विश्व मधुमक्खी दिवस: 75 फीसदी से अधिक फसलों के परागण के लिए जिम्मेवार हैं पॉलिनेटर

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया की लगभग 90 फीसदी जंगली फूलदार पौधों की प्रजातियां पूरी तरह से या आंशिक रूप से जीवों के परागण पर निर्भर हैं
लेकिन सबसे बड़ी चिंता के बात यह है कि मधुमक्खियां खतरे में हैं, मानवजनित प्रभावों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है।
लेकिन सबसे बड़ी चिंता के बात यह है कि मधुमक्खियां खतरे में हैं, मानवजनित प्रभावों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स
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हर साल 20 मई को दुनिया भर में विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जाता है। यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को जीवित रखने और हमारी भोजन आपूर्ति में मधुमक्खियों और अन्य परागणकों की अहम भूमिका को पहचानने का एक वैश्विक आह्वान है।

इस साल का विषय "प्रकृति से प्रेरित मधुमक्खियां हम सभी का पोषण करती हैं" है और इसे संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा निर्धारित किया गया है। यह खाद्य सुरक्षा, पोषण और जैव विविधता में उनकी अनोखी भूमिका पर जोर देता है।

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लेकिन सबसे बड़ी चिंता के बात यह है कि मधुमक्खियां खतरे में हैं, मानवजनित प्रभावों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है।

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, परागणकर्ता दुनिया की 75 फीसदी से अधिक खाद्य फसलों के प्रजनन के लिए जिम्मेवार हैं। इसमें हमारे रोजमर्रा के जीवन के मुख्य खाद्य पदार्थ शामिल हैं, लेकिन जबकि वे कृषि उत्पादकता में अरबों डॉलर का योगदान करते हैं, ये छोटे चमत्कारी कार्यकर्ता खतरे में हैं।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया की लगभग 90 फीसदी जंगली फूलदार पौधों की प्रजातियां पूरी तरह से या कम से आंशिक रूप से जीवों के परागण पर निर्भर हैं, दुनिया भर की कृषि भूमि का 35 फीसदी हिस्सा जीवों के परागण पर निर्भर है। परागणकर्ता न केवल खाद्य सुरक्षा में सीधे योगदान करते हैं, बल्कि वे जैव विविधता के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं

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लेकिन सबसे बड़ी चिंता के बात यह है कि मधुमक्खियां खतरे में हैं, मानवजनित प्रभावों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है।

मधुमक्खियां और अन्य परागणकर्ता पर्यावरणीय स्वास्थ्य के संकेतक के रूप में भी काम करते हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। परागणकर्ताओं की सुरक्षा से जैव विविधता और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में भी वृद्धि होती है, जैसे मिट्टी की उर्वरता, कीट नियंत्रण और वायु और जल विनियमन।

कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी और एकीकृत कीट प्रबंधन जैसी प्रकृति-अनुकूल कृषि पद्धतियां परागणकों को बनाए रखने, स्थिर फसल पैदावार सुनिश्चित करने और खाद्यान्न की कमी और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में मदद करती हैं।

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लेकिन सबसे बड़ी चिंता के बात यह है कि मधुमक्खियां खतरे में हैं, मानवजनित प्रभावों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है।

लेकिन सबसे बड़ी चिंता के बात यह है कि मधुमक्खियां खतरे में हैं। वर्तमान में प्रजातियों के विलुप्त होने की दर मानवजनित प्रभावों के कारण सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है। लगभग 35 प्रतिशत अकशेरुकी परागणकर्ता, विशेष रूप से मधुमक्खियां और तितलियां और लगभग 17 प्रतिशत कशेरुकी परागणकर्ता, जैसे चमगादड़, दुनिया भर में विलुप्त होने का सामना कर रहे हैं।

यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो पौष्टिक फसलें, जैसे कि फल, मेवे और कई सब्ज़ियां, चावल, मक्का और आलू जैसी मुख्य फसलों द्वारा प्रतिस्थापित की जाएंगी, जिसके कारण यह आहार असंतुलित आहार होगा।

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लेकिन सबसे बड़ी चिंता के बात यह है कि मधुमक्खियां खतरे में हैं, मानवजनित प्रभावों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है।

गहन कृषि पद्धतियां, भूमि-उपयोग में बदलाव, एकल-फसल, कीटनाशक और जलवायु परिवर्तन से जुड़े उच्च तापमान सभी मधुमक्खी आबादी के लिए समस्याएं पैदा करते हैं और विस्तार से, हमारे द्वारा उगाए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है

इसलिए यह दिन हम सभी के लिए एक अवसर प्रदान करता है, चाहे वह सरकार, संगठन या सिविल सोसाइटी के लिए काम करते हों या चिंतित नागरिक हों उन कार्यों को बढ़ावा देने के लिए जो परागणकर्ताओं और उनके आवासों की रक्षा और वृद्धि करेंगे, उनकी बहुतायत और विविधता में सुधार करेंगे और मधुमक्खी पालन के सतत विकास का समर्थन करेंगे।

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