भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के कारण बच्चों की सेहतभरी जिंदगी के साल लगातार कम होते जा रहे हैं। किसी भी आयु वर्ग के मुकाबले बच्चे इसके सबसे बड़े शिकार हैं। यह देश की आर्थिक और सामाजिक खुशहाली पर गहरी चोट कर रहा है। गर्भ में पल रहे बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं। जहरीली हवा के प्रभाव से न केवल जन्म के समय बच्चों में विकृतियां आ रही हैं, बल्कि इसके दीर्घकालिक असर ने उनका जीवन और भी कष्टमय बना दिया है। डाउन टू अर्थ ने हवा में बढ़ रहे इस जहर का बच्चों पर पड़ रहे प्रभाव की पड़ताल की। पहले भाग में आपने पढ़ा : गर्भ से ही हो जाती है संघर्ष की शुरुआत । दूसरे भाग में आपने पढ़ा : बच्चों पर भारी बीता नवंबर का महीना । अगली कड़ी में आपने पढ़ा - देश की दो-तिहाई आबादी प्रभावित । पढ़ें अगली कड़ी -
हेल्थ रिसर्च डेटाबेस, पबमेड पर “वायु प्रदूषण” और “बच्चे” शब्दों की खोज (सर्च) की जाए तो 7,684 परिणाम मिलते हैं, जबकि साइंस डायरेक्ट नामक डेटाबेस में सर्च करने पर 29,538 परिणाम मिलते हैं। इनमें से हर परिणाम दिलचस्प है, जो एक गंभीर तस्वीर दिखाता है कि बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव उनके गर्भधारण करने से पहले ही शुरू हो जाता है।
इसकी शुरुआत पुरुषों और महिलाओं की गर्भधारण करने की क्षमता पर इन प्रदूषकों के प्रभाव से होती है। शोध से पता चलता है कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से महिलाओं में डिम्बग्रंथि (ओवारियन) रिजर्व प्रभावित होता है। विभिन्न वायु प्रदूषक एंटी-मुलरियन हार्मोन (एएमएच) को कम करते हैं जो महिलाओं में डिम्बग्रंथि रिजर्व का सूचक है। डिम्बग्रंथि रिजर्व कम होने से गर्भधारण करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
एक फरवरी 2023 को जर्नल एनवायरमेंटल रिसर्च में प्रकाशित अपने पेपर में शोधकर्ताओं ने बताया कि पीएम के व्यास में कमी से प्रभाव बढ़ जाता है। विशेष रूप से पीएम 1, पीएम 2.5, पीएम 10 और एनओ 2 के लिए एएमएच का स्तर क्रमशः −8.8 प्रतिशत, −2.1 प्रतिशत और −4.5 प्रतिशत बदल गया। वायु प्रदूषण पुरुषों की प्रजनन प्रणाली पर भी प्रभाव डालता है।
चीन में 33,876 पुरुषों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि पीएम 2.5 और पीएम 10 या उससे कम पीएम के संपर्क में आने से शुक्राणु गतिशीलता में कमी आई है। इस अध्ययन के निष्कर्ष 17 फरवरी, 2022 को जेएएमए नेटवर्क्स जर्नल में प्रकाशित हुए थे।
यदि सभी बाधाओं के बावजूद गर्भाधान हो जाता है, तब भी वायु प्रदूषण गर्भाशय में ही बच्चे के विकास को बाधित कर सकता है, क्योंकि दूषित पदार्थ प्लेसेंटा को पार करके बच्चे तक पहुंच सकते हैं और बच्चे के विकास में बाधा डाल सकते हैं। जून 2017 में जर्नल ऑफ फैमिली एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि बच्चे के विकास को बनाए रखने वाले ऊतक ही विफल हो जाते हैं।
ईरान के शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था की पहली तिमाही में वायु प्रदूषण के संपर्क और गर्भनाल के वजन के बीच विपरीत संबंध पाया। द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययनों की एक व्यापक समीक्षा में गर्भनाल के रक्त में काले कार्बन कणों की उपस्थिति रिपोर्ट की गई, जो भ्रूण के यकृत, फेफड़े और मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं। प्रदूषक तत्वों की वजह से भ्रूण को इतना नुकसान पहुंचता है कि समय से पहले जन्म का खतरा बढ़ जाता है।
इसके परिणामस्वरूप बच्चा मृत पैदा हो सकता है। जन्म के समय शिशु का वजन कम हो सकता है। बच्चे के फेफड़े अविकसित रह सकते हैं या जन्म के दौरान या उसके तुरंत बाद बच्चे की मृत्यु की आशंका बढ़ सकती है। इतना ही नहीं, प्रसवपूर्व या प्रसव के तुरंत बाद वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले बच्चों में बौद्धिक क्षमता कम रह सकती है, विशेष रूप से याददाश्त की क्षमता कमजोर हो सकती है। उनकी सीखने, ध्यान और कार्य करने की क्षमता भी कम रह सकती है।
साथ ही दिमागी तौर पर बच्चे में कई कमजोरी सामने आ सकती है। जो प्रदूषक सबसे बड़ा खतरा हैं उनमें पीएम 2.5, एन 2 और पॉलीसाइक्लिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) है। यदि बच्चा इससे बच जाता है, तो जन्म से पहले और बाद में सेहत को बर्बाद कर सकता है। वयस्कों की तरह गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण बच्चे का रक्तचाप बढ़ सकता है।
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही के दौरान औसत पीएम 2.5 और ब्लैक कार्बन का जोखिम जितना अधिक होगा, नवजात शिशु का सिस्टोलिक रक्तचाप उतना अधिक होगा। इतना ही नहीं, गर्भाशय में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से शिशुओं में जन्मजात हृदय दोष हो सकता है और जीवित रहना मुश्किल हो सकता है।
वायु प्रदूषण से आंत का स्वास्थ्य भी खराब होता है। जीवन के पहले छह महीनों के दौरान सांस के जरिए शरीर में जाने वाले प्रदूषक आंत के रोगाणुओं पर विपरीत प्रभाव डालते हैं, जिससे एलर्जी, मोटापा और मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है, यहां तक कि मस्तिष्क के विकास पर भी असर पड़ सकता है। इससे भूख, इम्यूनिटी, मनोदशा प्रभावित होती है। साथ ही बच्चे अस्थमा, टाइप 2 मधुमेह और अन्य पुरानी बीमारियों का शिकार हो सकते हैं।
वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से गर्भ में पल रहे शिशु की प्रोटीन एक्टिविटी भी बदल सकती है। उदाहरण के लिए, 12 सितंबर को इटली के मिलान में यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी इंटरनेशनल कांग्रेस में प्रस्तुत एक अध्ययन के अनुसार, प्रदूषकों की वजह से ऑटोफैगी जैसी कोशिका प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, जो क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का स्वयं-भक्षण होता है, ऐसा आमतौर पर तनाव की प्रतिक्रिया में होता है।
उच्च एनओ 2 (नाइट्रोजन डाईऑक्साइड) के संपर्क में आने से एसआईआरटी1 के स्तर में कमी भी देखी गई। यह एक प्रोटीन है, जो तनाव प्रतिरोध, सूजन और उम्र बढ़ने में सुरक्षात्मक भूमिका निभाता है। वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से किशोरियों के प्रजनन स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। पीएम 2.5 और पीएम 10 के संपर्क में आने वाली किशोरियों में माहवारी समय से पहले शुरू हो सकती है।
भारत में बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव पर कुछ अध्ययन हुए हैं। जो सुझाव देते हैं कि हमें अपने प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। पबमेड सर्च में “वायु प्रदूषण”, “बच्चे” और “भारत” शब्दों की खोज करने से 242 परिणाम सामने आए। उनमें से अप्रैल 2022 में साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि पीएम 2.5 और शिशु, नवजात और प्रसव के तुरंत बाद मृत्यु दर के बीच संबंध हैं। अध्ययन इस बात का सबूत देता है कि पीएम 2.5 की वजह से नवजात मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर प्रभावित होती है।
दिल्ली में, जो दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है, 13-14 और 16-17 वर्ष के बच्चों में अस्थमा, श्वसन संबंधी दिक्कतें, एलर्जिक राइनाइटिस और एक्जिमा पाए गए, जबकि कोट्टायम और मैसूर जैसे स्वच्छ शहरों के किशोरों में बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) उच्च पाया गया।
बच्चों के स्वास्थ्य पर पीएम 2.5 के प्रभावों पर किए गए अपनी तरह के पहले अध्ययन में पाया गया कि भारत में पांच साल से कम उम्र बच्चों में पीएम 2.5 और जन्म के वक्त कम वजन (एलबीडब्ल्यू), अनीमिया, श्वसन संबंधी संक्रमण (एक्यूट रेस्पिरेटरी इंफेशन) के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है।
हाल ही में 31 अक्टूबर, 2023 को नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन “कम्युलेटिव इफेक्ट ऑफ पीएम 2.5 कंपोनेंटस इज लार्जर देन दी इफेक्ट ऑफ पीएम 2.5 मास ऑन चाइल्ड हेल्थ इन इंडिया” से पता चला है कि पीएम 2.5 में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की वृद्धि होने से भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में अस्थमा, श्वसन संक्रमण और एलबीडब्ल्यू में क्रमश: 10 प्रतिशत, 11 प्रतिशत व 5 प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है।
पीएम 2.5 कई अलग-अलग स्रोत से निकलने वाले प्रदूषकों का मिश्रण है। वायु प्रदूषण बच्चों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है और इससे बच्चों के बौना (स्टंटिंग) रहने की आशंका बढ़ जाती है।
जर्मनी के हीडलबर्ग विश्वविद्यालय और फ्रांस के रेनेस विश्वविद्यालय के जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल इकोनॉमिक्स एंड मिर्ज़ामिर में प्रकाशित अपने अध्ययन में इस बारे में स्पष्ट तौर पर बताया गया है। मई 2022 में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, यदि औसत प्रदूषण स्तर को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक तक कम कर दिया जाए, तो भारत में अविकसित और गंभीर रूप से अविकसित बच्चों में क्रमशः 10.4 और 5.17 प्रतिशत कमी आएगी।