गंगा के मैदान से अमेजन के जंगलों तक: धुंध, प्रदूषण व आग बढ़ा रही सांसों की बीमारी: डब्ल्यूएमओ

रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा के मैदानी इलाकों की धुंध अब सिर्फ मौसम का खेल नहीं रह गई, बल्कि यह इंसानी गतिविधियों से बिगड़ते पर्यावरण का साफ संकेत है
वायु गुणवत्ता और जलवायु संकट को अलग-अलग समझने की भूल नहीं की जा सकती; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
वायु गुणवत्ता और जलवायु संकट को अलग-अलग समझने की भूल नहीं की जा सकती; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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  • डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा के मैदानों की धुंध और अमेजन के जंगलों की आग से उत्पन्न धुआं वायु प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य, कृषि और अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

  • वायु गुणवत्ता और जलवायु संकट को अलग-अलग समझने की भूल नहीं की जा सकती

  • 2024 में चीन में नियंत्रण उपायों से इसमें कमी आई है, लेकिन उत्तरी भारत में प्रदूषण के हॉटस्पॉट बने रहे हैं।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, हर साल वायु प्रदूषण से दुनिया में 45 लाख से ज्यादा लोगों की असमय मौत हो रही है

  • रिपोर्ट में वायु गुणवत्ता और जलवायु संकट के आपसी संबंध को उजागर करते हुए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

गंगा के मैदानी इलाकों की घनी धुंध हो या अमेजन के जंगलों में लगी आग से उठता धुआं, दोनों ही अब करोड़ों लोगों की सांसों पर सीधा हमला कर रहे हैं।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में साफ कहा है कि वायु गुणवत्ता और जलवायु संकट को अलग-अलग समझने की भूल नहीं की जा सकती। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं और एक-दूसरे को बढ़ा रहे हैं और इस दुष्चक्र का खामियाजा इंसानी सेहत, कृषि और अर्थव्यवस्था तीनों को भुगतना पड़ रहा है।

ऐसे में रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि इस समस्या को हल करने के लिए सभी को मिलकर हल करना होगा।

यह रिपोर्ट 'इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई' के मौके पर जारी की गई है, जिसे हर साल 7 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या और उससे निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।

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गंगा का मैदान: धुंध अब सिर्फ मौसम नहीं, प्रदूषण का संकेत

रिपोर्ट में गंगा के मैदानी इलाकों पर मंडराते संकट पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि यह मैदानी इलाकों 90 करोड़ से ज्यादा लोगों को पनाह देता है। यह दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले और कृषि प्रधान क्षेत्रों में से एक है।

चिंता की बात यह है कि हाल के वर्षों में यहां वायु प्रदूषण और सर्दियों में होने वाली धुंध (कोहरा) दोनों तेजी से बढ़े हैं। हालांकि यहां पहले सर्दियों में होने वाली धुंध मौसम का हिस्सा मानी जाती थी, लेकिन अब इसकी बढ़ती अवधि और बार-बार दिखने की वजह प्रदूषण से जुड़ गई है।

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वाहनों, निर्माण कार्यों, पराली जलाने और घरेलू ईंधन ने इस धुंध को जहरीला बना दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, अब धुंध सिर्फ मौसम का खेल नहीं रह गई, बल्कि यह इंसानी गतिविधियों से बिगड़ते पर्यावरण का साफ संकेत है। इससे निपटने के लिए जरूरी है कि पराली जलाने पर सख्ती की जाए और रसोई, रोशनी, हीटिंग और सार्वजनिक परिवहन में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाए।

दूर-दराज के शहरों तक पहुंचा अमेजन का धुआं

2024 में अमेजन के जंगल में लगी भीषण आग से निकले धुंए ने हजारों किलोमीटर दूर बसे शहरों की हवा खराब कर दी। इससे साफ है कि जंगल की आग केवल स्थानीय नहीं, बल्कि वैश्विक खतरा भी है। अमेजन, कनाडा और साइबेरिया जैसे क्षेत्रों की आग ने प्रदूषण के महीन कणों (पीएम2.5) के स्तर को रिकॉर्ड उंचाई पर पहुंचा दिया।

रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि वायु गुणवत्ता और जलवायु के बीच गहरा संबंध है। इसमें सूक्ष्म कणों (एरोसॉल्स) की भूमिका पर जोर दिया गया है, जो जंगलों की आग, सर्दियों की धुंध, जहाजों के धुंए और शहरी प्रदूषण में अहम हिस्सा निभाते हैं।

ऐसे में रिपोर्ट का कहना है कि इंसानों और पर्यावरण की सेहत को बचाने के साथ-साथ कृषि और अर्थव्यवस्था के नुकसान को रोकने के लिए बेहतर निगरानी तंत्र और एकीकृत नीतियां बेहद जरूरी हैं।

इस मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए डब्ल्यूएमओ की उप-महासचिव को बैरेट ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण किसी देश की सीमाएं नहीं मानता। भीषण गर्मी, सूखा और जंगलों में धधकती आग लाखों लोगों की सांसों पर भारी पड़ रही है। इसका सामना केवल अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निगरानी से ही किया जा सकता है।”

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मौतों और आर्थिक नुकसान का बड़ा कारण

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, हर साल वायु प्रदूषण से दुनिया में 45 लाख से ज्यादा लोगों की असमय मौत हो रही है। देखा जाए तो फेफड़ों की बीमारियों से लेकर हृदय रोग तक, यह बोझ स्वास्थ्य से आगे बढ़कर पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों पर पड़ रहा है।

एरोसॉल्स का खेल

रिपोर्ट में सूक्ष्म कणों की बढ़ती समस्या पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि उद्योग, परिवहन, खेती और जंगलों की आग से पैदा होने वाले यह सूक्ष्म कण सेहत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं।

2024 में चीन में नियंत्रण उपायों से इसमें कमी आई है, लेकिन उत्तरी भारत में प्रदूषण के हॉटस्पॉट बने रहे हैं। वहीं अमेजन, कनाडा और साइबेरिया में लगी आग ने स्थिति और बिगाड़ दी है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सूक्ष्म कण यानी एरोसॉल्स कभी वातावरण को ठंडा करते हैं तो कभी गर्म। काले कार्बन के यह कण बर्फ और ग्लेशियरों को पिघला रहे हैं, जबकि सल्फेट जैसे कण सूरज की रोशनी को रोके रखते हैं, लेकिन साथ ही अम्लीय वर्षा के खतरे को भी बढ़ा देते हैं।

जहाजों के ईंधन में बदलाव ने सल्फर तो कम किया है, जिससे अस्थमा के मामले घटे हैं और सेहत में सुधार आ रहा है, लेकिन साथ ही वातावरण की अस्थाई ठंडक भी कम हो गई, जिससे गर्मी बढ़ी है।

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जरूरी है वैश्विक निगरानी और एकीकृत नीतियां

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उपग्रह इसकी जानकारी तो देते हैं, लेकिन सही आकलन के लिए जमीन पर निगरानी तंत्र जरूरी है। विकासशील देशों में यह अभी भी बेहद कमजोर है, जिसे सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। 

डब्ल्यूएमओ की इस रिपोर्ट का सन्देश बेहद स्पष्ट है जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का चक्र बेहद खतरनाक है। एक और जहां जीवाश्म ईंधन और इंसानी गतिविधियां जलवायु संकट को बढ़ा रही हैं, तो दूसरी ओर यही प्रदूषण हमें बीमार बना रहा है। इनसे ब्लैक कार्बन, नाइट्रस ऑक्साइड और सतही ओजोन जैसे हानिकारक तत्व निकलते हैं, जो जलवायु संकट को और गहरा रहे हैं। यह एक खतरनाक दुष्चक्र में बदल गया है।

गंगा के मैदान की धुंध और अमेजन की आग, दोनों इस बात का सबूत हैं कि वायु प्रदूषण और जलवायु संकट मिलकर दुनिया के लिए सांसों का संकट पैदा कर रहे हैं। हमें समझना होगा कि यह किसी एक देश का मामला नहीं बल्कि पूरी मानवता पर मंडराता खतरा है। ऐसे में इसे रोकने के लिए न सिर्फ राष्ट्रीय, बल्कि वैश्विक स्तर पर एकीकृत नीतियों और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

डब्ल्यूएमओ की उप-महासचिव को बैरेट का भी इस बारे में कहना है, “जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण सीमाओं को नहीं मानते। इनसे लड़ाई के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निगरानी जरूरी है।”

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