ऐसे लगेगी लगाम शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस कही जाने वाली नाइट्रस ऑक्साइड पर

अध्ययन के मुताबिक नाइट्रेट को परिवर्तित करने में तथा इसके नदियों के तल में पहुंचने की गति जितनी अधिक होती है, उतना ही कम नाइट्रस ऑक्साइड निकलती है
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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दुनिया भर में नदियां और नाले वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड पहुंचाने के स्रोतों में से एक हैं। हालांकि नाइट्रोजन मानवजनित कारणों से नदियों और नालों तक पहुंचती है। नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 300 गुणा तापमान को बढ़ाने की क्षमता है। खेतों से पानी के साथ उर्वरक बहने के कारण, भारी मात्रा में नदियों और नालों में नाइट्रोजन धुल रही है। जहां सूक्ष्म जीव नाइट्रोजन को एन2ओ में तोड़ देते हैं, जिससे यह नदियों से वायुमंडल में पहुंच जाती है।

नदियां अंत में नाइट्रोजन के साथ समुद्र में मिल जाती है। लेकिन अब तक, वैज्ञानिकों के पास इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं है कि यह प्रक्रिया कैसे काम करती है बहने के दौरान कितना हिस्सा एन2ओ के रूप में वायुमंडल में पहुंच जाता है या एन2ओ के उत्सर्जन को कम करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के प्रोफेसर मैथ्यू विन्निक कहते हैं लोगों द्वारा नाइट्रोजन चक्र के मौलिक रूप को बदला जा रहा है। हमने इसमें भी बदलाव कर दिया है कि नाइट्रोजन वातावरण के माध्यम से कैसे इधर-उधर पहुंचती है। इस परिवर्तन में से अधिकांश का श्रेय कृषि क्षेत्रों में फैले नाइट्रोजन युक्त रासायनिक उर्वरकों की भारी मात्रा को जाता है। कृषि क्षेत्रों से बारिश होने पर यह नदियों और नालों में बह जाता हैं, और नाइट्रेट में परिवर्तित हो जाता है।

वैज्ञानिकों को इस बात की जानकारी है कि मिट्टी और बहाव में सूक्ष्म जीव नाइट्रोजन को हटाते है जिसे 'डीनाइट्रिफिकेशन प्रक्रिया' कहा जाता है। इस प्रक्रिया में जिससे नाइट्रेट या तो हानि नहीं पहुंचाने वाले डायनाइट्रोजन में परिवर्तित हो जाती है। लेकिन बदलने की इन प्रक्रियाओं का तरीका एक रहस्य बना हुआ है, जैसा कि एन 2ओ के उत्सर्जन अनुमानों की विस्तृत श्रृंखला से प्रमाणित होता है। इसके बहाव के चलते इसका वैश्विक उत्सर्जन .5 फीसदी से 10 फीसदी के बीच सालाना माना गया है।

विन्निक ने कहा उनके इस नए प्रयोग में एक बड़े प्रयोगात्मक डेटासेट को फिर से देखना था जिसने रासायनिक प्रतिक्रिया मॉडल का उपयोग करके पूरे अमेरिका में 72 नदियों, नालों में एन2ओ की मात्रा निर्धारित की। जो इस बात का पता लगाता है कि एक नदी प्रणाली या स्ट्रीम सिस्टम के माध्यम से नाइट्रोजन कैसे परिवर्तित होता है। स्ट्रीम टर्बुलेंस मॉडल जो इसे कैप्चर करता है एक यांत्रिक बल कैसे नदी नाइट्रेट को धारा के तल तक पहुंचाती है, जहां इसका विनाइट्रीकरण होता है।

इस नए गठजोड़ में एक उच्च रेजलूशन मॉडल के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया मॉडल को जोड़ते हैं। विन्निक ने बताया कि जिससे यह देखा जा सकता है कि कैसे नाइट्रेट धारा से प्रवाहित हुआ।

इससे पता चला है कि कैसे यह प्रभावी रूप से एन2ओ के उत्पादन को निर्धारित करता है। इसे 'डीनाइट्रिफिकेशन  दक्षता' या नाइट्रेट के हिस्से, जो स्ट्रीमबेड या नदियों के तल में चले जाते हैं। इस तरह यह डीनाइट्रिफिकेशन  प्रक्रिया में विभिन्न प्रतिक्रियाओं से होकर गुजरता है। नाइट्रेट को परिवर्तित करने में इसके नदियों के तल में पहुंचने की गति जितनी अधिक होती है, उतना ही कम एन2ओ निकलती है। लेकिन जहां विनाइट्रीकरण करने की क्षमता कम होती है वहां तुलनात्मक रूप से एन2ओ उत्सर्जन का स्तर बहुत अधिक पाया गया है।

इसके अलावा, जिस धारा में नाइट्रेट पहुच जाता है उसका तल भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। छोटे अनोक्सिक जोन या कम ऑक्सीजन वाली जगहों से संबंधित नदियों के तल भी एन2ओ के निकलने को रोकने में मदद करते हैं। यह अध्ययन एजीयू एडवांस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

विन्निक ने कहा कि नाइट्रोजन चक्र की यह नई समझ जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों में मदद कर सकती है। उन्होंने कहा कि मानवजनित नाइट्रोजन से निपटने के लिए नदियों, धाराओं की क्षमता बढ़ाने से आनुपातिक एन2ओ उत्सर्जन भी कम हो सकता है।

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