दीपावाली आ चुकी है और दिल्ली-एनसीआर एक बार फिर सहम गए हैं। हरियाणा-पंजाब में पराली का जलाना शुरू हो चुका है और यहां की हवा लगातार खराब से बदतर होती जा रही है। लेकिन इस खराब होती हवा के क्या मायने हैं? दरअसल इसका सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। इस सरीज में पहला भाग जो यह बताता है कि शुरुआत दरअसल भ्रूण में पल रहे बच्चे की खराब सेहत से हो जाती है।
नवंबर महीने के शुरुआत में और मध्य अवधि में पड़ने वाली दीपावली के आस-पास दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों में मरीजों का तांता लग जाता है। डाउन टू अर्थ ने सरकारी अस्पतालों का दौरा किया और जो सच सामने आया वह डराने वाला है।
दिल्ली-एनसीआर की हवा का खराब होना दरअसल एक फिक्स पैटर्न की तरह है। अक्तूबर महीने से ही हवा की दशा-दिशा खराब होना शुरू हो जाती है। नवंबर तक यह जानलेवा बन जाती है। इस फिक्स पैटर्न को रोकने और थामने के लिए जो उपाय हैं वह अभी तक ठोस नहीं बने हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि खराब हवा सिर्फ दिल्ली-एनसीआर की चौहद्दी में ही नहीं बल्कि गंगा के मैदानी भाग वाले राज्यों में भी मौजूद है और दो तिहाई आबादी इसकी चपेट में है।
गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए आखिर वायु प्रदूषण सबसे बड़ा दुश्मन क्यों है? कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल में यह बात बार-बार सामने आई है कि वायु प्रदूषण न सिर्फ जन्म से पहले ही बच्चे को अपना शिकार बनाता है बल्कि उसकी शारीरिक बनावट में कई विसंगतियां पैदा कर देता है।
कैंसर जैसी गंभीर बीमारी न सिर्फ वयस्कों को बल्कि बच्चों को भी अपना शिकार बना रही है। इसका एक संबंध वायु प्रदूषण से भी है।
पंजाब और हरियाणा से पराली ज्यादा होने और उसे जलाने की एक वजह लंबी किस्म वाली धान प्रजाति है। हालांकि, पंजाब में बार-बार सरकार और कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से इस धान प्रजाति को बंद करने के लिए आवाज उठती रही है, हालांकि, किसान इस मोह को खत्म नहीं कर रहा है जानिए क्यों ?