जान लेने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में 52 फीसदी तक ऐसे हो सकती है कटौती

नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती से वायु प्रदूषण कम होगा, 8,17,000 असामयिक मौतों को रोका जा सकेगा, जमीनी स्तर पर ओजोन की मात्रा भी कम होगी और फसल की पैदावार के नुकसान में भी कमी आएगी।
अध्ययन से पता चलता है कि 2050 तक, दुनिया भर में नाइट्रोजन प्रबंधन से 2015 के स्तर की तुलना में अमोनिया को 40 फीसदी और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन को 52 फीसदी तक कम कर सकते हैं।
अध्ययन से पता चलता है कि 2050 तक, दुनिया भर में नाइट्रोजन प्रबंधन से 2015 के स्तर की तुलना में अमोनिया को 40 फीसदी और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन को 52 फीसदी तक कम कर सकते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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पृथ्वी का नाइट्रोजन चक्र अपनी सीमाओं को पार करने की जद में है। खेती और जीवाश्म ईंधन के जलने से अमोनिया (एनएच3), नाइट्रोजन ऑक्साइड (नॉक्स ) और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) जैसे नाइट्रोजन प्रदूषक निकलते हैं, जो वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं

ये प्रदूषक लोगों के स्वास्थ्य, फसलों और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। दुनिया भर में ऊर्जा और भोजन की बढ़ती मांग को देखते हुए, इस नुकसान के और भी बढ़ने के आसार जताए गए हैं।

हवा की गुणवत्ता में सुधार और पारिस्थितिकी तंत्र पर असर को कम करने के लिए नाइट्रोजन प्रदूषण को कम करने की तकनीकों और नीतियों या "नाइट्रोजन हस्तक्षेप" की क्षमता के बारे में कम ही पता लगाया गया है।

पारंपरिक नाइट्रोजन बजट शोध, जो हवा, पानी और मिट्टी में नाइट्रोजन के प्रवाह पर नजर रखता है, लेकिन जैव-रासायनिक बदलावों पर विस्तार से जानकारी नहीं देता है और पृथ्वी विज्ञान अनुसंधान, जो इन बदलावों को मॉडल करता है, लेकिन आमतौर पर एक ही पर्यावरणीय माध्यम पर गौर करता है, इसके बीच एक कमी है।

इस जानकारी की कमी को दूर करने के लिए, एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने कई तरीकों को मिलाकर इसका मूल्यांकन किया, कैसे नाइट्रोजन हस्तक्षेप वायु की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है और नाइट्रोजन जमाव को कम कर सकता है।

साइंस एडवांसेज में प्रकाशित उनके अध्ययन में पाया गया कि ईंधन के जलने की स्थिति में सुधार, खेती में नाइट्रोजन का कुशलता से उपयोग करना और भोजन के नुकसान और बर्बादी को कम करने जैसे कार्य, वायु प्रदूषण, फसलों का नुकसान और पारिस्थितिकी तंत्र के खतरों के कारण होने वाली असामयिक मौतों को काफी हद तक कम कर सकते हैं।

जबकि आमतौर पर वायु या जल गुणवत्ता जैसे लक्ष्यों के लिए विचार किया जाता है, नाइट्रोजन प्रबंधन से होने वाले फायदों को पहचानना भविष्य की नीति बनाने और प्रदूषण नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है।

शोध के हवाले से पेकिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ता ने कहा कि भावी नाइट्रोजन नीति परिदृश्यों को एक साथ जोड़कर उनका मूल्यांकन मॉडल, वायु गुणवत्ता मॉडल और उपयोग संबंधों के साथ मिलाकर एक मूल्यांकन ढांचा स्थापित किया है, ताकि यह आकलन किया जा सके कि महत्वाकांक्षी उपाय विस्तृत भौगोलिक स्तरों पर वायु प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान को कम किया जा सके।

अध्ययन से पता चलता है कि 2050 तक, दुनिया भर में नाइट्रोजन प्रबंधन से 2015 के स्तर की तुलना में अमोनिया को 40 फीसदी और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन को 52 फीसदी तक कम कर सकते हैं। इससे वायु प्रदूषण कम होगा, 8,17,000 असामयिक मौतों को रोका जा सकेगा, जमीनी स्तर पर ओजोन की मात्रा भी कम होगी और फसल की पैदावार के नुकसान में भी कमी आएगी।

इन हस्तक्षेपों के बिना, 2050 तक पर्यावरणीय नुकसान और भी बदतर हो जाएगा, जिसमें अफ्रीका और एशिया सबसे अधिक प्रभावित होंगे। दूसरी ओर, अगर उन उपायों को लागू किया जाता है, तो अफ्रीका और एशिया को उनसे सबसे अधिक फायदा होगा।

शोध में कहा गया है कि नाइट्रोजन के हस्तक्षेप से समय के साथ इसके फायदे बढ़ते जाएंगे, जो 2030 की तुलना में 2050 तक अधिक प्रभाव डालते हैं। पूर्वी और दक्षिण एशिया में अमोनिया और नाइट्रोजन ऑक्साइड में सबसे बड़ी कमी आने की उम्मीद है, मुख्य रूप से औद्योगिक क्षेत्रों में बेहतर फसल पद्धतियों और तकनीकों को अपनाने से ये संभव है।

शोध में कहा गया है कि इस तरह की कटौती वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद करेगी, जिससे कई क्षेत्रों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतरिम लक्ष्यों को हासिल करना आसान हो जाएगा। इसके अतिरिक्त, जैसे-जैसे आबादी बढ़ेगी, खासकर विकासशील क्षेत्रों में इन हस्तक्षेपों से स्वास्थ्य के लिए फायदे बढ़ेंगे।

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