विश्व मौसम संगठन की रिपोर्ट, भारत में स्वास्थ्य के साथ-साथ कृषि पैदावार पर असर डाल सकता है वायु प्रदूषण

भारत और चीन में किए परीक्षणों से पता चला है कि बेहद प्रदूषित क्षेत्रों में प्रदूषण के यह महीन कण फसलों की पैदावार को 15 फीसदी तक कम कर सकते हैं
कृषि भी कई तरह से प्रदूषण के इन महीन कणों में योगदान देती है। फसल अवशेषों को जलाने, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से भी प्रदूषण बढ़ता है; फोटो: आईस्टॉक
कृषि भी कई तरह से प्रदूषण के इन महीन कणों में योगदान देती है। फसल अवशेषों को जलाने, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से भी प्रदूषण बढ़ता है; फोटो: आईस्टॉक
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विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि जलवायु परिवर्तन, जंगलों में लगती आग और वायु प्रदूषण का दुष्चक्र इंसानी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। इतना ही नहीं यह कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।

डब्ल्यूएमओ द्वारा जारी ताजा वायु गुणवत्ता और जलवायु बुलेटिन में दुनिया भर के जंगलों में लगती आग की घटनाओं के साथ वायु प्रदूषण के फसलों पर पड़ते हानिकारक प्रभावों पर विशेष रूप से ध्यान दिया है। बता दें कि यह बुलेटिन विशेष रूप से सात सितम्बर को मनाए जाने वाले इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काइज के मौके पर जारी किया गया है।

बुलेटिन के मुताबिक खुली हवा में घुला जहर हर साल दुनिया भर में 45 लाख से अधिक जिंदगियों को असमय निगल रहा है। इतना ही नहीं यह अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर भी गहरी चोट कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण के यह महीन कण न केवल स्वास्थ्य बल्कि कृषि को भी प्रभावित कर रहे हैं।

परेशानी की बात है यह कण उन क्षेत्रों में फसलों की पैदावार को कम कर सकते हैं, जहां उपज लोगों का पेट भरने के लिए बेहद मायने रखती है। यह समस्या भारत, पाकिस्तान, चीन, मध्य अफ्रीका, और दक्षिण पूर्व एशिया में कहीं ज्यादा गंभीर है, जो इसके प्रमुख हॉटस्पॉट हैं।

भारत और चीन में किए परीक्षणों से पता चला है कि बेहद प्रदूषित क्षेत्रों में प्रदूषण के यह महीन कण फसलों की पैदावार को 15 फीसदी तक कम कर सकते हैं। यह पत्तियों तक पहुंचने वाली सूर्य की रोशनी को रोक देते हैं, साथ पत्तियों पर मौजूद छोटे-छोटे छिद्रों को अवरुद्ध कर देते हैं। यह छिद्र पौधों को कार्बन डाइऑक्साइड लेने और जल वाष्प छोड़ने में मदद करते हैं।

वहीं दूसरी तरफ कृषि भी कई तरह से प्रदूषण के इन महीन कणों में योगदान देती है। फसल अवशेषों को जलाने, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग, मिट्टी की जुताई, कटाई, तथा भंडारण और खाद के उपयोग जैसी गतिविधियों से यह कण और उनके अग्रदूत पैदा होते हैं।

ऐसे में बुलेटिन में इससे बचाव के व्यावहारिक समाधान भी प्रस्तुत किए गए हैं, जिसके तहत पीएम के स्रोतों से फसलों को बचाने के लिए पेड़ या झाड़ियां लगाना। इससे कार्बन को स्टोर करने में मदद मिलेगी साथ ही यह जैव विविधता के दृष्टिकोण से भी फायदेमंद होगा।

वायु गुणवत्ता और जलवायु के बीच है जटिल संबंध

अपनी इस नए बुलेटिन में डब्ल्यूएमओ ने वायु गुणवत्ता और जलवायु के बीच के जटिल संबंधों की भी पड़ताल की है। बता दें कि वायु गुणवत्ता में गिरावट की वजह बनने वाले केमिकल वही होते हैं जो ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन में भी योगदान देते हैं। ऐसे में इनमें से किसी एक में आने वाला बदलाव दूसरे में भी परिवर्तन की वजह बनता है।

रिपोर्ट के मुताबिक वायु गुणवत्ता पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत को भी प्रभावित करती है, क्योंकि हवा में घुला यह जहर पृथ्वी की सतह पर बस जाते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक नाइट्रोजन, सल्फर और ओजोन के जमाव से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं जैसे साफ पानी, और जैव विविधता पर असर पड़ता है। साथ ही इसकी वजह से कार्बन स्टोर करने की क्षमता भी घट जाती है।

इस बारे में डब्ल्यूएमओ के उप महासचिव को बैरेट का कहना है, "जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता एक दूसरे से जुड़े हैं और इन्हें एक साथ संबोधित किया जाना चाहिए। यह हमारे ग्रह, उसके लोगों और अर्थव्यवस्थाओं के स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है।"

को बैरेट के मुताबिक यह वायु गुणवत्ता और जलवायु बुलेटिन 2023 को कवर करता है, लेकिन 2024 के पहले आठ महीनों में, भी हमने वही रुझान देखे हैं। इस दौरान तेज गर्मी और लगातार पड़ते सूखे ने जंगल में लगने वाली आग और वायु प्रदूषण के जोखिम को बढ़ा दिया है। उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से इस तरह की घटनाएं बार-बार लगातार घट रही हैं। ऐसे में इनसे निपटने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में शोध की आवश्यकता है।

डब्ल्यूएमओ ने इस बुलेटिन में प्रदूषण के बेहद महीन कणों यानी पीएम 2.5 के बढ़ते खतरों को भी उजागर किया है। बता दें कि पार्टिकुलेट मैटर, प्रदूषण के बेहद महीन कण होते हैं जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। यह कण स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं, खासकर अगर लम्बे समय तक यदि हम इन कणों के संपर्क में रहें तो यह स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं।

यह कण आमतौर पर जीवाश्म ईंधन, जंगल में लगने वाली आग और रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल जैसे स्रोतों से पैदा होते हैं। डब्ल्यूएमओ ने जानकारी दी है कि उत्तरी अमेरिका के जंगल में लगी आग की वजह से 2003 से 2023 के औसत की तुलना में कहीं ज्यादा पीएम 2.5 के कण पैदा हुए थे। इसी तरह इंसानी और औद्योगिक गतिविधियों की वजह से बढ़ते प्रदूषण के चलते भारत में भी पीएम 2.5 का स्तर सामान्य से कहीं ज्यादा रहा।

वहीं इसके विपरीत चीन और यूरोप में इंसानी उत्सर्जन में गिरावट के कारण पीएम 2.5 के स्तर में भी कमी दर्ज की गई। बता दें कि 2021 में इस बुलेटिन के पहली बार प्रकाशित होने के बाद यह पहला मौका है जब इसमें कमी देखी गई है।

दुनिया भर में बढ़ रही आग लगने की घटनाएं

2023 में, उत्तर और दक्षिणी दोनों गोलार्धों में सक्रिय रूप से जंगल में आग की घटनाएं दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक इन घटनाओं के लिए कई कारण जिम्मेवार रहे, इनमें भूमि प्रबंधन और मानवीय गतिविधियां जैसे दुर्घटना या आगजनी शामिल थी। लेकिन कहीं न कहीं इन घटनाओं में अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन की भी भूमिका रही है, जो लू के कहर को बढ़ा रहा है।

इसकी वजह से न केवल लू की आवृति बल्कि तीव्रता भी बढ़ रही है। साथ ही सूखे की अवधि में भी इजाफा हो रहा है। यह परिस्थितियां जंगलों में लगने वाली आग के फैलने के लिए अनुकूल माहौल तैयार करती हैं। वहीं दूसरी तरफ आग की यह घटनाएं वायु गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।

इस बारे में बुलेटिन को संकलित करने वाले ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच नेटवर्क में डब्ल्यूएमओ के वैज्ञानिक डॉक्टर लोरेंजो लैब्राडोर का कहना है कि जंगल की आग से निकलने वाले धुएं में रसायनों का एक हानिकारक मिश्रण होता है जो न केवल वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसके साथ ही पौधों जैवविविधता और फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है। साथ ही यह वातावरण में बढ़ते कार्बन और ग्रीनहॉउस गैसों की भी वजह बनता है।

कनाडा के जंगलों में 2023 में लगी आग ने पिछले कुछ दशकों में सबसे ज्यादा क्षेत्र जलने का एक नया रिकॉर्ड बनाया है। कैनेडियन नेशनल फायर डेटाबेस के मुताबिक 2023 में 1990 से 2013 के औसत से सात गुणा अधिक क्षेत्र में फैले जंगलों को नुकसान पहुंचा है।

पश्चिमी कनाडा, जो असामान्य रूप से गर्म और सूखा था, वहां मई के पहले सप्ताह से सितंबर के अंत तक आग लगने की लगातार कई बड़ी घटनाएं सामने आई। इसकी वजह से पूर्वी कनाडा और उत्तर-पूर्वी अमेरिका में, विशेष रूप से न्यूयॉर्क में (जून की शुरुआत में) वायु गुणवत्ता खराब हो गई। इस आग से पैदा हुआ धुआं उत्तरी अटलांटिक महासागर से होते हुए दक्षिणी ग्रीनलैंड और पश्चिमी यूरोप तक पहुंच गया था। नतीजन प्रदूषण के महीन कण और कार्बन उत्सर्जन का स्तर पिछले 20 वर्षों के वार्षिक औसत से कहीं अधिक हो गया।

इसी तरह जनवरी और फरवरी 2023 में, मध्य और दक्षिणी चिली के जंगलों में भीषण आग लग गई। इसकी वजह से कम से कम 23 लोगों की मौत हो गई थी। इस दौरान आग की 400 से ज्यादा घटनाएं सामने आई, जिनमें से कई जानबूझकर लगाई गई थीं।

इस आग ने बागानों और जंगलों के बड़े क्षेत्रों को जला कर राख कर दिया। वहीं उच्च तापमान, तेज हवाओं के साथ लंबे समय तक चलने वाले सूखे ने आग में घी का काम किया था। इस दौरान राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचना प्रणाली ने पूरे क्षेत्र में सभी वायु प्रदूषकों के उच्च स्तर को दर्ज किया था।

इसकी वजह से कई निगरानी स्टेशनों पर ओजोन के दैनिक अल्पकालिक जोखिम में तेजी से वृद्धि हुई। स्थिति इस कदर बिगड़ गई कि चिली के अधिकारियों ने मध्य चिली के कुछ हिस्सों में पर्यावरण आपातकाल तक की घोषणा कर दी।

बुलेटिन के मुताबिक मध्य चिली में ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पीएम 2.5 के अवलोकन से पता चलता है कि गंभीर और लगातार सामने आने वाली दावाग्नि से वायु की गुणवत्ता को कितना नुकसान पहुंचता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण आम होता जा रहा है।

भारत में वायु गुणवत्ता से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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