओ2 का स्तर अधिक होता है, वहां ओजोन का निर्माण अक्सर कम होता है क्योंकि ओजोन नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ) से प्रतिक्रिया कर टूट जाता है और फैल जाता है।
मुंबई के चकाला में एनओ2 और ओजोन की सांद्रता लगातार उच्च स्तर पर रहती है। ऐसे फर्क दिखाते हैं कि शहर के अलग-अलग हिस्सों में ओजोन का स्तर कई कारणों से बदलता है—जैसे दूसरे प्रदूषक, मौसम और उत्सर्जन के स्रोतों का असर।
मई 2025 की तुलना मई 2024 से करने पर यह सामने आया कि अब सतही ओजोन सूर्यास्त के बाद भी अधिक समय तक वातावरण में बना रहता है। हालांकि, साल 2025 की गर्मी में प्रति घंटे की औसत ओजोन अधिकतम सांद्रता पिछले वर्ष की तुलना में 35 प्रतिशत कम रही है, जो यह संकेत देती है कि या तो वायुमंडलीय रसायन विज्ञान में परिवर्तन आया है या फिर ओजोन बनाने वाले पूर्ववर्ती प्रदूषकों के उत्सर्जन में कमी हुई है।
दैनिक रुझानों से यह भी पता चलता है कि जब सुबह और शाम के समय एनओ2 का स्तर बढ़ता है, तो वह ओजोन को निष्क्रिय करने और उसे तितर-बितर करने में मदद करता है। लेकिन जब एनओ₂ का स्तर अपेक्षाकृत कम होता है, जैसे कि दोपहर के समय या ट्रैफिक के ऑफ-पीक घंटों में, तब ओजोन का स्तर बढ़ जाता है।
अन्य ऋतुओं में भी ओजोन का निर्माण: अधिकांश उत्तरी भारतीय शहरों से हटकर मुंबई में सतही ओजोन का स्तर सर्दियों (दिसंबर से फरवरी) के दौरान अधिक पाया गया है। सर्दी 2024-25 के दौरान शहर में 87 दिनों तक ओजोन स्तर मानक से अधिक रहा - जो कि पिछले वर्ष की सर्दियों (78 दिन) की तुलना में 10 प्रतिशत की वृद्धि है। यह रुझान वायुमंडलीय परिस्थितियों, फोटो-रासायनिक प्रतिक्रियाओं और प्रदूषण स्रोतों से उत्सर्जन के स्तर के कारण उत्पन्न हुआ है।
कोलकाता
गर्मी के मौसम के दौरान: इस वर्ष 1 मार्च से 31 मई की अवधि में कोलकाता में 92 में से लगभग 22 दिनों तक ओजोन का स्तर मानकों से अधिक रहा। यह पिछले वर्ष की गर्मियों की तुलना में 45 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है। इस गर्मी में औसत प्रति घंटा ओजोन अधिकतम स्तर में भी 22 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जो समग्र रूप से एक सुधार को दिखाता है।
ओजोन हॉटस्पॉट्स: कोलकाता में रवींद्र सरोबर और जादवपुर ऐसे स्थान रहे हैं, जहां अन्य स्थानों की तुलना में अधिक दिनों तक ओजोन मानक से ऊपर रहा।
जगह-जगह का फर्क और अन्य प्रदूषकों का संबंध सतही ओजोन का वितरण आमतौर पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के साथ विपरीत संबंध दर्शाता है। विशेष रूप से भारी ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में, जहां एनओ₂ की सांद्रता अधिक होती है, वहां ओजोन का निर्माण दब जाता है क्योंकि वह नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ) से प्रतिक्रिया कर टूट जाता है। ओजोन आमतौर पर कम प्रदूषित क्षेत्रों में बहकर एकत्रित होता है और वहीं उसका स्तर बढ़ता है।
अन्य ऋतुओं में भी ओजोन का निर्माण: हालांकि उत्तर भारत में ओजोन प्रदूषण आमतौर पर गर्मियों के महीनों और तीव्र धूप के साथ जुड़ा होता है, लेकिन कोलकाता में सर्दियों (नवंबर से फरवरी) और प्री-मानसून ऋतु के दौरान भी लगातार सतही ओजोन की उच्च सांद्रता दर्ज की गई है। यह रुझान वायुमंडलीय परिस्थितियों, अपेक्षाकृत गर्म जलवायु, फोटो-रासायनिक प्रतिक्रियाओं और उत्सर्जन स्तरों के कारण देखा गया है। सर्दी 2024–25 के दौरान कोलकाता में 28 दिनों तक ओजोन स्तर मानकों से अधिक रहा, जो कि पिछले वर्ष दर्ज 30 दिनों की तुलना में 7 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है।
हावड़ा: कोलकाता का जुड़वां शहर हावड़ा में इस गर्मी (1 मार्च से 31 मई) के दौरान 92 में से 58 दिनों में उसके वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों ने ओजोन मानक से अधिक सांद्रता दर्ज की। हावड़ा के दासनगर क्षेत्र में सबसे अधिक उल्लंघन दर्ज किया गया। वहीं सर्दियों में, हावड़ा में 81 दिनों तक ओजोन स्तर मानकों से अधिक रहा - जबकि पिछले वर्ष यह संख्या केवल 14 थी, यानी इस वर्ष इसमें भारी वृद्धि देखी गई है।
बेंगलुरु
गर्मी के मौसम के दौरान: इस वर्ष 1 मार्च से 31 मई की अवधि में बेंगलुरु में 92 में से 45 दिनों तक ओजोन का स्तर वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक रहा है। यह पिछले वर्ष की गर्मियों की तुलना में 29 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। 31 मार्च सबसे खराब दिन रहा, जब शहर के 14 में से 4 निगरानी स्टेशनों ने ओजोन स्तर में मानक उल्लंघन दर्ज किया।
ओजोन हॉटस्पॉट्स: बेंगलुरु में हम्बेगौड़ा नगर ने अधिकतम उल्लंघन दर्ज किया, जहां मार्च से मई 2025 के बीच 31 दिनों तक ओजोन स्तर मानक से ऊपर रहा। इसके बाद बापूजी नगर का स्थान रहा।
जगह-जगह का फर्क और अन्य प्रदूषकों का संबंध: मई 2025 की तुलना मई 2024 से करने पर यह देखा गया कि इस वर्ष प्रति घंटा ओजोन की औसत अधिकतम सांद्रता में 28 प्रतिशत की कमी आई है, और पिछले वर्ष की तुलना में ओजोन अब सूर्यास्त के बाद वातावरण में नहीं बना रहता। दैनिक रुझान बताते हैं कि जब सुबह और शाम के समय एनओ₂ का स्तर बढ़ता है, तो यह ओजोन की सांद्रता को निष्क्रिय करने और तितर-बितर करने में सहायक होता है। लेकिन जब ट्रैफिक के ऑफ-पीक घंटों में एनओ2 का स्तर कम होता है, तब ओजोन का स्तर बढ़ने लगता है।
अन्य ऋतुओं में भी ओजोन का निर्माण: बेंगलुरु में ओजोन का निर्माण सर्दी और गर्मी दोनों मौसमों में होता है। हालांकि, इस वर्ष के आंकड़ों से पता चलता है कि ओजोन की सांद्रता वसंत ऋतु (फरवरी से अप्रैल) की ओर तेजी से खिसक रही है। इस अवधि में ओजोन स्तर में पिछले वर्ष की तुलना में 31 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। यह ओजोन के निर्माण में एक नई प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो गर्म तापमान, तेज धूप और संभवतः पूर्ववर्ती प्रदूषकों के बदलते उत्सर्जन पैटर्न से प्रेरित हो रही है।
हैदराबाद
गर्मी के मौसम के दौरान: इस वर्ष 1 मार्च से 31 मई के बीच हैदराबाद में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों के अनुसार 20 दिनों तक ओजोन का स्तर मानकों से अधिक रहा। यह पिछले वर्ष की तुलना में 55 प्रतिशत की गिरावट है। इस अवधि के दौरान सबसे अधिक क्षेत्रीय ओजोन सांद्रता 51 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई।
ओजोन हॉटस्पॉट्स: हैदराबाद में बॉलरम सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है, जहां मार्च से मई के दौरान 17 दिनों तक ओजोन का स्तर मानकों से अधिक रहा। आईसीआरआईएसएटी (2 दिन) और रामचंद्रपुरम (1 दिन) के सिवाय अन्य निगरानी स्टेशनों पर अपेक्षाकृत कम उल्लंघन दर्ज हुआ।
जगह-जगह का फर्क और अन्य प्रदूषकों का संबंध: मई 2025 की तुलना मई 2024 से करने पर यह देखा गया कि इस बार ग्राउंड-लेवल ओजोन सूर्यास्त के बाद भी वातावरण में बनी रही, जबकि पिछले वर्ष की तुलना में प्रति घंटा औसत ओजोन स्तर 3 प्रतिशत अधिक रहा।
अन्य ऋतुओं में भी ओजोन का निर्माण: हैदराबाद में सर्दियों के मौसम में भी अक्सर ओजोन का स्तर मानकों से ऊपर चला जाता है। ठंडा और स्थिर मौसम, खराब वर्टिकल मिक्सिंग के साथ, इस स्थिति को और गंभीर बना देता है। जब शहरी ट्रैफिक और औद्योगिक उत्सर्जन सीमित वायुमंडलीय प्रसार के साथ मिलते हैं, तो कमजोर सर्दियों की धूप में भी ओजोन का निर्माण होता है।
हालांकि, दिसंबर से जनवरी के इस शीतकालीन मौसम में, शहर में ओजोन उल्लंघन के दिनों की संख्या में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। इस बार केवल 9 दिन ओजोन का स्तर मानकों से अधिक रहा, जो पिछले वर्ष के 43 दिनों की तुलना में बड़ी गिरावट है।
चेन्नई
ग्रीष्मकाल के दौरान: इस गर्मी (1 मार्च से 31 मई) के दौरान चेन्नई में लगभग 92 में से 15 दिनों में ओजोन स्तर मानकों से अधिक दर्ज किया गया, जैसा कि शहर के वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों के डेटा से पता चलता है। हालांकि, पिछले वर्ष की इसी अवधि में कोई उल्लंघन नहीं हुआ था। तुलना करें तो, 2023 की गर्मियों में 3 दिन और 2022 में 19 दिन ओजोन उल्लंघन दर्ज किया गया था। इस गर्मी में उच्चतम क्षेत्रीय ओजोन सांद्रता 64 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रही।
ओजोन हॉटस्पॉट: अलंदुर चेन्नई का सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है। इसने मार्च से मई के बीच 15 दिनों तक मानकों से अधिक स्तर दर्ज किया। शहर के अन्य स्टेशनों पर कोई उल्लंघन दर्ज नहीं हुआ।
जगह-जगह का फर्क और अन्य प्रदूषकों का संबंध:: मई 2025 के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्राउंड-लेवल ओजोन अब सूर्यास्त के बाद भी वातावरण में बनी रहती है, और मई 2024 की तुलना में औसत प्रति घंटा ओजोन पीक 76 प्रतिशत बढ़ गई है।
अन्य ऋतुओं में भी ओजोन का निर्माण: चेन्नई में आमतौर पर शुरुआती गर्मी के महीनों में ओजोन स्तर बढ़ता है, जब सूखी हवा, साफ आसमान और कम वायु गति प्रदूषकों के फैलाव में देरी करते हैं। इससे तेज धूप और न्यूनतम वायुमंडलीय मिश्रण के दौरान फोटोकेमिकल गतिविधि में वृद्धि होती है। इस गर्मी (मार्च से मई 2025) में चेन्नई में 15 दिनों तक ओजोन का स्तर मानकों से अधिक रहा, जो पिछले वर्ष की समान अवधि के शून्य उल्लंघनों से बड़ा बदलाव है। इसके अलावा, शीतकालीन महीनों (दिसंबर–फरवरी) के दौरान ओजोन उल्लंघन वाले दिनों की संख्या भी पिछले साल के 7 दिनों से बढ़कर इस सर्दी 10 दिन हो गई है।
आगे क्या करना होगा
ग्राउंड-लेवल यानी सतही ओजोन अब एक गंभीर प्रदूषक के रूप में उभर रही है, क्योंकि शहरों में 8 घंटे के मानक से अधिक स्तर वाले दिन दर्ज किए जा रहे हैं। हालांकि, गर्मियों के महीनों में तेज धूप और गर्मी के कारण इसके उल्लंघन का स्तर अधिक होने की उम्मीद रहती है, लेकिन यह समस्या अब गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में पूरे साल देखी जा रही है।
शहरों और राज्यों के लिए स्वच्छ वायु कार्ययोजना में इस बहु-प्रदूषक चुनौती को तुरंत शामिल करना आवश्यक है। यह सीखना महत्वपूर्ण है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं ने जब धूल कण प्रदूषण (पार्टिकुलेट मैटर) को नियंत्रित किया, तो वे एनओएक्स (नाइट्रोजन ऑक्साइड) और ओजोन संकट के जाल में फंस गए। हमें इस जाल में फंसने से रोकना होगा। शहर के लिए स्वच्छ वायु कार्ययोजना में ओजोन न्यूनीकरण को शामिल करना होगा ताकि शून्य-उत्सर्जन वाहनों को बढ़ावा देने, स्वच्छ औद्योगिक प्रक्रियाओं और ईंधनों को अपनाने, कचरा जलाने को समाप्त करने, विरासत अपशिष्ट के 100 प्रतिशत निस्तारण, अपशिष्ट संग्रह, पृथक्करण और पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित करने तथा घरों में ठोस ईंधनों के स्थान पर स्वच्छ ईंधनों के उपयोग को लागू करने जैसे कड़े उपाय किए जा सकें।
ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान में ओजोन को शामिल करना आवश्यक है ताकि वाहनों और उद्योगों से निकलने वाली पूर्ववर्ती गैसों (प्रिकर्सर गैसों) को लक्षित करते हुए आपातकालीन कार्रवाई की जा सके, जो ओजोन का निर्माण करती हैं, और अल्पावधि के लिए उच्च स्तर के संपर्क को कम किया जा सके।
ओजोन पर क्षेत्रीय कार्ययोजना विकसित करें: सतही स्तर का ओजोन प्रदूषित क्षेत्रों में बनता है लेकिन साफ़ शहरी इलाकों, शहरी सीमाओं और आसपास के ग्रामीण इलाकों में फैलकर जमा हो जाता है, जिससे कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। प्रदूषित क्षेत्रों में ओजोन अन्य प्रदूषकों से प्रतिक्रिया करके नष्ट हो जाता है, लेकिन साफ़ वातावरण में यह लंबे समय तक बना रहता है। इसलिए ओजोन एक क्षेत्रीय प्रदूषक है, जिसके प्रभावी नियंत्रण के लिए स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर कार्रवाई जरूरी है।