
क्या आप जानते हैं कि आपके आसपास की हवा में घुला जहर आपके दिल की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचा रहा है? एक नए अध्ययन से पता चला है कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण का संपर्क दिल को कमजोर बना सकता है।
जर्नल 'रेडियोलॉजी' में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक हवा में घुले सूक्ष्म कण यानी पीएम 2.5 दिल की मांसपेशियों में शुरुआती क्षति, यानी मायोकार्डियल फाइब्रोसिस, का कारण बन सकते हैं।
गौरतलब है कि मायोकार्डियल फाइब्रोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें हृदय की मांसपेशियों में अतिरिक्त फाइब्रोस टिश्यू (जैसे कि स्कार या रेशेदार टिश्यू) बनने लगते हैं। यह दिल की मांसपेशियों में धीरे-धीरे जमने वाली 'सख्त परत' जैसी होती है, जो दिल को सामान्य रूप से सिकुड़ने और फैलने से रोकती है। इससे दिल की कार्यक्षमता घट सकती है और आगे चलकर दिल की बीमारी, हार्ट फेलियर या अचानक हार्ट अटैक का खतरा बढ़ सकता है।
टोरंटो विश्वविद्यालय की डॉक्टर केट हैनिमन और उनकी टीम ने कार्डियक एमआरआई तकनीक की मदद से यह पता लगाया है कि वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से दिल की संरचना पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है।
फेफड़ों के रास्ते रक्त में प्रवेश कर रहे प्रदूषण के महीन कण
शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रदूषण के यह सूक्ष्म कण इतने महीन होते हैं कि फेफड़ों के रास्ते रक्त में प्रवेश कर सकते हैं। ये आमतौर पर गाड़ियों के धुएं, फैक्ट्रियों के उत्सर्जन और जंगलों में लगने वाली आग से निकलते हैं।
देखा जाए तो पिछले कई शोधों में इस बात की पुष्टि हुई है कि दूषित हवा में सांस लेने से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है, जो दुनिया में होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है। लेकिन हवा में प्रदूषण से दिल में क्या बदलाव आते हैं, यह अभी पूरी तरह समझा नहीं गया है।
डॉक्टर हैनिमन के मुताबिक अगर आप लम्बे समय तक प्रदूषित हवा में रहते हैं, तो आपको दिल की बीमारी होने का खतरा ज्यादा रहता है, जिसमें हार्ट अटैक भी शामिल है। ऐसे में इस अध्ययन का मकसद समझना था कि दिल की कोशिकाओं में कौन से बदलाव इस खतरे को बढ़ाते हैं।
डॉक्टर हैनमैन और उनके सहयोगियों ने अपने इस अध्ययन में मायोकार्डियल फाइब्रोसिस की मात्रा निर्धारित करने और पीएम 2.5 के दीर्घकालिक संपर्क के साथ इसके संबंध का आकलन करने के लिए कार्डियक एमआरआई नामक तकनीक का उपयोग किया है।
महिलाओं, धूम्रपान करने वालों में अधिक देखी गई समस्या
इस अध्ययन में 201 स्वस्थ लोगों और दिल की बीमारी से पीड़ित 493 मरीजों को शामिल किया गया। दोनों ही समूहों में यह देखा गया कि जिन लोगों को लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहना पड़ा, उनके दिल की मांसपेशियों में अधिक फाइब्रोसिस पाया गया। महिलाओं, धूम्रपान करने वालों और हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों में यह प्रभाव और भी ज्यादा देखा गया।
अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि लंबे समय तक सूक्ष्म कणों के संपर्क में रहने से दिल की मांसपेशियों में मायोकार्डियल फाइब्रोसिस की मात्रा बढ़ती है। इसका मतलब है कि मायोकार्डियल फाइब्रोसिस वायु प्रदूषण से होने वाली हृदय संबंधी समस्याओं का एक मुख्य कारण हो सकता है।
अध्ययन यह भी दर्शाता है कि वायु प्रदूषण दिल की बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है, भले ही पारंपरिक कारण जैसे धूम्रपान या हाई ब्लड प्रेशर मौजूद न हों। इस बारे में डॉक्टर हैनिमन का प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “यह जरूरी है कि हम दिल की बीमारी का आकलन करते समय मरीज की प्रदूषण के संपर्क की कहानी को भी शामिल करें, खासकर उन लोगों के लिए जो बाहर खुले में काम करते हैं।“
क्या वायु गुणवत्ता मानकों से हम सुरक्षित हैं?
चौंकाने वाली बात यह है कि जिन लोगों को नुकसान हुआ, वे लोग अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार 'सुरक्षित' माने जाने वाले स्तर के प्रदूषण में रह रहे थे। इसका मतलब है कि वायु प्रदूषण का कोई भी सुरक्षित स्तर नहीं है।
ऐसे में शोधकर्ताओं ने जोर दिया है कि प्रदूषण के संपर्क को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि लोग लंबे समय तक इस अदृश्य खतरे के संपर्क में न रहें।
देखा जाए तो भारत जैसे देशों में, जहां प्रदूषण का स्तर कई बार वैश्विक मानकों से ऊपर होता है, वायु प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम और भी गंभीर हो जाते हैं। ऐसे वातावरण में लोगों का लंबे समय तक रहना खासकर दिल और फेफड़ों जैसी महत्वपूर्ण अंगों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
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