
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम यानी राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्ययोजना (एनसीएपी) की पांचवीं वर्षगांठ पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने एक व्यापक समीक्षा रिपोर्ट जारी की है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपनाए जा रहे अच्छे उपायों की जानकारी दी गई है।
यह रिपोर्ट राजधानी दिल्ली में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान सार्वजनिक की गई। रिपोर्ट का नाम है – "ड्राइविंग क्लीन एयर एक्शन अंडर एनसीएपी"।
इस समीक्षा में दिल्ली, कोलकाता, नोएडा, सूरत, कोच्चि, इंदौर, श्रीनगर और बेंगलुरु जैसे कई शहरों में चार प्रमुख क्षेत्रों – वाहनों, उद्योगों, ठोस कचरा और निर्माण एवं ध्वस्तीकरण से उत्पन्न मलबे – में किए गए प्रयासों को शामिल किया गया है।
सम्मेलन में बोलते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “स्वच्छ वायु के लिए हर क्षेत्र में अलग-अलग तरीके से कार्रवाई करने की जरूरत है और हर क्षेत्र के भीतर ऐसे बदलाव लाने होंगे जो पूरी तस्वीर को बदल सकें। छोटे-छोटे कदमों से प्रदूषण की समस्या हल नहीं होगी। हमें बुनियादी और व्यापक बदलावों की आवश्यकता है।”
रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि देश का कोई भी शहर अब तक सभी जरूरी कदम एक साथ और पर्याप्त स्तर पर नहीं उठा पाया है, लेकिन कई शहरों ने ऐसे महत्वपूर्ण प्रयास शुरू किए हैं जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं।
दिल्ली को उन शहरों में अग्रणी बताया गया है जहां अनेक प्रभावी कदम उठाए गए हैं। अदालत के निर्देशों और प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियों की निगरानी में दिल्ली ने पब्लिक और कमर्शियल वाहनों में सीएनजी का उपयोग शुरू किया, पुराने डीजल और पेट्रोल वाहनों को हटाया, प्रदूषणकारी ईंधनों पर रोक लगाई और कोयले से चलने वाले सभी बिजली संयंत्रों को बंद किया।
दिल्ली सरकार ने बिजली से चलने वाले वाहनों यानी इलेक्ट्रिक व्हीकल की नीति अपनाई और अब तक लगभग 12 प्रतिशत वाहन विद्युत चालित हो चुके हैं। निर्माण के मलबे के प्रबंधन में दिल्ली सबसे आगे है, जहां रंग-कोडित कचरा डिब्बे, मोबाइल अनुप्रयोग और देश की सबसे बड़ी पुनर्चक्रण सुविधा स्थापित की गई है।
हालाँकि इन सबके बावजूद दिल्ली को अपने वायु प्रदूषण स्तर को राष्ट्रीय मानकों तक लाने के लिए अब भी कणीय पदार्थ पीएम 2.5 के स्तर में साठ प्रतिशत की और कमी लानी है। इसके लिए अभी भी प्रदूषणमुक्त परिवहन, ठोस कचरा प्रबंधन, उद्योगों पर नियंत्रण, घरेलू ईंधन के रूप में ठोस पदार्थों का उपयोग और क्षेत्रीय स्तर पर समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है।
वाराणसी जैसे शहरों में प्रदूषण का मुख्य कारण धूल है, जो कुल प्रदूषण का 84 प्रतिशत तक है। वहां शहरी पुनर्विकास और गंगा किनारे हरित क्षेत्रों के विस्तार से प्रदूषण कम करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।
कोच्चि शहर ने सौर ऊर्जा आधारित परिवहन व्यवस्था विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। श्रीनगर में यातायात व्यवस्था को सुधारने और सार्वजनिक स्थानों के पुनरुद्धार के लिए स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें झेलम नदी तट का पुनरुद्धार और विद्युत चालित नौकाओं की शुरुआत शामिल है। भुवनेश्वर और बेंगलुरु जैसे शहरों ने बस सेवाओं को आधुनिक बनाने में पहल की है।
औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण करना इसलिए कठिन रहा है क्योंकि अधिकांश उद्योग नगर सीमा से बाहर हैं। फिर भी गुजरात ने साझा बॉयलर नीति लागू की है और ओडिशा ने निरंतर उत्सर्जन निगरानी प्रणाली स्थापित की है, जिससे निरीक्षण और कार्रवाई मजबूत हुई है।
ठोस कचरे के क्षेत्र में इंदौर ने अपने समूचे कचरे का पुनः उपयोग सुनिश्चित करके उसे जमीन में गाड़ने की आवश्यकता समाप्त कर दी है। पुणे में कचरा बीनने वाले श्रमिकों को व्यवस्था में शामिल करके एक न्यायसंगत मॉडल स्थापित किया गया है। भोपाल में स्रोत स्तर पर कचरा अलग करने की व्यवस्था सख्ती से लागू की गई है जबकि अंबिकापुर में ठोस और तरल संसाधन प्रबंधन केंद्रों की मदद से ठोस व्यवस्था तैयार की गई है।
निर्माण और ध्वस्तीकरण कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में हैदराबाद ने विकेन्द्रित प्रणाली अपनाई है, जहाँ सार्वजनिक-निजी साझेदारी के तहत चार पुनर्चक्रण संयंत्र काम कर रहे हैं। नोएडा में स्थित संयंत्र प्रदूषण मुक्त संचालन का उदाहरण प्रस्तुत करता है। पिंपरी-चिंचवड़ नगर में तीसरी संस्था के माध्यम से कचरे के संग्रह, निगरानी और नियमों के पालन की व्यवस्था लागू की गई है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एनसीएपी को अब और अधिक रणनीतिक भूमिका निभानी होगी ताकि सभी संबंधित क्षेत्रों – परिवहन, उद्योग, कचरा प्रबंधन और घरेलू ईंधन – में स्वच्छ वायु से जुड़े लक्ष्य और मानक शामिल किए जा सकें। इसके लिए स्वच्छ वायु को केवल धूल नियंत्रण तक सीमित न रखते हुए उसे व्यापक क्षेत्रीय नीति और कानूनी समर्थन के साथ जोड़ा जाना ज़रूरी है।
एनसीएपी को चाहिए कि वह अब पीएम 10 की बजाय पीएम 2.5 को स्वच्छता का मानक बनाए और राज्यों और शहरों के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करे। साथ ही, स्वच्छ वायु को प्राप्त करने की दिशा में किए जा रहे अच्छे प्रयासों को विस्तारित करने के लिए कानूनी आधार और तकनीकी क्षमताओं को भी बढ़ाया जाए। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि यह कार्यक्रम सुधार आधारित और प्रदर्शन पर आधारित होना चाहिए ताकि उपलब्ध संसाधनों का उपयोग सर्वोत्तम ढंग से हो सके।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा कि वायु प्रदूषण की चुनौती के बावजूद जो अच्छे प्रयास कुछ शहरों में दिख रहे हैं, वे उम्मीद की किरण हैं। अब ज़रूरत इस बात की है कि इन प्रयासों को व्यापक स्तर पर अपनाया जाए, ताकि हर क्षेत्र और हर शहर में स्वच्छ हवा सबके लिए सुनिश्चित की जा सके।