पौधों और कवक का सहजीवन, टिकाऊ खेती की नई उम्मीद

आने वाले वर्षों में यह तकनीक खेती को रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता से मुक्त कर हमें एक टिकाऊ व सुरक्षित कृषि प्रणाली की ओर ले जाएगी।
मिट्टी में पाए जाने वाले अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुड़ जाते हैं। ये कवक पौधों को खनिज और पानी देते हैं और बदले में पौधों से कार्बन हासिल करते हैं।
मिट्टी में पाए जाने वाले अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुड़ जाते हैं। ये कवक पौधों को खनिज और पानी देते हैं और बदले में पौधों से कार्बन हासिल करते हैं।प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
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Summary
  • क्ले16 पेप्टाइड की खोज – वैज्ञानिकों ने पौधों की जड़ों से निकलने वाले क्ले16 अणु की पहचान की, जो पौधों और फायदेमंद कवकों के बीच सहजीवन बढ़ाता है।

  • कवकों का योगदान – अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों को पानी और फास्फोरस उपलब्ध कराते हैं, बदले में पौधे कार्बन देते हैं।

  • शोध में सफलता – क्ले16 की मौजूदगी से कवक ज्यादा समय तक सक्रिय रहते हैं और पौधों को बेहतर पोषण देते हैं।

  • खेती के फायदे – इस तकनीक से रासायनिक उर्वरकों की जरूरत कम होगी, फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ेगी।

  • टिकाऊ कृषि की दिशा – पौधों और कवकों का यह सहजीवन खेती को अधिक पर्यावरण-अनुकूल और स्थायी बना सकता है।

आज की दुनिया में खेती लगातार रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भर होती जा रही है। इससे जहां मिट्टी, पानी और हवा प्रदूषित हो रहे हैं, वहीं किसानों की लागत भी बढ़ रही है। लेकिन वैज्ञानिकों ने अब ऐसा रास्ता खोज लिया है, जिससे बिना रासायनिक उर्वरकों के भी अच्छी उपज मिल सकती है। यह रास्ता है पौधों और मिट्टी में रहने वाले फायदेमंद कवकों का सहजीवन।

शोध की बड़ी खोज

हाल ही में वैज्ञानिकों ने पौधों की जड़ों से निकलने वाले एक छोटे अणु की पहचान की है, जिसे क्ले16 पेप्टाइड कहा जाता है। यह अणु पौधों और फायदेमंद कवकों को एक-दूसरे के साथ अच्छा संबंध बनाने के लिए प्रेरित करता है। इस सहजीवी संबंध से पौधे पोषक तत्व, खासकर फास्फोरस और पानी, आसानी से हासिल कर सकते हैं।

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मिट्टी में पाए जाने वाले अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुड़ जाते हैं। ये कवक पौधों को खनिज और पानी देते हैं और बदले में पौधों से कार्बन हासिल करते हैं।

कैसे होता है यह सहजीवन?

मिट्टी में पाए जाने वाले अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुड़ जाते हैं। ये कवक पौधों को खनिज और पानी देते हैं और बदले में पौधों से कार्बन हासिल करते हैं। इस आदान-प्रदान को आर्बस्क्यूल्स नामक छोटे ढांचे पूरा करते हैं, जो कवक पौधों की जड़ों के अंदर बनाते हैं। लगभग 80 फीसदी पौधों की प्रजातियां इस तरह कवकों से जुड़कर पोषण प्राप्त करने में सक्षम हैं।

प्रयोग से मिला नया प्रमाण

प्रोसीडिंग्स ऑफ दि नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में शोधकर्ताओं ने मेडिकागो ट्रंकैटुला नामक पौधे और कवक को साथ में उगाकर यह प्रक्रिया देखी। पाया गया कि जब मिट्टी में अतिरिक्त क्ले16 डाला गया, तो कवक ज्यादा समय तक सक्रिय रहे और पौधों की जड़ों को अधिक पोषण देने लगे। यह एक स्व-प्रवर्धित चक्र बन गया। जितना ज्यादा कवक फैला, उतना ज्यादा पौधा क्ले16 बनाता रहा और यह चक्र खेती के लिए फायदेमंद साबित हुआ।

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मिट्टी में पाए जाने वाले अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुड़ जाते हैं। ये कवक पौधों को खनिज और पानी देते हैं और बदले में पौधों से कार्बन हासिल करते हैं।

पौधों की प्रतिरक्षा और सहजीवन

आम तौर पर पौधे तनाव की स्थिति में अपनी प्रतिरक्षा बढ़ा लेते हैं, जिससे वे कवकों को अपने अंदर जगह नहीं देते। लेकिन क्ले16 पेप्टाइड पौधों की इस प्रतिरक्षा को संतुलित कर देता है। इससे पौधे कवकों को अपनाते हैं और दोनों के बीच पोषण का आदान-प्रदान सुचारु रूप से चलता रहता है।

खास बात यह है कि कई कवक खुद भी क्ले16 जैसे अणु बनाते हैं। ये अणु पौधों को धोखा देकर उन्हें अपनाने पर मजबूर कर देते हैं। नतीजा यह होता है कि सहजीवन और मजबूत होता है।

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मिट्टी में पाए जाने वाले अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुड़ जाते हैं। ये कवक पौधों को खनिज और पानी देते हैं और बदले में पौधों से कार्बन हासिल करते हैं।

खेती के लिए फायदे

यह खोज खेती के लिए कई तरह से फायदेमंद है, इसमें रासायनिक उर्वरकों की जरूरत कम पड़ेगी। फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ेगी। कीटनाशकों का उपयोग घटेगा, क्योंकि कवक प्राकृतिक सुरक्षा देते हैं।

मिट्टी की सेहत सुधरेगी और वह लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहेगी। सोया, गेहूं और मक्का जैसी अहम फसलें भी इससे लाभान्वित हो सकती हैं।

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मिट्टी में पाए जाने वाले अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुड़ जाते हैं। ये कवक पौधों को खनिज और पानी देते हैं और बदले में पौधों से कार्बन हासिल करते हैं।

टिकाऊ कृषि की दिशा में एक अहम पड़ाव

यह शोध दिखाता है कि अगर हम पौधों और कवकों के प्राकृतिक संबंध को मजबूत करें, तो खेती को जैविक और पर्यावरण के अनुकूल बनाया जा सकता है। आने वाले समय में क्ले16 पेप्टाइड या कवक-आधारित सप्लीमेंट्स प्राकृतिक उर्वरक का काम कर सकते हैं। इससे न केवल किसानों को फायदा होगा बल्कि धरती को भी प्रदूषण से बचाया जा सकेगा

पौधों और कवक का यह सहजीवी रिश्ता आधुनिक खेती के लिए नई उम्मीद लेकर आया है। यह रिश्ता फसलों को बेहतर पोषण, मिट्टी को मजबूती और किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन दे सकता है। आने वाले वर्षों में यह तकनीक खेती को रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता से मुक्त कर सकती है और हमें एक टिकाऊ व सुरक्षित कृषि प्रणाली की ओर ले जाएगी।

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