कॉप16 रियाद: भारत सहित 32 देशों में कृषि खाद्य प्रणालियों को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए शुरू हुई नई पहल

इसका उद्देश्य खेतों से लेकर खाने के टेबल तक वैश्विक कृषि खाद्य प्रणालियों में व्यापक बदलाव करना है, ताकि उन्हें पर्यावरण और जलवायु अनुकूल बनाया जा सके
कृषि खाद्य प्रणालियां लोगों और ग्रह के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों से निपटने के लिए बेहद मायने रखती हैं; फोटो: आईस्टॉक
कृषि खाद्य प्रणालियां लोगों और ग्रह के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों से निपटने के लिए बेहद मायने रखती हैं; फोटो: आईस्टॉक
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कृषि खाद्य प्रणालियों को पर्यावरण और जलवायु अनुकूल बनाने के लिए एक नया कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य वैश्विक कृषि खाद्य प्रणालियों में खेतों से लेकर खाने के टेबल तक बदलाव करना है, ताकि उन्हें सतत, पर्यावरण अनुकूल, समावेशी और प्रदूषण मुक्त बनाने के साथ-साथ जलवायु में आते बदलावों का सामना करने के भी काबिल बनाया जा सके।

इस कार्यक्रम की शुरूआत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) और अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी) द्वारा की गई है।

इस कार्यक्रम का शुभारम्भ कॉप-16 के दौरान कृषि खाद्य प्रणाली दिवस पर किया गया है। ग्लोबल एनवायरमेंट फेसिलिटी द्वारा वित्तपोषित यह पहल 32 देशों में सतत और जलवायु अनुकूल कृषि के साथ-साथ मवेशियों को समर्थन देने पर ध्यान केंद्रित करेगी।

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गौरतलब है कि मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के संगठन (यूएनसीसीडी) की अगुवाई में दुनिया भर के नेता चर्चा के लिए सऊदी अरब के रियाद शहर में एकजुट हो चुके हैं।

कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज के इस 16वें सत्र (कॉप-16) में भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट, क्षरण और मरुस्थलीकरण जैसे विषयों पर चर्चा की जाएगी। यह सत्र सोमवार दो दिसम्बर को शुरू होकर, 13 दिसम्बर तक चलेगा।

बता दें कि इस पहल के तहत जमीन, जलवायु और जैव विविधता की रक्षा के लिए ग्लोबल एनवायरनमेंट फेसिलिटी द्वारा 28.2 करोड़ डॉलर की मदद की जाएगी। साथ ही सह-वित्तपोषण की मदद से 180 करोड़ डॉलर जुटाए जाएंगे। इससे खाद्य सुरक्षा, पोषण और रोजगार में भी सुधार होगा।

इसके तहत जिन चार क्षेत्रों में ध्यान केंद्रित किया जाएगा, उनमें फसलें (जैसे मक्का, चावल और गेहूं), कमोडिटीज (जैसे कोको, पाम ऑयल और सोया), पशुधन और जलीय कृषि शामिल हैं।

यह पहल जिन 32 देशों की मदद करेगी, उनमें भारत के साथ-साथ अंगोला, अर्जेंटीना, बेनिन, भूटान, बुर्किना फासो, चाड, चिली, चीन, कोस्टा रिका, इक्वाडोर, इस्वातिनी, इथियोपिया, घाना, ग्रेनेडा, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान, केन्या, मलेशिया, मैक्सिको, नामीबिया, नाउरू, नाइजीरिया, पाकिस्तान, पेरू, फिलीपींस, सोलोमन द्वीप, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, तंजानिया, तुर्किये और युगांडा शामिल हैं।

कृषि में पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं पर दिया जाएगा जोर

एफएओ द्वारा साझा जानकारी से पता चला है कि यह पहल देशों और समुदायों की प्रमुख खाद्य क्षेत्रों के लिए नीतियां, खेती के तौर-तरीकों और निवेश योजनाओं को बेहतर बनाने में मदद करेगी।

इसका उद्देश्य पशुधन और धान की खेतों से हो रहे मीथेन उत्सर्जन को कम करना है। यह पशुधन और ताड़ के तेल के लिए हो रहे वन विनाश को रोकने में मदद करेगा। साथ ही प्रोटीन और आय के बेहतर विकल्प के रूप में जलीय कृषि को बढ़ावा देगा।

इतना ही नहीं इसके तहत गेहूं और मक्का जैसे फसलों को उगाने के लिए सतत भूमि उपयोग का समर्थन करेगा। इस कार्यक्रम के तहत पर्यावरण संरक्षण और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं पर भी जोर दिया जाएगा।

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यह कार्यक्रम ऐसे समय में लाया गया है, जब हाल ही में सम्पन्न हुए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मेलनों में खाद्य और कृषि की भूमिका पर दुनिया का ध्यान गया है। इनमें जैव विविधता को बचाने के लिए सम्पन्न हुआ सीबीडी कॉप16 और उसमें जारी एग्री-एनबीएसएपी पहल और जलवायु के लिए यूएनएफसीसीसी कॉप 29 में शुरू हुई हार्मोनिया पहल शामिल हैं।

इन तीनों कॉप में वित्तपोषण को लेकर बहुत ज्यादा चर्चा हुई है। आंकड़ों के मुताबिक कृषि खाद्य प्रणालियों को 2019/20 में वैश्विक जलवायु वित्त के पांच फीसदी से कम और 2022 में जलवायु-संबंधी विकास निधि का 23 फीसदी मिला, जो पिछले दशक से 37 फीसदी की कमी को उजागर करता है।

वैश्विक समन्वय परियोजना अगले वर्ष 32 देशों में परियोजनाओं को डिजाइन करने और लॉन्च करने का समर्थन करेगी। यह नीति, निजी निवेश, भूमि उपयोग, नवाचार और ज्ञान साझाकरण पर केंद्रित वैश्विक केंद्र स्थापित करेगी। ये केंद्र अकेले व्यक्तिगत परियोजनाओं की तुलना में अधिक प्रभाव डालने के लिए मिलकर काम करेंगे।

एफएओ के महानिदेशक क्यू डोंग्यू ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है, "कृषि खाद्य प्रणालियां लोगों और ग्रह के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों से निपटने के लिए बेहद मायने रखती हैं।" हम कृषि खाद्य प्रणालियों को बदले बिना ग्लोबल बायोडाइवर्सिटी फ्रेमवर्क, पेरिस समझौते या एसडीजी के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकते।

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