खेती से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैस से निपटने का वैज्ञानिकों ने सुझाया उपाय

ग्रीनहाउस गैसों में से एक मानवजनित नाइट्रस ऑक्साइड का लगभग 70 फीसदी खेती की जमीन से आता है, इसलिए उन उत्सर्जनों को रोकने के तरीके खोजना बहुत जरूरी हो गया है।
खेती की जमीन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने से हमें दुनिया भर में जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिल सकती है।
खेती की जमीन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने से हमें दुनिया भर में जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिल सकती है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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किसान पैदावार बढ़ाने के लिए फसलों में नाइट्रोजन की खाद डालते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा अनाज पैदा हो सके और लोगों की भूख मिटाई जा सके। लेकिन जब फसल की क्षमता से अधिक उर्वरक डाला जाता है, तो कुछ अतिरिक्त उर्वरक गैसीय रूपों में बदल जाते हैं। जिसमें नाइट्रस ऑक्साइड भी शामिल है, जो एक ग्रीनहाउस गैस है। मानवजनित नाइट्रस ऑक्साइड का लगभग 70 फीसदी खेती की जमीन से आता है, इसलिए इस तरह के उत्सर्जनों को रोकने के तरीके खोजना बहुत जरूरी हो गया है।

खेती की मिट्टी से नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की सिफारिश करने से पहले, वैज्ञानिक यह पक्का करना चाहते हैं कि वे कहां से और कब उत्सर्जित होते हैं। मिट्टी के उत्सर्जन का नमूना लेना अत्यधिक मेहनत वाला और महंगा है, इसलिए अधिकतर अध्ययनों ने स्थान और समय के आधार पर गहना से नमूने लेने का प्रयास नहीं किया जाता है।

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खेती की जमीन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने से हमें दुनिया भर में जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिल सकती है।

शोध के मुताबिक, इलिनोइस विश्वविद्यालय के इस नए अध्ययन में कई सालों तक व्यावहारिक प्रबंधन परिदृश्यों के तहत व्यावसायिक मक्का और सोयाबीन के खेतों से नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का गहना से नमूना लेकर इसे बदलने की कोशिश की गई। यह डेटासेट न केवल इसे कम करने से संबंधी सिफारिशों की ओर ले जा सकता है, बल्कि यह हमारे वैश्विक भविष्य का पूर्वानुमान लगाने वाले जलवायु मॉडल में भी सुधार कर सकता है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि खेती की जमीन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने से हमें दुनिया भर में जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिल सकती है। अच्छी तरह से अपनाई गई कम करने की रणनीतियों को स्थापित करने के लिए स्थानीय व बड़े पैमाने पर कई सालों के आंकड़ों की जरूरत पड़ती है, जबकि अध्ययन में पहले से ये डेटासेट मौजूद ही नहीं थे।

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शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने खेत में नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए अब तक का सबसे व्यापक डेटासेट तैयार किया है। उन्होंने पारंपरिक, संरक्षण और बिना जुताई प्रबंधन के तहत व्यावसायिक मकई और सोयाबीन के खेतों में गैस के नमूने वाली जगहों का एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया है।

एक खेत में छोटे-छोटे ग्राउंड-लेवल स्मोकस्टैक लगे हैं जो मिट्टी से गैसों को बाहर निकालते हैं। शोधकर्ता दो साल तक पूरे मौसम में साप्ताहिक या द्विवार्षिक रूप से उन गैसों की मात्रा को मापने के लिए मशीनों के साथ गए। लगातार बहुत ज्यादा मात्रा वाली गैसों को बाहर निकालने वाले स्मोकस्टैक को हॉट स्पॉट कहा जाता था। गरम पल या हॉट मोमेंट तब होते हैं जब बारिश या उर्वरक के उपयोग जैसी घटनाओं के बाद अधिकतर या सभी स्मोकस्टैक में इनकी मात्रा बढ़ जाती है।

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एग्रीकल्चर, इकोसिस्टम एंड एनवायरनमेंट नामक जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड का प्रवाह अलग-अलग खेतों, जगहों और सालों में, या यहां तक कि मकई और सोयाबीन की फसलों के बीच भी समान था। ये परिणाम बताते हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन लगातार जारी है और स्थानीय नमूनाकरण हो सकता है क्षेत्र-व्यापी प्रवाह का अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त है।

दूसरी ओर नाइट्रस ऑक्साइड बिल्कुल भी समान नहीं था। न केवल एक विशेष स्मोकस्टैक पर नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा एक नमूना सत्र से अगले तक बदल गई, बल्कि शोधकर्ताओं ने पाया कि वे यह अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि किसी भी तिथि पर उन्हें खेत में कहां-कहां गर्म जगहें मिलेंगी।

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स्थानीय और समय के हिसाब से, नाइट्रस ऑक्साइड बहुत ज्यादा परिवर्तनशील थीं। एक दिन, पहले बिंदु पर गर्म क्षण होता और फिर अगले माप में, दूसरे बिंदु या अन्य पर गर्म क्षण मिलते हैं।

यह खोज बहुत अहम है क्योंकि यदि पिछले अध्ययनों ने केवल कुछ जगहों या कुछ तिथियों पर ही नमूना लिया होता, तो नाइट्रस ऑक्साइड प्रवाह के उनके अनुमान बहुत गलत हो सकते थे। ये माप वैश्विक जलवायु मॉडल को जानकारी दे सकते हैं जो हमें बताते हैं कि हम कितनी जल्दी एक अहम टिपिंग पॉइंट पर पहुंचेंगे, इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि वे यथासंभव सटीक हों।

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शोध के परिणामों से यह भी पता चला कि प्रबंधन और फसल प्रणाली ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कैसे प्रभावित करती है। मकई और सोयाबीन के लिए कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन समान था, संरक्षण और बिना जुताई के, लेकिन पारम्परिक जुताई और निरंतर मकई में भारी मात्रा देखी गई। दूसरी ओर संरक्षण और बिना जुताई के तहत मकई में नाइट्रस ऑक्साइड सोयाबीन की तुलना में कहीं अधिक उत्सर्जित हुआ और जुताई के दौरान मकई में लगातार अधिक उत्सर्जन देखा गया।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इस बात का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि नाइट्रस ऑक्साइड कहां और कब बढ़ेगी, लेकिन शोधकर्ता जानते हैं कि प्रबंधन एक अंतर पैदा करता है। लगातार मकई में किसानों को भारी मात्रा में नाइट्रोजन उर्वरक डालना पड़ता है, जो नाइट्रस ऑक्साइड में बदल जाता है। पारंपरिक जुताई के तहत मिट्टी की सतह को रोकती है और गैस छोड़ती है। शोधकर्ता ने बताया कि इससे कैसे निपटा जा सकता है यह उन्हें पता है।

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